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उत्तराखंड में कछुआ गति से चल रहा है रिस्क असेसमेंट का काम, जोशीमठ आपदा के बाद भी लापरवाही!

उत्तराखंड में आपदा एक ऐसा विषय है, जो कि प्रदेश के विकास के साथ चलता है. ऐसे में जोशीमठ आपदा के बाद रिस्क असेसमेंट का काम धीमी गति से चल रहा है. आलम ये है कि कैरिंग कैपेसिटी और भार क्षमता को लेकर किए जा रहे सर्वे का काम सिर्फ नैनीताल में शुरू हुआ है, जो कि चिंता का विषय है.

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जोशीमठ आपदा में रिस्क असेसमेंट का काम
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Published : Jun 29, 2023, 12:33 PM IST

Updated : Jun 30, 2023, 7:20 PM IST

कछुआ गति से चल रहा है रिस्क असेसमेंट का काम

देहरादून: जोशीमठ जैसी घटना कहीं और ना घटे, इसलिए प्रदेश के सभी शहरों का रिस्क असेसमेंट करवाया जाना है. यानी शहर की कैपेसिटी कितनी है. वहां पर किस तरह से निर्माण कार्य किया जा सकता है, इसको लेकर एक विस्तृत गाइडलाइन तैयार की जानी है. जिसको लेकर आपदा प्रबंधन विभाग और शहरी विकास विभाग को मिलकर उत्तराखंड के तमाम जोखिम भरे शहरों का सर्वे करने के निर्देश दिए गए थे और इसे कैबिनेट से भी पास करवाया गया था. जोशीमठ प्रकरण के बाद प्रदेश के अन्य शहरों में कैरिंग कैपेसिटी और भार क्षमता को लेकर किए जा रहे सर्वे का काम कछुआ गति से चल रहा है. अब तक केवल नैनीताल शहर में ही काम शुरू हुआ है.

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जोशीमठ आपदा में रिस्क असेसमेंट का काम

कैरिंग और बेयरिंग कैपेसिटी निर्धारित करने के दिए गए थे निर्देश: आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि कैबिनेट का यह फैसला था कि उत्तराखंड के जितने भी शहर पर्वतीय इलाकों में हैं, उन सभी की कैरिंग कैपेसिटी और बेयरिंग कैपेसिटी दोनों निर्धारित की जाएं. बेयरिंग कैपेसिटी यानी कि उस शहर की धरती की भार क्षमता कितनी है. जैसे कि हाल ही में जोशीमठ की बेयरिंग कैपेसिटी निकाली गई है, जोकि 10 टन आई है. यानी कि यहां पर हल्के मटेरियल का केवल 1 मंजिला निर्माण किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि इसी तरह से सारे शहरों कि भार क्षमता निकालने के निर्देश दिए गए थे. इसी के अनुसार हर शहर में निर्माण कार्य की गाइडलाइन जारी होगी और इसी के अनुसार पर्वतीय इलाकों में विकास का रोडमैप तैयार किया जाएगा.

शहरों की बार क्षमता निकालेगा LMC: सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि इसी तरह से कैरिंग कैपेसिटी यानी कि उस शहर में मौजूद संसाधनों के आधार पर उस शहर में कितने लोग रह सकते हैं या फिर कितने लोग आवाजाही कर सकते हैं, यह भी कैरिंग कैपेसिटी में निर्धारित किया जाना था. उन्होंने बताया कि शहरों की भार क्षमता निकालने के लिए उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के लैंडस्लाइड मिटिगेशन सेंटर (LMC) को जिम्मेदारी दी गई है, जबकि शहरों की कैरिंग कैपेसिटी के लिए शहरी विकास विभाग को जिम्मेदारी दी गई है.
ये भी पढ़ें: Haldwani Road Widening: तीनपानी से मंडी तक फोरलेन बनेगी रोड, जाम से मिलेगी निजात

नैनीताल में ही शुरू हुआ काम: डायरेक्टर शांतनु ने बताया कि अभी इस संबंध में ज्यादा कुछ कार्य नहीं हो पाया है. अभी केवल नैनीताल शहर के कुछ इलाकों में इन्वेस्टिगेशन चल रही है. जिसमें रिस्क मैनेजमेंट को लेकर सर्वे किया जा रहा है. इसके बाद कर्णप्रयाग शहर के सर्वे को लेकर के विचार किया जा रहा है. दूसरी तरफ पर्वतीय शहरों की कैरिंग कैपेसिटी को लेकर शहरी विकास विभाग से भी कुछ बेहतर जवाब नहीं आया है. उन्होंने बताया कि विभाग के उच्च अधिकारियों को इस संबंध में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं है, तो अभी इस संबंध में शहरी विकास विभाग द्वारा कोई खास कार्रवाई नहीं की गई है.ये भी पढ़ें: Rudraprayag: आखिरकार इस गांव को नसीब हुई सड़क, निर्माण कार्य शुरू होने पर ग्रामीणों में खुशी

