हैदराबाद : देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज 104वीं जयंती है. महिला सशक्तिकरण की बात होती है, तो सर्वप्रथम श्रीमती इंदिरा गांधी का नाम आता है. इंदिरा गांधी एक ऐसी बुलंद शख्सियत थीं, जिनके भीतर कमाल की राजनीतिक दूरदर्शिता थी. उनके तेज तर्रार और कड़े फैसलों के कारण उन्हें 'ऑयरन लेडी' का खिताब मिला था.
जवाहर लाल नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को हुआ. इंदिरा ने अपने पिता से ही राजनीति का ककहरा सीखा और 1938 में वह इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुईं. यूं तो उन्हें राजनीति विरासत में मिली, जिसकी वजह से सियासी उतार-चढ़ाव को भी वह बखूबी समझती थीं. पिता नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस पार्टी में इंदिरा की छवि बदल गई. पार्टी कार्यकर्ता और देश की जनता उनमें एक नेत्री को देखने लगा. लाल बहादूर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना व प्रसारण मंत्री बनीं इंदिरा 1966 में देश के सबसे प्रभावशाली पद प्रधानमंत्री पर आसीन हुईं. 5 सितंबर 1967 से 14 फरवरी 1969 तक उन्होंने विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला.
1975 में आपातकाल की घोषणा हो या 1974 का पोखरण विस्फोट या फिर बैंकों का राष्ट्रीयकरण, इंदिरा के ऐसे कड़े फैसलों के लिए जानी जाती हैं. इन फैसलों के कारण देश में हर तरफ इंदिरा ही इंदिरा नजर आती थीं.
इंदिरा के ये कड़े फैसले ही थे, जिसकी बदौलत बांग्लादेश एक आजाद देश बन पाया. साल 1971 में जब पाकिस्तान में गृहयुद्ध के हालात पैदा हो गए थे और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) आजादी की मांग कर रहा था, तब इंदिरा गांधी ने एक कड़ा फैसला लिया. आजादी की मांग को लेकर विद्रोह छिड़ गया था. इंदिरा की सरकार ने तब पूर्वी पाकिस्तान को समर्थन देने का फैसला किया और भारत-पाक के बीच जंग छिड़ गई. महज 11 दिनों के भीतर पाकिस्तान ने भारत के सामने घुटने टेक दिए थे. इसके बाद भारत ने स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश को मान्यता दे दी.
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एक अहम फैसला इंदिरा गांधी ने अपने बैंकों को लेकर किया था. उन्होंने साल 1969 में उन निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कराया जिन पर अधिकांश बड़े औद्योगिक घरानों का कब्जा था. इसके बाद राष्ट्रीयकरण का दूसरा दौर 1980 में हुआ, जिसके तहत सात बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया.
साल 1974 में पोखरण में पहला परमाणु विस्फोट कर इंदिरा ने दुनिया को चौंका दिया था. दक्षिण एशिया में उनके नेतृत्व में एक ऐसी शक्ति का उदय हुआ, जिसकी ओर कोई आंख उठाकर नहीं देख सकता था.
साल 1980 के दशक के दौरान उग्रवाद तेज हो गया. जरनैल सिंह भिंडरावाल के नेतृत्व में खालिस्तान की मांग तेज हो गई. इंदिरा गांधी ने आंदोलन को दबाने के लिए एक और बड़ा फैसला लिया. खालिस्तानी आतंकियों को रोकने के लिए इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन 'ब्लू स्टार' की इजाजत दी थी. इस ऑपरेशन में 1984 में अमृतसर में सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर से आतंकियों को खदेड़ने के लिए सैन्य कार्रवाई कराई थी. इसमें भिंडरावाल और उनके साथी तो मारे गए, लेकिन कुछ आम नागरिक की भी मौत हुई थी.
ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को लेकर जहां उन्हें कई तरह की राजनीतिक समस्याओं का सामना करना पड़ा, वहीं सिख अलगाववादियों के निशाने पर भी वह आ गईं. राजनीति की नब्ज को समझने वाली इंदिरा मौत की आहट को तनिक भी भांप नहीं सकीं. 31 अक्टूबर 1984 में दो सिख अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी.
इंदिरा की राजनीतिक विरासत को पहले उनके बड़े बेटे राजीव गांधी ने आगे बढ़ाया और अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी उससे जुड़े हैं. आज देश और विदेश में इंदिरा के नाम से कई इमारतें, सड़कें, पुल, परियोजनाओं और पुरस्कारों के नाम जुड़े हैं.