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तालिबान के टॉप कमांडर ने IMA देहरादून में लिया था प्रशिक्षण, जानें कौन? - वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ

मलेशिया से लेकर पाकिस्तान तक, बांग्लादेश से लेकर मध्य एशियाई, अफ्रीकी देशों सहित कई अन्य देशों के सैन्य नेताओं ने देहरादून की भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण लिया है. यहां तक की कई शीर्ष तालिबानी सैन्य नेता भी देहरादून के आईएमए से प्रशिक्षित हैं. उन्हीं में से एक है मौजूदा समय में तालिबान का मुख्य वार्ताकर व ताकतवर नेता मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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Published : Aug 18, 2021, 9:57 PM IST

Updated : Aug 18, 2021, 10:54 PM IST

नई दिल्ली : 'भगत' जिन्हें शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई पदशाह खान या सामान्य रूप से कहें तो मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई के नाम से जाना जाता है. स्टेनकजई की पहचान आज तालिबान के शीर्ष वार्ताकार के रूप में भी की जाती है. यही 'भगत' देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) की बटालियन में शामिल था. जहां अपने डेढ़ साल के लंबे प्री-कमीशन प्रशिक्षण के दौरान अपने सैन्य कौशल को निखारने का काम किया.

तालिबान नेताओं में सबसे शक्तिशाली माना जाने वाला शीर्ष नेता, जो कि अब 58 वर्ष का है, 1982-83 के आसपास आईएमए के 71वें पाठ्यक्रम का हिस्सा था. दूसरे शब्दों में कहें तो आईएमए में स्टेनकजई के कुछ बैचमेट निश्चित रूप से भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में कार्यरत होंगे.

हालांकि अपने 'इंडिया डेज' के बारे में बात करने के लिए जाने, जाने वाले तालिबान के ताकतवर नेता ने भारत के लिए अपना प्यार अभी तक नहीं खोया है. पिछले साल ही एक पाकिस्तानी मीडिया आउटलेट को दिए साक्षात्कार में इस ताकतवर मुख्य वार्ताकार ने अफगानिस्तान में भारत पर देशद्रोहियों का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए, बहुत ही मद्धिम (Dim) विचार रखा था.

यह भी पढ़ें-अफगानिस्तान में तालिबान 2.0 को मान्यता क्यों देगा भारत, क्या सेटिंमेंटस पर भारी पड़ेगी कूटनीति ?

लेकिन यह आईएमए ही था, जहां स्टेनकजई ने युद्ध, नीति, रणनीति, हथियारों से निपटने, शारीरिक और मानसिक दक्षता जैसी मूल बातें सीखीं, जो जेंटलमैन कैडेट्स (जीसी) के पाठ्यक्रम का मूल हिस्सा हैं. IMA में अपना प्री-कमीशन प्रशिक्षण पूरा करने और एक लेफ्टिनेंट के रूप में अफगान नेशनल आर्मी में शामिल होने के बाद, कुछ वर्षों में ही स्टैनेकजई का हृदय परिवर्तन हुआ. जिसके कारण वह सोवियत सेना से लड़ने के लिए अफगान सेना छोड़कर मुजाहिदीन रैंक में शामिल होने का फैसला किया. दरअसल, 1979 के आक्रमण के बाद से 1989 में उनकी वापसी तक अफगानिस्तान में रूसियों को तैनात किया गया था.

अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि, अंग्रेजी में धारा प्रवाह बातचीत और सामान्य कलात्मकता के कारण तालिबान पदानुक्रम में स्टेनकजई तेजी से आगे बढ़ता गया. इस तथ्य की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि अधिकांश तालिबान नेतृत्व के पास औपचारिक शिक्षा नहीं है. 1996 में, जब तालिबान ने काबुल में सत्ता पर कब्जा कर लिया, तब स्टेनकजई को सरकार में उप-विदेश मंत्री और उप-स्वास्थ्य मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था.

यह भी पढ़ें-तालिबान के सामने घुटनों पर अफगानी सेना, IMA में ट्रेनिंग ले रहे 80 से ज्यादा अफगान कैडेट अब क्या करेंगे?

लेकिन जब 9/11 के हमले बाद 2001 में अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में उतरी और तालिबान को भागने के लिए मजबूर किया गया, तो वह जनवरी 2012 में कतर के दोहा पहुंच गया, जहां राजनैतिक और विदेशी कार्यालयों का नेतृत्व किया. तब से दोहा में 2001 से ही स्टेनकजई संयुक्त राष्ट्र द्वारा 'तालिबान से जुड़े व्यक्ति' के रूप में नामित किया गया. इसके बावजूद वे दुनिया भर के विभिन्न देशों की यात्रा करता रहा.