कछुआ गति से चल रहा है रिस्क असेसमेंट का काम

देहरादून: जोशीमठ जैसी घटना कहीं और ना घटे, इसलिए प्रदेश के सभी शहरों का रिस्क असेसमेंट करवाया जाना है. यानी शहर की कैपेसिटी कितनी है. वहां पर किस तरह से निर्माण कार्य किया जा सकता है, इसको लेकर एक विस्तृत गाइडलाइन तैयार की जानी है. जिसको लेकर आपदा प्रबंधन विभाग और शहरी विकास विभाग को मिलकर उत्तराखंड के तमाम जोखिम भरे शहरों का सर्वे करने के निर्देश दिए गए थे और इसे कैबिनेट से भी पास करवाया गया था. जोशीमठ प्रकरण के बाद प्रदेश के अन्य शहरों में कैरिंग कैपेसिटी और भार क्षमता को लेकर किए जा रहे सर्वे का काम कछुआ गति से चल रहा है. अब तक केवल नैनीताल शहर में ही काम शुरू हुआ है.

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जोशीमठ आपदा में रिस्क असेसमेंट का काम

कैरिंग और बेयरिंग कैपेसिटी निर्धारित करने के दिए गए थे निर्देश: आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि कैबिनेट का यह फैसला था कि उत्तराखंड के जितने भी शहर पर्वतीय इलाकों में हैं, उन सभी की कैरिंग कैपेसिटी और बेयरिंग कैपेसिटी दोनों निर्धारित की जाएं. बेयरिंग कैपेसिटी यानी कि उस शहर की धरती की भार क्षमता कितनी है. जैसे कि हाल ही में जोशीमठ की बेयरिंग कैपेसिटी निकाली गई है, जोकि 10 टन आई है. यानी कि यहां पर हल्के मटेरियल का केवल 1 मंजिला निर्माण किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि इसी तरह से सारे शहरों कि भार क्षमता निकालने के निर्देश दिए गए थे. इसी के अनुसार हर शहर में निर्माण कार्य की गाइडलाइन जारी होगी और इसी के अनुसार पर्वतीय इलाकों में विकास का रोडमैप तैयार किया जाएगा.

शहरों की बार क्षमता निकालेगा LMC: सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि इसी तरह से कैरिंग कैपेसिटी यानी कि उस शहर में मौजूद संसाधनों के आधार पर उस शहर में कितने लोग रह सकते हैं या फिर कितने लोग आवाजाही कर सकते हैं, यह भी कैरिंग कैपेसिटी में निर्धारित किया जाना था. उन्होंने बताया कि शहरों की भार क्षमता निकालने के लिए उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के लैंडस्लाइड मिटिगेशन सेंटर (LMC) को जिम्मेदारी दी गई है, जबकि शहरों की कैरिंग कैपेसिटी के लिए शहरी विकास विभाग को जिम्मेदारी दी गई है.
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नैनीताल में ही शुरू हुआ काम: डायरेक्टर शांतनु ने बताया कि अभी इस संबंध में ज्यादा कुछ कार्य नहीं हो पाया है. अभी केवल नैनीताल शहर के कुछ इलाकों में इन्वेस्टिगेशन चल रही है. जिसमें रिस्क मैनेजमेंट को लेकर सर्वे किया जा रहा है. इसके बाद कर्णप्रयाग शहर के सर्वे को लेकर के विचार किया जा रहा है. दूसरी तरफ पर्वतीय शहरों की कैरिंग कैपेसिटी को लेकर शहरी विकास विभाग से भी कुछ बेहतर जवाब नहीं आया है. उन्होंने बताया कि विभाग के उच्च अधिकारियों को इस संबंध में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं है, तो अभी इस संबंध में शहरी विकास विभाग द्वारा कोई खास कार्रवाई नहीं की गई है.ये भी पढ़ें: Rudraprayag: आखिरकार इस गांव को नसीब हुई सड़क, निर्माण कार्य शुरू होने पर ग्रामीणों में खुशी

Last Updated : Jun 30, 2023, 7:20 PM IST
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