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संसद में बिल की भरमार लेकिन चर्चा नगण्य, तृणमूल ने आंकड़ों के साथ उठाए सवाल

संसद का मानसून सत्र बेशक हंगामे की भेंट चढ़ रहा हो और विपक्ष सरकार पर कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा न करने का आरोप लगा रही हो लेकिन दोनों पक्षों के घमासान के बीच भी लोकसभा और राज्यसभा में बिलों का पास होना जारी है.

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Published : Aug 6, 2021, 7:17 PM IST

संसद
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नई दिल्ली : तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय और काकोली घोष दस्तिदार ने शुक्रवार को कुछ आंकड़े मीडिया के सामने रखते हुए आरोप लगाया कि जिस तरह सदन में चर्चा के बिना यह सरकार बिल पास कराए जा रही है, इससे प्रतीत होता है कि हम लोकतंत्र की बजाय एकतंत्र की तरफ बढ़ रहे हैं.
तृणमूल सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा कि दोनों सदनों में अब तक कुल 25 बिल पास हो चुके हैं जिसमें चर्चा में केवल सरकार पक्ष शामिल हुई है.

इन बिलों पर औसत चर्चा केवल दस मिनट प्रति बिल हुई है. राज्यसभा में 12 दिन में 8 बिल पास हुए हैं और हर बिल पर औसत चर्चा 13 मिनट की रही है. वहीं लोकसभा में 6 दिन में 13 बिल पास हुए हैं और हर बिल पर औसत चर्चा 8 मिनट की रही है.

इनमें से कोई भी बिल स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी के पास नहीं भेजे गए. 14वीं लोकसभा में कुल पेश किये गए बिल में से 60% बिल पार्लियामेंट्री कमिटी में भेजे गए थे जबकि 16वीं लोकसभा में कुल बिलों में से 71% बिल स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए. लेकिन 16वीं लोकसभा जो मोदी सकरार का पहला कार्यकाल भी रहा है उसमें केवल 25% बिल ही स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए.

यदि 17वीं लोकसभा यानी मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल की बात करें तो 2019 से दिसंबर 2020 तक केवल 11% बिल ही स्टैंडिंग या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए हैं.देश के संसदीय इतिहास को यदि देखें तो पहले 30 वर्षों में हर दस बिल में से एक ही अध्यादेश के माध्यम से आया. अगले तीस वर्षों में यह आंकड़ा औसतन 10 बिलों में से 2 अध्यादेश का रहा. लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पारित हुए बिलों में हर दस में से औसतन 3.5 बिल अध्यादेश के माध्यम से लाए गए हैं.

17वीं लोकसभा में यदि अब तक के आंकड़ों को देखें तो हर दस बिल में औसतन 3.7 बिल अध्यादेश के माध्यम से लाए गए हैं. जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है तब ये अध्यादेश लाए जाते हैं और सत्र शुरू होते ही सरकार इन बिलों को पारित करने की हड़बड़ी में रहती है. PAC कमिटी में भी मुख्य मुद्दा यही रहता है.

सुखेंदु रॉय ने आगे कहा कि सरकार के गठन के 782 दिन बाद भी अभी तक लोकसभा के डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति नहीं की गई है. ऐसा संसद के इतिहास में पहली बार हुआ है जब इतने लंबे समय तक सदन में कोई उपाध्यक्ष नहीं है.

इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री कार्यालय के कार्यशैली पर भी सवाल उठाए हैं. तृणमूल सांसद ने कहा कि जब 2009 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह की सरकार थी तब प्रधानमंत्री की तरफ से कुल 21 विषयों पर जवाब दिए गए थे लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय ने अपने दूसरे कार्यकाल में अब तक एक भी प्रश्न का उत्तर राज्यसभा में नहीं दिया है.

सदन की कार्यवाही में अवरोध डालने के कारण 6 तृणमूल सांसदों को एक दिन के लिये निलंबित किया गया था जबकि राज्यसभा सांसद शांतनु सेन को पूरे सत्र के लिये निलंबित किया गया है.

