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एक छोटी सी चिप की कमी से हो रहा अरबों का नुकसान, ऑटोमोबाइल समेत कई सेक्टर परेशान

सोचिये कि एक छोटी सी चिप न हो तो आप कार न चला पाएं, रिमोट से टीवी का चैनल न बदल पाएं, स्मार्ट फोन से लेकर माइक्रोवेव तक का इस्तेमाल आपके लिए मुश्किल हो जाए. लेकिन इस चिप की कमी ने इन दिनों दुनियाभर की कई कंपनियों को करोड़ों अरबों का घाटा कर दिया है. आखिर कौन सी है ये छोटी चिप ? क्यों हो रही है इसकी कमी और इसका आप की जिंदगी पर क्या पड़ सकता है असर ? जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (Etv bharat explainer)

चिप ने किया चित
चिप ने किया चित
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Published : Aug 30, 2021, 7:08 PM IST

हैदराबाद: क्या आप जानते हैं कि आपकी कार, लैपटॉप, टीवी, स्मार्टफोन और कई दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण एक छोटी चिप के बगैर बेकार हैं. दरअसल हाइटैक गाड़ियों में जितने भी नए फीचर्स होते हैं वो एक छोटी सी चिप की मदद से काम करते हैं. जिसे सेमीकंडक्टर चिप कहते हैं. आज इस सेमीकंडक्टर की बात इसलिये क्योंकि दुनिया इस वक्त इसकी कमी से जूझ रही है, जिसके चलते कोरोना संकट काल में दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार पर असर पड़ रहा है. आखिर क्या है ये चिप, जिसकी कमी ने दुनियाभर की ऑटोमोबाइल समेत कई कंपनियों के सामने मुश्किल खड़ी कर दी है.

किस काम आती है सेमीकंडक्टर चिप ?

सेमीकंडक्टर चिप सिलिकॉन पर विभिन्न मैटल्स की मदद से बनाया जा सकता है. इनके जरिये किसी भी डिवाइस को मनचाहे कमांड देकर उसके स्वचालित कार्य करवाया जा सकता है. इनका उपयोग टीवी का रिमोट बनाने से लेकर कार तक में होता है, एक बटन दबाकर आप टीवी या अपनी कार का कोई फीचर इस्तेमाल करते हैं तो वो सब इन सेमीकंडक्टर चिप्स की बदौलत होता है. इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल स्मार्टफोन, कार, घरेलू उपकरणों (home appliances), इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (electronic devices) गैजेट्स आदि में होता है.

एक छोटी सी चिप की कमी से हो रहा अरबों का नुकसान
एक छोटी सी चिप की कमी से हो रहा अरबों का नुकसान

क्यों हो रही है चिप की कमी ?

दुनियाभर में चिप की कमी के लिए भी कोरोना महामारी ही जिम्मेदार है. बड़ी चिप्स निर्माता कंपनियां अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में हैं जो दुनिया की ज्यादातर मांग को पूरा करते हैं. ऑटो इंडस्ट्री जैसे बड़े क्षेत्र एडवांस में सेमाकंडक्टर के ऑर्डर देते हैं. लेकिन कोरोना महामारी के कारण मांग और पूर्ति (demand and supply) का खेल ऐसा बिगाड़ा कि दुनिया चिप शॉर्टेज की स्थिति में पहुंच गई.

दरअसल बीते साल कोरोना के चलते पूरी दुनिया तालाबंदी की स्थिति में पहुंच गई. हर सेक्टर की बिक्री कम हुई तो सेमीकंडक्टर्स की मांग में कमी शुरू हुई और चिप बनाने वाली अमेरिका और चीन की कंपनियों को बहुत कम ऑर्डर मिले. इनमें ऑटोमोबाइल सेक्टर भी शामिल है, जिसने कोरोना के चलते डिमांड कम होने पर चिप्स के ऑर्डर बहुत कम दिए. इस बीच बड़े पैमाने पर वर्क फ्रॉम होम और बच्चों की ऑनलाइन क्लास शुरू हुई तो फोन, लैपटॉप, डेस्कटॉप आदि की डिमांड में तेजी आ गई और चिप्स की डिमांड और सप्लाई इन सेक्टर्स में होने लगी.

