देहरादून: उत्तराखंड में गाहे-बगाहे बिजली का संकट आ ही जाता है, नतीजतन राज्य को हर बार केंद्र से बिजली कोटा को लेकर हाथ फैलाना पड़ता है. हालांकि इस बार उत्तराखंड को बड़ी बिजली कटौती का सामना नहीं करना पड़ा है. लेकिन आज सरकारों और अधिकारियों की अदूरदर्शिता के चलते उत्तराखंड बड़ी बिजली संकट के दायरे में आ गया है. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि समय रहते सरकारों और अधिकारियों ने हाइड्रो प्रोजेक्ट पर निर्भरता को खत्म नहीं किया और अब राज्य बड़े बिजली संकट की तरफ जाता हुआ नजर आ रहा है.
प्रदेश कर रहा चौथाई बिजली का उत्पादन: हाइड्रो प्रोजेक्ट के भरोसे राज्य को ऊर्जा प्रदेश का नाम तो दे दिया गया, लेकिन हकीकत में इन जलविद्युत परियोजनाओं पर निर्भरता उत्तराखंड के लिए भारी पड़ती दिख रही है. न तो राज्य हाइड्रो प्रोजेक्ट के क्षेत्र में कोई बड़ा कमाल कर पाया और ना ही दूसरे सेक्टर की तरफ विकल्प के तौर पर कदम उठा पाया. नतीजा यह रहा कि आज प्रदेश की डिमांड की तुलना में राज्य खुद से मात्र एक चौथाई बिजली ही उत्पादन करता रहा है. यानी ऊर्जा प्रदेश बिजली बेचकर राजस्व कमाना तो दूर अपनी आवश्यकता को 50% तक भी पूरा करने में सक्षम नहीं है.
हैरानी की बात यह है कि इन सब स्थितियों के बावजूद राज्य में रही सरकारों ने कभी ऊर्जा के लिए नए विकल्प तलाशने की कोशिश नहीं की. इतना ही नहीं अधिकारी भी उर्जा सेक्टर को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में नाकामयाब साबित हुए हैं. मौजूदा समय की बात करें तो उत्तराखंड में डिमांड लगातार बढ़ रही है और बिजली की उपलब्धता को पूरा कर पाना सरकार के लिए मुमकिन नहीं हो पा रहा है.
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स्थिति यह है कि केंद्र ने विशेष कोटा देकर राज्य के लिए कुछ संकट को दूर कर दिया है, लेकिन भविष्य में कब तक उत्तराखंड को अंधकार से दूर रखने के लिए केंद्र की मदद ली जाती रहेगी यह बड़ा सवाल है. मौजूदा संकट को लेकर बिजली विभाग के अधिकारी कहते हैं कि संकट जैसी स्थिति तो नहीं है. लेकिन पीक आवर में दिक्कतें बढ़ जाती हैं. इसके लिए राज्य के दो गैस प्लांट को शुरू करने पर प्रयास किया जा रहा है.
उत्तराखंड में बिजली उपलब्धता को लेकर स्थिति बेहद चिंताजनक है और यह बात राज्य में विद्युत को लेकर मौजूदा आंकड़ों से समझी जा सकती है. इसके पीछे एक बड़ी वजह राज्य का केवल जल विद्युत परियोजनाओं पर निर्भर होना भी है. उत्तराखंड में बिजली का संकट जिस तरह पिछले कुछ समय में तेजी से गहराता दिखाई दिया है, उसके बाद राज्य सरकार कुछ नए विकल्प की तरफ ध्यान देने को मजबूर हुई है. इस दौरान सरकार जिस क्षेत्र में बिजली उत्पादन का प्रयास कर रही है, उसमें सरकार के सामने कई मुश्किलों का आना तय है.
महंगे दामों पर खरीद रही बिजली: उत्तराखंड सरकार सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ नए प्राइवेट प्लेयर्स को शामिल करते हुए ऊर्जा के सेक्टर में स्थिति सामान्य करना चाहती है. इसके लिए कोयला आधारित प्रोजेक्ट के लिए दूसरे राज्यों में इन्वेस्ट करने पर भी राज्य सरकार विचार कर रही है. उत्तराखंड सरकार टीएचडीसी के साथ मिलकर कोयला आधारित प्रोजेक्ट पर काम करना चाहती है और राज्य में बंद पड़े दो गैस प्लांट को खोलने की कोशिश है. हालांकि गैस के महंगा होने के कारण इसमें दिक्कतें आ रही हैं. उत्तराखंड जो बिजली केंद्र से महज 4 से ₹5 प्रति यूनिट में बिजली खरीद रहा है, उस बिजली को खुले बाजार से 14 से ₹15 प्रति यूनिट खरीदना पड़ रहा है.
केंद्र ने उत्तराखंड को दी बड़ी राहत: हालांकि केंद्र की तरफ से उत्तराखंड को मार्च 31 तक 300 मेगावाट का विशेष कोटा दिए जाने की घोषणा की गई है. लेकिन इसके बावजूद भी बिजली की कमी बनी हुई है. बड़ी मुश्किल यह भी है कि यूपीसीएल के पास बिजली खरीद के लिए बहुत ज्यादा बजट में ही मौजूद है. हालांकि राज्य सरकार से भी यूपीसीएल की तरफ से मदद मांगी गई थी, लेकिन राज्य सरकार ने अब तक कोई भी वित्तीय मदद यूपीसीएल को नहीं की है.
ऊर्जा सचिव मीनाक्षी सुंदरम कहते हैं कि हाइड्रो प्रोजेक्ट पर राज्य डिपेंड हैं, जबकि यह सीजनल रुप से बिजली उत्पादन दे पाता है. मानसून सीजन में बिजली का उत्पादन बढ़ता है, लेकिन सेल हटाने से दिक्कतें आ जाती है. उधर गर्मी के मौसम में उत्पादन बढ़ने से परेशानियां दूर होती है. लेकिन सर्दी के मौसम में बिजली उत्पादन बेहद कम हो जाता है.