देहरादून: उत्तराखंड ही नहीं देश के कई राज्य इन दिनों दूग्ध उत्पादन को लेकर खराब हालातों से जूझ रहे हैं. चिंता की बात यह है कि पिछले एक साल में दुग्ध का उत्पादन 10 से 40% तक भी कम हुआ है. वैसे तो इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं, लेकिन इसमें लंपी वायरस को सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है. उत्तराखंड में तो उत्पादन कम होने की यह स्थिति तब है जब राज्य के अधिकतर जिलों तक यह वायरस अपनी पहुंच नहीं बना पाया और इसके विकराल रूप लेने से पहले ही वैक्सिन के जरिए इस पर नियंत्रण पा लिया गया.
बीमारी से दुग्ध उत्पादन घटा: भारत में 1970 के दौरान श्वेत क्रांति की शुरुआत की गई. इसका मकसद देश में बेहद कम दूग्ध उत्पादन को तेजी से बढ़ाकर रोजगार समेत आर्थिकी के क्षेत्र में इस सेक्टर को नई ऊंचाइयों पर ले जाना था. अच्छी बात यह रही कि इस कल्पना को देश आगे बढ़ा पाया और दूग्ध उत्पादन में काफी ज्यादा बढ़ोत्तरी भी की गई, लेकिन 1970 के श्वेत क्रांति के उस मकसद को लंपी वायरस ने तगड़ा झटका दिया है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस वायरस के चलते न केवल उत्तराखंड बल्कि देश के कई राज्यों में दुग्ध का उत्पादन प्रभावित हुआ है. उत्तराखंड में दुग्ध उत्पादन को लेकर आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में 2020-21 के वित्तीय वर्ष के दौरान दुग्ध उत्पादन जो करीब 6% की दर से बढ़ रहा था, वो मौजूदा वित्तीय वर्ष आते आते भारी गिरावट की तरफ जाता हुआ दिखाई दिया. सर्दियों के महीने में सामान्य तौर पर दूध के दाम नहीं बढ़ाये जाते, लेकिन उत्तराखंड में यह पहला मौका है. जब दूध के दामों में 4 से ₹7 तक की बढ़ोत्तरी की गई है. ऐसा डिमांड बढ़ने और उत्पादन कम होने की वजह के चलते हुआ है.
उत्तराखंड के साथ ही ये राज्य हुए प्रभावित: बड़ी बात यह है कि पड़ोसी राज्य के दूध व्यवसायी भी उत्तराखंड से दूध खरीद के लिए ज्यादा प्रयास कर रहे हैं. जिसके कारण उत्तराखंड में दूध की उपलब्धता और भी कम हो रही है. इन राज्यों के व्यवसायियों का यह प्रयास इसलिए भी है क्योंकि उनके राज्य में भी दुग्ध उत्पादन काफी कम हुआ है. यह हालात केवल उत्तराखंड में नहीं है देश के दूसरे राज्य की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, लंपी वायरस ने जिस तरह से दुधारू पशुओं को प्रभावित किया है उसके चलते कई राज्यों के उत्पादन में भारी कमी आई है. जबकि उत्तराखंड के साथ ही हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और मध्य प्रदेश समेत जम्मू-कश्मीर प्रभावित हुआ. इससे राज्य के राजस्व से लेकर पशुपालकों के व्यवसाय को बड़ा झटका लगा है.
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क्या कह रहे जानकार: जानकार कहते हैं कि देश के अधिकतर राज्यों में इसके कारण 10 से 15% तक स्टेट डेयरी फेडरेशन को कम दूध मिल पाया है. हालांकि उत्तराखंड दुग्ध उत्पादन को लेकर और भी ज्यादा नुकसान की तरफ जा सकता था लेकिन समय रहते पशुपालकों तक वैक्सीन को पहुंचाना इन मुसीबतों में कुछ कमी कर पाया. देहरादून के पशुपालन कहते हैं कि उधम सिंह नगर हरिद्वार की कुछ जगहों पर इस वायरस का बेहद ज्यादा असर हुआ है, जबकि देहरादून में विकास नगर क्षेत्र में काफी पशु हानि हुई है. लेकिन समय रहते वैक्सीन का उपयोग करने के कारण नुकसान में काफी कमी भी की गई है.
पशुपालक क्या कह रहे: पशुपालक कहते हैं कि इस वायरस के कारण या तो जानवर की मौत हो रही है या फिर उसका दूध पूरी तरह से सूख जाता है, जिसके कारण इसका असर दुग्ध उत्पादन पर पड़ रहा है. सामान्य तौर पर माना जाता है कि एक व्यक्ति को करीब 700ml दूध की आवश्यकता होती है जबकि उत्पादन कम होने के कारण राज्य में सामान्य आवश्यकता को पूरा करने के लिए डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ गई है. इसी का नतीजा है कि सरकार ने भी हाल ही में आंचल दूध पर करीब ₹7 तक की बढ़ोत्तरी की है. ताकि खुले बाजार के दूध के मुकाबले आंचल से जुड़ने वाले पशुपालकों को भी लाभ मिल सके. हालांकि यह बेहद मुश्किल दौर है और इस दौर में 1970 की श्वेत क्रांति के लक्ष्य को पूरा करने और इसे आगे बढ़ाने के लिए सरकारों को ज्यादा प्रयास करने होंगे.