देहरादून: साल 2013 की उत्तराखंड आपदा को भी सभी ने ना केवल देखा बल्कि, लाखों लोगों ने उसका दंश भी झेला. लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्र में सालाना बारिश निचले इलाकों में भारी तबाही मचा सकती है. क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि अगर साल 2013 की आपदा के दौरान टिहरी बांध ना होता तो हालात ऋषिकेश, हरिद्वार, रुड़की, सहारनपुर और उत्तर प्रदेश सहित दिल्ली तक कितने भयानक होते. उत्तराखंड का टिहरी बांध सिर्फ रोशनी ही नहीं दे रहा है, बल्कि अपने सीने में वह हर साल इतने पानी को जमा लेता है, जिसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अगर यह बांध ना हो तो हिमालय में हो रही बारिश और पिघलते ग्लेशियरों का जल इतना नीचे आएगा कि कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाएंगे.
ऐसे बना था ये बांध: साल 2013 की आपदा हो या मौजूदा मॉनसून, उत्तराखंड में अत्यधिक बारिश से हालात बेहद खराब हुए हैं. उत्तराखंड में गढ़वाल का अधिकतर हिस्सा टिहरी बांध से घिरा हुआ है. उत्तराखंड में इस बांध का बनना इतना आसान नहीं था. बड़े आंदोलनों और बड़ी लड़ाई के बीच इस बांध का निर्माण हुआ. हालांकि इस बांध को बनाने में कई सभ्यताओं को जलमग्न होना पड़ा, लेकिन आज यह बांध ना केवल बिजली की आपूर्ति पूरी कर रहा है, बल्कि भीषण बारिश में लाखों-करोड़ों लोगों का जीवन भी बचा रहा है.
टिहरी बांध का निर्माण 1961 में शुरू हुआ था. मतलब 1961 में इस बांध की प्रारंभिक जांच शुरू हुई थी कि कैसे कहां और कितना बड़ा बांध इस जगह पर बनाया जा सकता है. 1972 में इसका डिजाइन फाइनल हुआ था. हालांकि 2 सालों तक इस बांध का विरोध और वित्तीय हालातों के चलते इसका काम शुरू नहीं हो पाया और साल 1978 में इसका काम शुरू हुआ. लेकिन यह काम भी ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रह पाया. 1986 में राजनीतिक स्थिरता के चलते इसका काम शुरू हुआ और फिर कुछ दिनों तक अटका रहा और साल 2006 में इस बांध का निर्माण पूरा हो सका.
हालांकि बांध का दूसरा हिस्सा साल 2012 में बनकर तैयार हुआ, जिसको आज लोग कोटेश्वर बांध के रूप में भी जानते हैं. इस बांध को जिस वक्त बनाया जा रहा था. उस वक्त बांध विरोध संगठन के बैनर तले सैकड़ों लोगों ने इसका विरोध भी किया. कई महीनों तक भूख हड़ताल भी चली. अनेकों बार पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच बल प्रयोग भी हुआ, लेकिन बाद में सभी की रजामंदी से इस बांध को मूल स्वरूप दिया गया. शायद तब लोगों को यह मालूम नहीं था कि यह बांध आगे लोगों की कितनी सहायता करने वाला है.
ये है बांध की खासियत: उत्तराखंड का टिहरी बांध दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा बांध है. जल विद्युत परियोजना के लिए बनाए गए इस बांध की ऊंचाई 855 फीट है और इसे भारत का सबसे लंबा बांध भी कहा जाता है. यह बांध 42 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. मौजूदा तारीख में यह बांध रोजाना 5 से 6 मिलियन यूनिट बिजली पैदा कर रहा है. लेकिन अब जानकार मानते हैं कि बिजली से ज्यादा जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग का असर हिमालय क्षेत्र में देखा जा रहा है, उस लिहाज से यह बांध निचले इलाकों में बाढ़ को रोकने और एक बड़ी आबादी को राहत देने में भी काम कर रहा है.