कोरोना ने बिगाड़ा चिप के सप्लाई डिमांड का खेल
कोरोना ने बिगाड़ा चिप के सप्लाई डिमांड का खेल

इस बीच एक वक्त ऐसा भी आया जब महामारी के डर से लोग सार्वजनिक परिवहन से ज्यादा अपनी कार खरीदने को तवज्जो देने लगे. ऐसे में बाजार में अचानकर से कारों की डिमांड भी बढ़ गई लेकिन चिप बनाने वाली कंपनियां बाजार से आने वाली इस मांग को पूरा नहीं कर पा रही. कोरोना महामारी में दुनिया घर की चारदीवारी में कैद हो गई थी रेस्टोरेंट से लेकर सिनेमा हॉल तक बंद रहे जिसके चलते घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की भी मांग बढ़ गई.

इस कमी का क्या असर हुआ ?

1) ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर असर

आज हम अपने चारों तरफ हाइटैक कारों से घिरे हुए हैं. हर नई लॉन्च होने वाली कार नए फीचर्स के जरिये ही मार्केट में अपनी जगह बनाती है. लेकिन ये सभी फीचर सेमीकंडक्टर चिप्स पर निर्भर है. सेमीकंडक्टर चिप्स की कमी का सबसे ज्यादा असर ऑटो इंडस्ट्री पर पड़ा है. दरअसल बीते साल कोरोना के कारण ऑटो इंडस्ट्री की डिमांड कम हुई तो चिप्स बनाने वाली कंपनियों को भी ऑटो इडस्ट्री से कम मांग हुई लेकिन इसी दौर में मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, डेस्कटॉप, गैजेटस, गेमिंग कनसोल की मांग बढ़ गई तो चिप्स की सप्लाई इन सेक्टर्स की तरफ हो गई. नतीजा ये हुआ कि ऑटो इंडस्ट्री की चिप्स की मांग पूरी होने में दिक्कतें आ रही है.

चिप्स की कमी के कारण कई कार कंपनियों का उत्पादन ठप है, कई बड़ी कार निर्माता कंपनियों के उत्पादन में कमी आई है. इनमें महिंद्रा से लेकर टाटा और ऑडी, निसान, रेनॉ जैसी तमाम कंपनियां शामिल हैं. गाड़ियों के उत्पादन पर असर पड़ा तो लोगों को कार पाने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है और ये वेटिंग लिस्ट लंबी हो रही है.

चिप के इंतजार में हैं दुनिया की लाखों कारें
चिप के इंतजार में हैं दुनिया की लाखों कारें

चिप्स की डिमांड ज्यादा होने के कारण कारों की कीमत भी बढ़ी है और कुछ कंपनियों ने अपनी गाड़ियों में फीचर्स कम करने शुरू कर दिए हैं. दुनियाभर के कई देशों में इलेक्ट्रॉनिक कारों का चलन भी बढ़ रहा है लेकिन यहां भी चिप की कमी कारों के उत्पादन और बिक्री पर असर डाल रही है. ऑटो सेक्टर में उत्पादन पर असर पड़ा तो सीधा असर रोजगार पर पड़ना लाजमी है.

2) स्मार्टफोन, टीवी और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बाजार पर असर

दुनियाभर में स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों को भी चिप्स की कमी का सामना करना पड़ रहा है. एप्पल और सैमसंग जैसी दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल निर्माता कंपनियां फोन की डिमांड पूरी नहीं कर पा रही हैं. पहले चिप्स और फिर मोबाइल के उत्पादन में कमी का असर इनकी बढ़ती कीमतों के रूप में देखा जा सकता है. ऐसा ही हाल टीवी, लैपटॉप, कंप्यूटर और अन्य घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने वाली कंपनियों का भी है.