वह हाल ही में अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार से लेकर अमेरिका, रूस और चीन तक के महत्वपूर्ण नेताओं के साथ बातचीत का अहम हिस्सा रहा है. सितंबर 2020 में ही अफगान सरकार के साथ बातचीत करने के लिए तालिबान द्वारा नियुक्त मुल्ला अब्दुल हकीम का डिप्टी बनाया गया था.

यह भी पढ़ें-अशरफ गनी पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी, अफगान रक्षा मंत्री ने इंटरपोल से की अपील

नई दिल्ली : 'भगत' जिन्हें शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई पदशाह खान या सामान्य रूप से कहें तो मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई के नाम से जाना जाता है. स्टेनकजई की पहचान आज तालिबान के शीर्ष वार्ताकार के रूप में भी की जाती है. यही 'भगत' देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) की बटालियन में शामिल था. जहां अपने डेढ़ साल के लंबे प्री-कमीशन प्रशिक्षण के दौरान अपने सैन्य कौशल को निखारने का काम किया.

तालिबान नेताओं में सबसे शक्तिशाली माना जाने वाला शीर्ष नेता, जो कि अब 58 वर्ष का है, 1982-83 के आसपास आईएमए के 71वें पाठ्यक्रम का हिस्सा था. दूसरे शब्दों में कहें तो आईएमए में स्टेनकजई के कुछ बैचमेट निश्चित रूप से भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में कार्यरत होंगे.

हालांकि अपने 'इंडिया डेज' के बारे में बात करने के लिए जाने, जाने वाले तालिबान के ताकतवर नेता ने भारत के लिए अपना प्यार अभी तक नहीं खोया है. पिछले साल ही एक पाकिस्तानी मीडिया आउटलेट को दिए साक्षात्कार में इस ताकतवर मुख्य वार्ताकार ने अफगानिस्तान में भारत पर देशद्रोहियों का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए, बहुत ही मद्धिम (Dim) विचार रखा था.

यह भी पढ़ें-अफगानिस्तान में तालिबान 2.0 को मान्यता क्यों देगा भारत, क्या सेटिंमेंटस पर भारी पड़ेगी कूटनीति ?

लेकिन यह आईएमए ही था, जहां स्टेनकजई ने युद्ध, नीति, रणनीति, हथियारों से निपटने, शारीरिक और मानसिक दक्षता जैसी मूल बातें सीखीं, जो जेंटलमैन कैडेट्स (जीसी) के पाठ्यक्रम का मूल हिस्सा हैं. IMA में अपना प्री-कमीशन प्रशिक्षण पूरा करने और एक लेफ्टिनेंट के रूप में अफगान नेशनल आर्मी में शामिल होने के बाद, कुछ वर्षों में ही स्टैनेकजई का हृदय परिवर्तन हुआ. जिसके कारण वह सोवियत सेना से लड़ने के लिए अफगान सेना छोड़कर मुजाहिदीन रैंक में शामिल होने का फैसला किया. दरअसल, 1979 के आक्रमण के बाद से 1989 में उनकी वापसी तक अफगानिस्तान में रूसियों को तैनात किया गया था.

अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि, अंग्रेजी में धारा प्रवाह बातचीत और सामान्य कलात्मकता के कारण तालिबान पदानुक्रम में स्टेनकजई तेजी से आगे बढ़ता गया. इस तथ्य की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि अधिकांश तालिबान नेतृत्व के पास औपचारिक शिक्षा नहीं है. 1996 में, जब तालिबान ने काबुल में सत्ता पर कब्जा कर लिया, तब स्टेनकजई को सरकार में उप-विदेश मंत्री और उप-स्वास्थ्य मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था.

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लेकिन जब 9/11 के हमले बाद 2001 में अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में उतरी और तालिबान को भागने के लिए मजबूर किया गया, तो वह जनवरी 2012 में कतर के दोहा पहुंच गया, जहां राजनैतिक और विदेशी कार्यालयों का नेतृत्व किया. तब से दोहा में 2001 से ही स्टेनकजई संयुक्त राष्ट्र द्वारा 'तालिबान से जुड़े व्यक्ति' के रूप में नामित किया गया. इसके बावजूद वे दुनिया भर के विभिन्न देशों की यात्रा करता रहा.

वह हाल ही में अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार से लेकर अमेरिका, रूस और चीन तक के महत्वपूर्ण नेताओं के साथ बातचीत का अहम हिस्सा रहा है. सितंबर 2020 में ही अफगान सरकार के साथ बातचीत करने के लिए तालिबान द्वारा नियुक्त मुल्ला अब्दुल हकीम का डिप्टी बनाया गया था.

यह भी पढ़ें-अशरफ गनी पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी, अफगान रक्षा मंत्री ने इंटरपोल से की अपील

Last Updated : Aug 18, 2021, 10:54 PM IST
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