उत्तराखंड यूपी और दिल्ली को बाढ़ से बचता है ये बांध: टिहरी बांध परियोजना के पूर्व निदेशक एसआर मिश्रा ने बताया कि साल 2013 में जिस तरह से पहाड़ों में लगातार बारिश हो रही थी, उसके बाद लगातार टिहरी बांध का जलस्तर बढ़ रहा था. आलम यह था कि 2 दिन में ही टिहरी बांध का जलस्तर 27 मीटर तक बढ़ गया था. उन्होंने बताया कि अगर टिहरी बांध ना होता या इस पानी को टिहरी बांध में भरा ना जाता, तो निचले इलाकों में हालात बेहद खराब हो सकते थे. टिहरी बांध उत्तराखंड के लिए ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से के लिए भी किसी रक्षा दीवार से कम नहीं है.
अधिशासी निदेशक एलपी जोशी भी इस बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि टिहरी बांध से मैदानी इलाकों में खतरा बहुत कम हो जाता है, लेकिन कई बार इस तरह की खबरें आती हैं कि बांध से पानी छोड़ा जा रहा है और नीचे इलाकों में खतरा हो सकता है. उन्होंने बताया कि टिहरी बांध लोगों की रक्षा के लिए है. लोगों के खतरे के लिए बिल्कुल नहीं. हाल फिलहाल में जो बारिश हो रही है, अगर वह 20 दिनों तक भी चलती रहती है तो भी टिहरी बांध में इतनी क्षमता है कि किसी को कोई नुकसान पहुंचने नहीं दिया जाएगा.
धार्मिक आयोजनों में यू साथ देता है टिहरी बांध: पानी रोककर टिहरी बांध ना सिर्फ नुकसान होने से बचाता है, बल्कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण राज्य को पानी भी मुहैया कराता है. तराई के लगभग 8.74 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिए जल पूरे साल टिहरी बांध ही देता है. इतना ही नहीं दिल्ली को 40 लाख की आबादी के लिए 300 क्यूसेक और यूपी को 200 क्यूसेक पीने का पानी भी मुहैया कराता है. सर्दियों के मौसम में जब नदियों में पानी कम हो जाता है और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित दूसरे राज्यों से जहां-जहां से गंगा बहती है, उन राज्यों में अगर कोई धार्मिक आयोजन होता है, तो टिहरी बांध ही उन राज्यों को आयोजन करवाने के लिए जल मुहैया कराता है.
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टिहरी बांध ने 2013 में शहर बचाए: 2013 में उत्तराखंड में जून में 340 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी. मूसलाधार बारिश 375% अधिक हुई थी. जिसके बाद राज्य के रुद्रप्रयाग सहित कई जगहों पर बाढ़ जैसे हालात पैदा हुए थे, लेकिन आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर उस वक्त पूरा पानी नीचे आता तो हालात कितने खतरनाक होते. 2013 में जिस दिन आपदा आई उस दिन 16 जून, टिहरी बांध में 7000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड डिस्चार्ज हो रहा था, लेकिन लगातार बारिश के बाद बांध प्रशासन ने दो दिन तक टिहरी बांध में पानी को रोककर रखा. इस तारीख में टिहरी झील का रिजर्व वाटर स्तर 25 मीटर तक बढ़ गया था, जबकि आपदा के दौरान हरिद्वार में जलस्तर 15 हजार क्यूमैक्स था. ऐसे में आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर टिहरी बांध से यह 7000 क्यूमैक्स पानी छोड़ा जाता, तो हरिद्वार में जलस्तर 22 हजार क्यूमैक्स हो जाता. इससे हरिद्वार ऋषिकेश, रुड़की, मुरादाबाद दिल्ली तक बड़ी तबाही होती. वहीं, इस मानसून सीजन में 1 जून से आज 20 जुलाई 2023 तक 534.9 मिलीमीटर बारिश हुई है और बीते हफ्ते हुए बारिश का अधिकार जल टिहरी बांध में रोके रखा और अब धीरे धीरे करके उसे नियम अनुसार छोड़ा जा रहा है.
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