3) कंपनियों को नुकसान

सेमीकंडक्टर्स की कमी का सबसे ज्यादा नुकसान ऑटोमोबाइल सेक्टर को हुआ है. उत्पादन मे कमी आने से कंपनियों को नुकसान हो रहा है, उत्पादन ठप होने के कारण कई यूनिट्स पर ताला जड़ना पड़ रहा है और इन चीजों का सीधा असर उनके शेयर्स पर नजर आ रहा है. बीते महीने टाटी मोटर्स की तरफ से जारी की गई जानकारी के मुताबिक चिप की कमी से वाहनों के निर्माण पर असर पड़ा जिससे कंपनी के शेयर 10 फीसदी कम हो गए.

चिप की कमी के कारण उत्पादन पर भी पड़ा असर
चिप की कमी के कारण उत्पादन पर भी पड़ा असर

4) ग्राहकों का बढ़ता इंतज़ार और घटता रोज़गार

ऑटोमाबाइल से लेकर मोबाइल बनाने वाली कंपनियां चिप्स की कमी के कारण उत्पादन नहीं कर पा रही तो उनके ग्राहकों का इंतज़ार लंबा हो रहा है. कार से लेकर मोबाइल तक की कीमतों में इजाफा हो रहा है. साथ ही चिप्स की कमी के कारण कम फीचर्स की कार मिल रही है, जो ग्राहकों के लिए बुरी खबर है. नए फीचर्स वाली कार और फोन समेत तमाम उपकरणों के लिए इंतजार और लंबा हो सकता है.

इसके इलावा चिप्स की कमी के कारण जिस भी सेक्टर में उत्पादन पर असर पड़ रहा है, वहां सीधा असर रोजगार पर पड़ रहा है. कहीं शिफ्ट तो कहीं काम के दिन और कहीं काम के घंटे कम कर दिए गए हैं जिसके चलते रोजगार भी छिन रहा है. इससे पहले भी इन सेक्टर्स से जुड़े लाखों लोगों का रोजगार कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया था.

क्या सेमीकंडक्टर का उत्पादन कम हो रहा है ?

सेमीकंडक्टर की मांग इन दिनों उसके उत्पादन से कहीं अधिक है इसलिये ये संकट पैदा हुआ है. दरअसल सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल फीचर्स के मुताबिक किया जाता है. चिप उत्पादक कंपनियों ने उत्पादन तो बढ़ाया है लेकिन इसकी ज्यादातर सप्लाई कंप्यूटर, लैपटॉप से लेकर गेमिंग कनसोल और घरेलू उपकरण बनाने वाली कंपनियों को हो रही है. सेमीकंडक्टर की मांग बहुत अधिक होने के कारण कंपनियां इनका उत्पादन और सप्लाई उतनी तेजी से नहीं कर पा रही हैं. जानकार बताते हैं कि बीते 5 सालों में चिप्स का उत्पादन करीब 6 फीसदी की दर से बढ़ा है लेकिन कोरोना काल में पैदा हुए संकट में ये फिलहाल नाकाफी साबित हो रहा है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट ?

जानकार बताते हैं कि 2 दशक पहले तक कार समेत दूसरे वाहनों में आटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स का खर्च करीब 18 से 20 फीसदी होता था लेकिन अब ये दोगुना हो गया है. मार्किट में जैसे-जैसे हाइटैक गाड़ियां आ रही हैं और निर्माता कंपनियां कारों में ज्यादा और बेहतर फीचर दे रही हैं तो इनपर होने वाले खर्च और इनके इस्तेमाल का अंदाजा लगाया जा सकता है. कुछ यही ट्रेंड स्मार्ट फोन, लैपटॉप, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि में भी देखा गया है. जिनकी बढ़ती मांग ने चिप्स उत्पादकों के लिए नई चुनौतियां खड़ी की हैं.

दुनिया में कंप्यूटर चिप के सबसे बड़े निर्माता सैमसंग ने चेताया है कि सेमीकंड्क्टर इंडस्ट्री में गंभीर असंतुलन है जिसका व्यापक असर आने वाले दिनों में दिखाई दे सकता है.

ताइवान के सेमीकंडक्टर का उत्पादन करने वाली कंपनी के अधिकारी भी मानते हैं कि ये कमी इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है. आने वाले दिनों में कमी को पूरा करने की कोशिश तो होगी लेकिन इस कमी का असर साल 2022 की शुरुआत तक दिखेगा.

