बलांगीर : ओडिशा के टिटिलागढ़ प्रखंड में कुतुराकेंड गांव के लोग बारिश में बेहद परेशान हो जाते थे क्योंकि उनके आने-जाने का रास्ता बंद हो जाता था. सरकारी अफसर बार-बार पुल बनाने का आश्वासन तो देते लेकिन यह वादा कभी पूरा नहीं होता था. वर्षों से गांव की यह समस्या बनी हुई थी.
इस बार भी बारिश आई तो ग्रामीणों के सब्र का बांध टूट गया. उन्हें लगा कि सरकार कभी उनकी नहीं सुनेगी. इसलिए गांव के नौजवानों ने खुद ही पुल बनाने का निर्णय लिया. लेकिन ग्रामीणों के पास न संसाधन था और न ही तकनीक.
ऐसे में उन्होंने पारंपरिक तकनीक का इस्तेमाल करने की सोची और मौके पर मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर पुल तैयार करने की योजना बना डाली. फिर क्या था लकड़ी का पुल धीरे-धीरे आकार लेने लगा और आने-जाने का एक वैकल्पिक मार्ग तैयार हो गया. हालांकि ग्रामीणों ने अपने काम से शासन-प्रशासन को आईना दिखा दिया है.
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वहीं इस प्रकरण की जानकारी होने पर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुख्य सलाहकार असित त्रिपाठी ने कहा कि हम उनके इस प्रयास की सराहना करते हैं. बिना संसाधन के ग्रामीण ने सामूहिक श्रम के माध्यम से यह कर दिखाया है. हालांकि लकड़ी का पुल अस्थाई है और स्थायी पुल का निर्माण जल्द कराया जाएगा.