देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी ने सरेंडर कर दिया है. उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी की संगठनात्मक कमेटियां तीन महीने से भंग हैं. विधानसभा चुनाव से पहले जनता के लिए तमाम विकास कार्यों और योजनाओं की गारंटी देने वाली आम आदमी पार्टी अब खुद की गारंटी भी नहीं दे पा रही है. राज्य में लोकसभा चुनाव के लिए जहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत बाकी राजनीतिक दल अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहे हैं तो वहीं, आम आदमी पार्टी के नेता अपने दिल्ली हाई कमान की तरफ आस लगाए बैठे हैं. उत्तराखंड में ना तो आप का संगठनात्मक ढांचा मौजूद है और न ही नेताओं के पास किसी रणनीति पर काम करने का कोई खाका है.
उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी का इतिहास बहुत लंबा नहीं है. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बेहद कम समय में ही पार्टी ने राज्य में अपनी लोकप्रियता को काफी तेजी से आगे बढ़ाया था. खासतौर पर अरविंद केजरीवाल के उत्तराखंड में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बयान के बाद तो राज्य में सोशल मीडिया पर तूफान सा आ गया था. हालत यह रही कि उत्तराखंड का सोशल मीडिया पेज बनने के कुछ ही दिनों में इस पर फॉलोअर्स की संख्या लाखों में पहुंच गई थी. राज्य के बड़े-बड़े नेता भी आम आदमी पार्टी की धमाकेदार एंट्री से कांग्रेस के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा करने लगे थे. मगर जब पार्टी ने चुनाव में कदम रखा तो खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली कहावत सच होती हुई दिखाई दी.
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उत्तराखंड में लाखों परिवारों के जुड़ने का किया था दावा: उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी की गारंटी योजनाओं से लाखों लोगों के जुड़ने का दावा किया गया. महज दो महीने में ही अरविंद केजरीवाल ने खुद प्रदेश के लाखों लोगों को जोड़ने की बात कही थी. इस दौरान आंकड़ा दिया गया कि पार्टी की रोजगार गारंटी से करीब 8 लाख लोग जुड़े. इसी तरह बिजली गारंटी से 14 लाख लोगों को जोड़ने का भी दावा किया गया. उधर पार्टी के उस दौरान सीएम का चेहरा रहे कर्नल अजय कोठियाल ने तो दो हफ्तों में ही महिलाओं को ₹1000 देने की गारंटी योजना में एक लाख से ज्यादा महिलाओं को जोड़ने की बात कही थी. यह सब दावे चुनाव से पहले के थे, लेकिन चुनावों के परिणाम के बाद ये सारे दावे हवा हो गये.
जमानत भी नहीं बचा पाए आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के 90% से भी ज्यादा प्रत्याशी ऐसे थे जो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी ने जिस प्रत्याशी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया उसकी भी गंगोत्री विधानसभा में चुनाव परिणाम के लिहाज से जबरदस्त फजीहत हुई. इससे भी बड़ी बात यह है कि इसके बाद आम आदमी पार्टी राज्य में किसी भी चुनाव में दम खम से उतरने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाई.
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राज्य में एक-एक कर पार्टी छोड़कर भागे नेता: चुनाव परिणाम में खराब स्थिति के बाद आम आदमी पार्टी की हालात और भी खराब हो गई. पार्टी की डूबती नाव से बड़े चेहरों ने भागना शुरू कर दिया. खास बात यह है कि मुख्यमंत्री का चेहरा रहे कर्नल अजय कोठियाल ने भी आम आदमी पार्टी छोड़ने में देरी नहीं की. उन्होंने फौरन भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा. इसके बाद एक एक कर आम आदमी पार्टी के नेता दूसरी पार्टियों में जाते दिखे.