ऑटो सेक्टर के जानकार मानते हैं कि इस चिप संकट की वजह से कार उद्योग की बिक्री में करीब 110 अरब डॉलर यानि 8 हजार करोड़ से ज्यादा की कमी आ सकती है.

कार से लेकर लैपटॉप और गेमिंग कंसोल से लेकर कई घरेलू उपकरणों में होता है चिप का इस्तेमाल
कार से लेकर लैपटॉप और गेमिंग कंसोल से लेकर कई घरेलू उपकरणों में होता है चिप का इस्तेमाल

ये भी जान लीजिए

-इस वक्त दुनियाभर में लाखों कारें फैक्ट्री में इन चिप्स के इंतज़ार में खड़ी हैं.

-एक कार में मोटे तौर पर 1400 सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है.

-फोर्ड, टैस्ला, बीएमडब्ल्यू जैसी कार निर्माता कंपनियों को भी नुकसान हुआ है.

-दुनिया की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनियों में शुमार जनरल मोटर्स को चिप की कमी के कारण 2 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है.

-भारत में भी टाटा से लेकर महिंद्रा समेत तमाम कार निर्माताओं के उत्पादन पर असर पड़ा है.

-दुनियाभर में ऑटो सेक्टर ने तय लक्ष्य से 40 लाख कम वाहनों का उत्पादन करेंगे जो और भी बढ़ सकता है.

-मोटे तौर पर इससे ऑटो मोबाइल सेक्टर की बिक्री में110 बिलियन डॉलर की कमी का अनुमान है.

-दुनियाभर में हर साल 1 लाख करोड़ चिप्स का उत्पादन होता है

-एक चिप को बनने में दो महीने का वक्त लगता है.

-सिलिकॉन को 3000 अलग-अलग चरणों में दर्जनों मशीन से होकर गुजरने के बाद बनता है एक चिप

-चीन की चिप्स बनाने वाली कंपनी पर अमेरिका के प्रतिबंधों ने भी इस कमी को बढ़ाने में अहम रोल निभाया.

-चिप्स बनाने के लिए काफी मात्रा में साफ पानी की जरूरत होती है

-ताइवान की TSMC कंपनी ने साल 2019 में चिप्स बनाने में रोजाना 63,000 टन पानी का इस्तेमाल किया. ये दो जल स्रोंतो के पानी का 10 फीसदी हिस्सा था.

-साल 2021 में जब ताइवान ने 50 साल का सबसे बुरा सूखा झेला तो वहां मुश्किलें और बढ़ गईं.

-जापान की रेनॉसेस इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री में आग लगने से भी हालात खराब हुए. फैक्ट्री में 95 फीसदी काम होने लगा है लेकिन उत्पादन के पिछले स्तर तक पहुंचना अब भी चुनौती बना हुआ है.

-गेमिंग कंसोल से लेकर नए स्मार्टफोन या अन्य उपकरणों के लिए आपको एक से दो साल का इंतज़ार भी करना पड़ सकता है. या कंपनियां डेढ से दोगुने दाम तक वसूल सकती हैं.

दुनिया के बड़े सेमीकंडक्टर चिप उत्पादक
दुनिया के बड़े सेमीकंडक्टर चिप उत्पादक

आखिर क्या है इस समस्या का उपाय ?

आने वाले वक्त में सेमीकंडक्टर चिप्स का इस्तेमाल बढ़ेगा क्योंकि ऑटोमैटिक चीजों से आप लगातार घिर रहे हैं. इसलिये चिप सेक्टर में बेहतर अनुसंधान की जरूरत है. टेस्ला ने अपने वाहनों के लिए अपना सॉफ्टवेयर यानि चिप का विकल्प इजाद किया है जिससे उसे अन्य वाहन निर्माताओं की तरह सेमीकंडक्टर की डिमांड सप्लाई पर निर्भर नहीं रहना पड़ा. साथ ही सेमीकंडक्टर चिप के गिने चुने निर्माता होने के कारण इस सेक्टर में ऐसी स्थिति कभी भी आ सकती है. इसलिये इसका विस्तार करना होगा, नई कंपनियों को आगे आना होगा जिससे सेमीकंडक्टर का उत्पादन बढ़ेगा, लोगों को रोजगार मिलेगा और हर सेक्टर को ये छोटी लेकिन बहुत जरूरी सेमीकंडक्ट चिप.