इसे भी पढ़ें : राज्यसभा में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बिल पास

सरकार विपक्ष पर चर्चा न होने देने और संसद की कार्यवाही न चलने देने का आरोप लगा रही है जबकि दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों का कहना है कि सरकार किसान, महंगाई, पेगासस और कोरोना प्रबंधन के मुद्दों पर चर्चा और जबाब देने के लिये तैयार हो.

नई दिल्ली : तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय और काकोली घोष दस्तिदार ने शुक्रवार को कुछ आंकड़े मीडिया के सामने रखते हुए आरोप लगाया कि जिस तरह सदन में चर्चा के बिना यह सरकार बिल पास कराए जा रही है, इससे प्रतीत होता है कि हम लोकतंत्र की बजाय एकतंत्र की तरफ बढ़ रहे हैं.
तृणमूल सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा कि दोनों सदनों में अब तक कुल 25 बिल पास हो चुके हैं जिसमें चर्चा में केवल सरकार पक्ष शामिल हुई है.

इन बिलों पर औसत चर्चा केवल दस मिनट प्रति बिल हुई है. राज्यसभा में 12 दिन में 8 बिल पास हुए हैं और हर बिल पर औसत चर्चा 13 मिनट की रही है. वहीं लोकसभा में 6 दिन में 13 बिल पास हुए हैं और हर बिल पर औसत चर्चा 8 मिनट की रही है.

इनमें से कोई भी बिल स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी के पास नहीं भेजे गए. 14वीं लोकसभा में कुल पेश किये गए बिल में से 60% बिल पार्लियामेंट्री कमिटी में भेजे गए थे जबकि 16वीं लोकसभा में कुल बिलों में से 71% बिल स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए. लेकिन 16वीं लोकसभा जो मोदी सकरार का पहला कार्यकाल भी रहा है उसमें केवल 25% बिल ही स्टैंडिंग कमिटी या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए.

यदि 17वीं लोकसभा यानी मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल की बात करें तो 2019 से दिसंबर 2020 तक केवल 11% बिल ही स्टैंडिंग या सेलेक्ट कमिटी को भेजे गए हैं.देश के संसदीय इतिहास को यदि देखें तो पहले 30 वर्षों में हर दस बिल में से एक ही अध्यादेश के माध्यम से आया. अगले तीस वर्षों में यह आंकड़ा औसतन 10 बिलों में से 2 अध्यादेश का रहा. लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पारित हुए बिलों में हर दस में से औसतन 3.5 बिल अध्यादेश के माध्यम से लाए गए हैं.

17वीं लोकसभा में यदि अब तक के आंकड़ों को देखें तो हर दस बिल में औसतन 3.7 बिल अध्यादेश के माध्यम से लाए गए हैं. जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है तब ये अध्यादेश लाए जाते हैं और सत्र शुरू होते ही सरकार इन बिलों को पारित करने की हड़बड़ी में रहती है. PAC कमिटी में भी मुख्य मुद्दा यही रहता है.

सुखेंदु रॉय ने आगे कहा कि सरकार के गठन के 782 दिन बाद भी अभी तक लोकसभा के डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति नहीं की गई है. ऐसा संसद के इतिहास में पहली बार हुआ है जब इतने लंबे समय तक सदन में कोई उपाध्यक्ष नहीं है.

इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री कार्यालय के कार्यशैली पर भी सवाल उठाए हैं. तृणमूल सांसद ने कहा कि जब 2009 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह की सरकार थी तब प्रधानमंत्री की तरफ से कुल 21 विषयों पर जवाब दिए गए थे लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय ने अपने दूसरे कार्यकाल में अब तक एक भी प्रश्न का उत्तर राज्यसभा में नहीं दिया है.

सदन की कार्यवाही में अवरोध डालने के कारण 6 तृणमूल सांसदों को एक दिन के लिये निलंबित किया गया था जबकि राज्यसभा सांसद शांतनु सेन को पूरे सत्र के लिये निलंबित किया गया है.

इसे भी पढ़ें : राज्यसभा में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बिल पास

सरकार विपक्ष पर चर्चा न होने देने और संसद की कार्यवाही न चलने देने का आरोप लगा रही है जबकि दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों का कहना है कि सरकार किसान, महंगाई, पेगासस और कोरोना प्रबंधन के मुद्दों पर चर्चा और जबाब देने के लिये तैयार हो.

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