800 से ज्यादा नेताओं ने छोड़ी पार्टी: आम आदमी पार्टी से दूसरे दलों में या पार्टी का दामन छोड़ चुके नेताओं की संख्या 800 से ऊपर जा चुकी है. जिसमें 30 से ज्यादा बड़े नेता भी शामिल हैं, जिनके ऊपर आम आदमी पार्टी को उत्तराखंड में खड़े करने की जिम्मेदारी थी. इसमें पार्टी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री का चेहरा रहे कर्नल अजय कोठियाल मुख्य रहे. कार्यकारी अध्यक्ष अनंत राम चौहान, भूपेश उपाध्याय और प्रेम सिंह जैसे पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भी पार्टी से किनारा कर चुके हैं. इसके साथ ही रविन्द्र जुगरान, वरिष्ठ नेता चन्द्र किशोर जखमोला, मेजर जनरल, प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद कपरूवाण, प्रदेश उपाध्यक्ष अनन्त राम चौहान IPS, कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष सुबर्धन शाह, IAS संजय भट्ट, प्रदेश प्रवक्ता राकेश काला, प्रदेश प्रवक्ता आशुतोष नेगी, प्रदेश प्रवक्ता अवतार राणा, प्रदेश प्रवक्ता जितेंद मलिक, प्रदेश सचिव अतुल जोशी, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य संजय पोखरियाल, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य संजय सिलसुवाल, फाउंडर रिंकू सिंह राठौर, जिलाध्यक्ष पछवादून गुरमेल सिंह राठौर और जिलाध्यक्ष पछवादून संजय छेत्री जैसे सैकड़ों नाम शामिल हैं.
तीन महीने से भंग है संगठनात्मक ढांचा, नेता परेशान: उत्तराखंड में पिछले 3 महीने से आम आदमी पार्टी का संगठनात्मक ढांचा भंग है. इस स्थिति में पार्टी के नेता समझ नहीं पा रहे हैं कि वह क्या करें. एक तरफ बाकी दलों के नेता तय रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी में जो नेता बचे हुए हैं वो दिल्ली के अपने बड़े नेताओं की तरफ टकटकी लगाए बैठे हुए हैं. फिलहाल पार्टी की गतिविधियां करीब करीब निष्क्रिय हो चुकी हैं. किसी खास राजनीतिक एजेंडा पर पार्टी काम करती हुई नहीं दिखाई दे रही है.
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केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर केजरीवाल: अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के बड़े नेता इस समय केंद्रीय जांच एजेंसियों के रडार पर हैं. लगातार पूछताछ और जांच का सिलसिला जारी है. ऐसे में पार्टी हाईकमान भी विभिन्न राज्यों के संगठनात्मक ढांचे पर कुछ खास ध्यान देता हुआ नजर नहीं आ रहा है. उत्तराखंड में भी इसी कारण पार्टी कुछ खास नहीं कर पा रही है. माना जा रहा है कि पार्टी हाईकमान खुद में ही उलझा हुआ है. केंद्रीय एजेंसियों की जांच से निकलने की ही जद्दोजहद में जुटा हुआ है. लिहाजा ऐसे में राज्यों में संगठन को विस्तृत रूप देने और पार्टी को मजबूत करने में बहुत बड़ी निष्क्रियता सी दिखाई दे रही है. ऐसा हम नहीं बल्कि पार्टी के नेता खुद भी मानते हैं. जोत सिंह बिष्ट कहते हैं पार्टी के बड़े नेता केंद्रीय एजेंसियों की जांच से निकलने में जुटे हुए हैं. इसीलिए राज्य में कुछ खास कदम नहीं उठाये जा रहे हैं.
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लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी में मच सकती है भगदड़: चुनाव से पहले विभिन्न राजनीतिक दल खुद को मजबूत करने के लिए दूसरे दलों के नेताओं को भी जोड़ने का काम करते हैं. ऐसे में यदि आम आदमी पार्टी के यही हालात रहे तो पार्टी के भीतर परेशान नेता बाकी दलों की तरफ भी रुख कर सकते हैं. खास बात यह है कि बिना जिम्मेदारी के आम आदमी पार्टी में फिलहाल हाईकमान की तरफ टकटकी लगाए देख रहे नेताओं को बाकी राजनीतिक दलों द्वारा अपने दल में शामिल करवाना काफी आसान रहेगा. इस स्थिति के बीच लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के नेताओं में भगदड़ मच सकती है.
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गारंटी देने वाली पार्टी अब खुद की भी नहीं दे पा रही गारंटी: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले आम लोगों को तमाम गारंटियां देने वाली पार्टी के नेता अब खुद की गारंटी भी नहीं दे पा रहे हैं. चुनाव से पहले पार्टी ने महिलाओं को ₹1000 प्रति माह देने की गारंटी दी थी. सरकारी नौकरियों में करीब 60,000 भर्तियां खोलने की गारंटी दी गई थी. उधर निजी क्षेत्र मिलाकर ढाई लाख नौकरियां सृजित करने की बात कही गई थी. प्रदेशवासियों को 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की गारंटी हुई थी. प्रदेश में मुफ्त तीर्थ यात्रा करने की भी गारंटी दी गई थी. लेकिन अब ये बीती बात हो चुकी है.