ये भी पढ़ें: नई ड्रोन नीति और भारत का भविष्य

हैदराबाद: क्या आप जानते हैं कि आपकी कार, लैपटॉप, टीवी, स्मार्टफोन और कई दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण एक छोटी चिप के बगैर बेकार हैं. दरअसल हाइटैक गाड़ियों में जितने भी नए फीचर्स होते हैं वो एक छोटी सी चिप की मदद से काम करते हैं. जिसे सेमीकंडक्टर चिप कहते हैं. आज इस सेमीकंडक्टर की बात इसलिये क्योंकि दुनिया इस वक्त इसकी कमी से जूझ रही है, जिसके चलते कोरोना संकट काल में दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार पर असर पड़ रहा है. आखिर क्या है ये चिप, जिसकी कमी ने दुनियाभर की ऑटोमोबाइल समेत कई कंपनियों के सामने मुश्किल खड़ी कर दी है.

किस काम आती है सेमीकंडक्टर चिप ?

सेमीकंडक्टर चिप सिलिकॉन पर विभिन्न मैटल्स की मदद से बनाया जा सकता है. इनके जरिये किसी भी डिवाइस को मनचाहे कमांड देकर उसके स्वचालित कार्य करवाया जा सकता है. इनका उपयोग टीवी का रिमोट बनाने से लेकर कार तक में होता है, एक बटन दबाकर आप टीवी या अपनी कार का कोई फीचर इस्तेमाल करते हैं तो वो सब इन सेमीकंडक्टर चिप्स की बदौलत होता है. इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल स्मार्टफोन, कार, घरेलू उपकरणों (home appliances), इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (electronic devices) गैजेट्स आदि में होता है.

एक छोटी सी चिप की कमी से हो रहा अरबों का नुकसान
एक छोटी सी चिप की कमी से हो रहा अरबों का नुकसान

क्यों हो रही है चिप की कमी ?

दुनियाभर में चिप की कमी के लिए भी कोरोना महामारी ही जिम्मेदार है. बड़ी चिप्स निर्माता कंपनियां अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में हैं जो दुनिया की ज्यादातर मांग को पूरा करते हैं. ऑटो इंडस्ट्री जैसे बड़े क्षेत्र एडवांस में सेमाकंडक्टर के ऑर्डर देते हैं. लेकिन कोरोना महामारी के कारण मांग और पूर्ति (demand and supply) का खेल ऐसा बिगाड़ा कि दुनिया चिप शॉर्टेज की स्थिति में पहुंच गई.

दरअसल बीते साल कोरोना के चलते पूरी दुनिया तालाबंदी की स्थिति में पहुंच गई. हर सेक्टर की बिक्री कम हुई तो सेमीकंडक्टर्स की मांग में कमी शुरू हुई और चिप बनाने वाली अमेरिका और चीन की कंपनियों को बहुत कम ऑर्डर मिले. इनमें ऑटोमोबाइल सेक्टर भी शामिल है, जिसने कोरोना के चलते डिमांड कम होने पर चिप्स के ऑर्डर बहुत कम दिए. इस बीच बड़े पैमाने पर वर्क फ्रॉम होम और बच्चों की ऑनलाइन क्लास शुरू हुई तो फोन, लैपटॉप, डेस्कटॉप आदि की डिमांड में तेजी आ गई और चिप्स की डिमांड और सप्लाई इन सेक्टर्स में होने लगी.

कोरोना ने बिगाड़ा चिप के सप्लाई डिमांड का खेल
कोरोना ने बिगाड़ा चिप के सप्लाई डिमांड का खेल

इस बीच एक वक्त ऐसा भी आया जब महामारी के डर से लोग सार्वजनिक परिवहन से ज्यादा अपनी कार खरीदने को तवज्जो देने लगे. ऐसे में बाजार में अचानकर से कारों की डिमांड भी बढ़ गई लेकिन चिप बनाने वाली कंपनियां बाजार से आने वाली इस मांग को पूरा नहीं कर पा रही. कोरोना महामारी में दुनिया घर की चारदीवारी में कैद हो गई थी रेस्टोरेंट से लेकर सिनेमा हॉल तक बंद रहे जिसके चलते घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की भी मांग बढ़ गई.

इस कमी का क्या असर हुआ ?

1) ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर असर

आज हम अपने चारों तरफ हाइटैक कारों से घिरे हुए हैं. हर नई लॉन्च होने वाली कार नए फीचर्स के जरिये ही मार्केट में अपनी जगह बनाती है. लेकिन ये सभी फीचर सेमीकंडक्टर चिप्स पर निर्भर है. सेमीकंडक्टर चिप्स की कमी का सबसे ज्यादा असर ऑटो इंडस्ट्री पर पड़ा है. दरअसल बीते साल कोरोना के कारण ऑटो इंडस्ट्री की डिमांड कम हुई तो चिप्स बनाने वाली कंपनियों को भी ऑटो इडस्ट्री से कम मांग हुई लेकिन इसी दौर में मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, डेस्कटॉप, गैजेटस, गेमिंग कनसोल की मांग बढ़ गई तो चिप्स की सप्लाई इन सेक्टर्स की तरफ हो गई. नतीजा ये हुआ कि ऑटो इंडस्ट्री की चिप्स की मांग पूरी होने में दिक्कतें आ रही है.

चिप्स की कमी के कारण कई कार कंपनियों का उत्पादन ठप है, कई बड़ी कार निर्माता कंपनियों के उत्पादन में कमी आई है. इनमें महिंद्रा से लेकर टाटा और ऑडी, निसान, रेनॉ जैसी तमाम कंपनियां शामिल हैं. गाड़ियों के उत्पादन पर असर पड़ा तो लोगों को कार पाने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है और ये वेटिंग लिस्ट लंबी हो रही है.

चिप के इंतजार में हैं दुनिया की लाखों कारें
चिप के इंतजार में हैं दुनिया की लाखों कारें

चिप्स की डिमांड ज्यादा होने के कारण कारों की कीमत भी बढ़ी है और कुछ कंपनियों ने अपनी गाड़ियों में फीचर्स कम करने शुरू कर दिए हैं. दुनियाभर के कई देशों में इलेक्ट्रॉनिक कारों का चलन भी बढ़ रहा है लेकिन यहां भी चिप की कमी कारों के उत्पादन और बिक्री पर असर डाल रही है. ऑटो सेक्टर में उत्पादन पर असर पड़ा तो सीधा असर रोजगार पर पड़ना लाजमी है.

2) स्मार्टफोन, टीवी और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बाजार पर असर

दुनियाभर में स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों को भी चिप्स की कमी का सामना करना पड़ रहा है. एप्पल और सैमसंग जैसी दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल निर्माता कंपनियां फोन की डिमांड पूरी नहीं कर पा रही हैं. पहले चिप्स और फिर मोबाइल के उत्पादन में कमी का असर इनकी बढ़ती कीमतों के रूप में देखा जा सकता है. ऐसा ही हाल टीवी, लैपटॉप, कंप्यूटर और अन्य घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने वाली कंपनियों का भी है.

3) कंपनियों को नुकसान

सेमीकंडक्टर्स की कमी का सबसे ज्यादा नुकसान ऑटोमोबाइल सेक्टर को हुआ है. उत्पादन मे कमी आने से कंपनियों को नुकसान हो रहा है, उत्पादन ठप होने के कारण कई यूनिट्स पर ताला जड़ना पड़ रहा है और इन चीजों का सीधा असर उनके शेयर्स पर नजर आ रहा है. बीते महीने टाटी मोटर्स की तरफ से जारी की गई जानकारी के मुताबिक चिप की कमी से वाहनों के निर्माण पर असर पड़ा जिससे कंपनी के शेयर 10 फीसदी कम हो गए.

चिप की कमी के कारण उत्पादन पर भी पड़ा असर
चिप की कमी के कारण उत्पादन पर भी पड़ा असर

4) ग्राहकों का बढ़ता इंतज़ार और घटता रोज़गार

ऑटोमाबाइल से लेकर मोबाइल बनाने वाली कंपनियां चिप्स की कमी के कारण उत्पादन नहीं कर पा रही तो उनके ग्राहकों का इंतज़ार लंबा हो रहा है. कार से लेकर मोबाइल तक की कीमतों में इजाफा हो रहा है. साथ ही चिप्स की कमी के कारण कम फीचर्स की कार मिल रही है, जो ग्राहकों के लिए बुरी खबर है. नए फीचर्स वाली कार और फोन समेत तमाम उपकरणों के लिए इंतजार और लंबा हो सकता है.

इसके इलावा चिप्स की कमी के कारण जिस भी सेक्टर में उत्पादन पर असर पड़ रहा है, वहां सीधा असर रोजगार पर पड़ रहा है. कहीं शिफ्ट तो कहीं काम के दिन और कहीं काम के घंटे कम कर दिए गए हैं जिसके चलते रोजगार भी छिन रहा है. इससे पहले भी इन सेक्टर्स से जुड़े लाखों लोगों का रोजगार कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया था.

क्या सेमीकंडक्टर का उत्पादन कम हो रहा है ?

सेमीकंडक्टर की मांग इन दिनों उसके उत्पादन से कहीं अधिक है इसलिये ये संकट पैदा हुआ है. दरअसल सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल फीचर्स के मुताबिक किया जाता है. चिप उत्पादक कंपनियों ने उत्पादन तो बढ़ाया है लेकिन इसकी ज्यादातर सप्लाई कंप्यूटर, लैपटॉप से लेकर गेमिंग कनसोल और घरेलू उपकरण बनाने वाली कंपनियों को हो रही है. सेमीकंडक्टर की मांग बहुत अधिक होने के कारण कंपनियां इनका उत्पादन और सप्लाई उतनी तेजी से नहीं कर पा रही हैं. जानकार बताते हैं कि बीते 5 सालों में चिप्स का उत्पादन करीब 6 फीसदी की दर से बढ़ा है लेकिन कोरोना काल में पैदा हुए संकट में ये फिलहाल नाकाफी साबित हो रहा है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट ?

जानकार बताते हैं कि 2 दशक पहले तक कार समेत दूसरे वाहनों में आटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स का खर्च करीब 18 से 20 फीसदी होता था लेकिन अब ये दोगुना हो गया है. मार्किट में जैसे-जैसे हाइटैक गाड़ियां आ रही हैं और निर्माता कंपनियां कारों में ज्यादा और बेहतर फीचर दे रही हैं तो इनपर होने वाले खर्च और इनके इस्तेमाल का अंदाजा लगाया जा सकता है. कुछ यही ट्रेंड स्मार्ट फोन, लैपटॉप, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि में भी देखा गया है. जिनकी बढ़ती मांग ने चिप्स उत्पादकों के लिए नई चुनौतियां खड़ी की हैं.

दुनिया में कंप्यूटर चिप के सबसे बड़े निर्माता सैमसंग ने चेताया है कि सेमीकंड्क्टर इंडस्ट्री में गंभीर असंतुलन है जिसका व्यापक असर आने वाले दिनों में दिखाई दे सकता है.

ताइवान के सेमीकंडक्टर का उत्पादन करने वाली कंपनी के अधिकारी भी मानते हैं कि ये कमी इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है. आने वाले दिनों में कमी को पूरा करने की कोशिश तो होगी लेकिन इस कमी का असर साल 2022 की शुरुआत तक दिखेगा.

ऑटो सेक्टर के जानकार मानते हैं कि इस चिप संकट की वजह से कार उद्योग की बिक्री में करीब 110 अरब डॉलर यानि 8 हजार करोड़ से ज्यादा की कमी आ सकती है.

कार से लेकर लैपटॉप और गेमिंग कंसोल से लेकर कई घरेलू उपकरणों में होता है चिप का इस्तेमाल
कार से लेकर लैपटॉप और गेमिंग कंसोल से लेकर कई घरेलू उपकरणों में होता है चिप का इस्तेमाल

ये भी जान लीजिए

-इस वक्त दुनियाभर में लाखों कारें फैक्ट्री में इन चिप्स के इंतज़ार में खड़ी हैं.

-एक कार में मोटे तौर पर 1400 सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है.

-फोर्ड, टैस्ला, बीएमडब्ल्यू जैसी कार निर्माता कंपनियों को भी नुकसान हुआ है.

-दुनिया की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनियों में शुमार जनरल मोटर्स को चिप की कमी के कारण 2 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है.

-भारत में भी टाटा से लेकर महिंद्रा समेत तमाम कार निर्माताओं के उत्पादन पर असर पड़ा है.

-दुनियाभर में ऑटो सेक्टर ने तय लक्ष्य से 40 लाख कम वाहनों का उत्पादन करेंगे जो और भी बढ़ सकता है.

-मोटे तौर पर इससे ऑटो मोबाइल सेक्टर की बिक्री में110 बिलियन डॉलर की कमी का अनुमान है.

-दुनियाभर में हर साल 1 लाख करोड़ चिप्स का उत्पादन होता है

-एक चिप को बनने में दो महीने का वक्त लगता है.

-सिलिकॉन को 3000 अलग-अलग चरणों में दर्जनों मशीन से होकर गुजरने के बाद बनता है एक चिप

-चीन की चिप्स बनाने वाली कंपनी पर अमेरिका के प्रतिबंधों ने भी इस कमी को बढ़ाने में अहम रोल निभाया.

-चिप्स बनाने के लिए काफी मात्रा में साफ पानी की जरूरत होती है

-ताइवान की TSMC कंपनी ने साल 2019 में चिप्स बनाने में रोजाना 63,000 टन पानी का इस्तेमाल किया. ये दो जल स्रोंतो के पानी का 10 फीसदी हिस्सा था.

-साल 2021 में जब ताइवान ने 50 साल का सबसे बुरा सूखा झेला तो वहां मुश्किलें और बढ़ गईं.

-जापान की रेनॉसेस इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री में आग लगने से भी हालात खराब हुए. फैक्ट्री में 95 फीसदी काम होने लगा है लेकिन उत्पादन के पिछले स्तर तक पहुंचना अब भी चुनौती बना हुआ है.

-गेमिंग कंसोल से लेकर नए स्मार्टफोन या अन्य उपकरणों के लिए आपको एक से दो साल का इंतज़ार भी करना पड़ सकता है. या कंपनियां डेढ से दोगुने दाम तक वसूल सकती हैं.

दुनिया के बड़े सेमीकंडक्टर चिप उत्पादक
दुनिया के बड़े सेमीकंडक्टर चिप उत्पादक

आखिर क्या है इस समस्या का उपाय ?

आने वाले वक्त में सेमीकंडक्टर चिप्स का इस्तेमाल बढ़ेगा क्योंकि ऑटोमैटिक चीजों से आप लगातार घिर रहे हैं. इसलिये चिप सेक्टर में बेहतर अनुसंधान की जरूरत है. टेस्ला ने अपने वाहनों के लिए अपना सॉफ्टवेयर यानि चिप का विकल्प इजाद किया है जिससे उसे अन्य वाहन निर्माताओं की तरह सेमीकंडक्टर की डिमांड सप्लाई पर निर्भर नहीं रहना पड़ा. साथ ही सेमीकंडक्टर चिप के गिने चुने निर्माता होने के कारण इस सेक्टर में ऐसी स्थिति कभी भी आ सकती है. इसलिये इसका विस्तार करना होगा, नई कंपनियों को आगे आना होगा जिससे सेमीकंडक्टर का उत्पादन बढ़ेगा, लोगों को रोजगार मिलेगा और हर सेक्टर को ये छोटी लेकिन बहुत जरूरी सेमीकंडक्ट चिप.

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