कोल्लम : केरल के मछुआरे अपनी बोट कबाड़ियों को बेच रहे हैं. जिस बोट को खरीदने में उन्होंने लाखों रुपये खर्च किए, वह उसे कौड़ियों के भाव में बेचने को मजबूर हैं. 40.50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मछुआरों की बोट स्क्रैप में बिक रही है. 2018 की भीषण बाढ़ में राहत कार्य से तारीफ बटोरने वाले मछुआरों का दर्द यह है कि उन्हें कभी 'केरल की आर्मी' कहने वाली सरकार भी उनका दर्द सुनने को राजी नहीं है. एक ओर डीजल की बेलगाम कीमत के कारण समंदर में बोट चलाना महंगा पड़ रहा है तो दूसरी ओर सरकार ने रजिस्ट्रेशन फीस में बढ़ाकर उनके कारोबार की हालत पतली कर दी है. हालत यह है कि कोल्लम के मछुआरे अपनी 300 नाव कबाड़ियों को बेच चुके हैं और कई लोग बोट बेचने की तैयारी कर रहे हैं.
मछुआरों का कहना है कि अगर नावों का उपयोग नहीं होता है तो समंदर किनारे पड़े-पड़े उसमें जंग लग जाता है. फिर उसे स्क्रैप में बेचने के सिवाय और कोई दूसरा रास्ता नहीं होता है. नावों के कबाड़ में बिकने के कारण अब स्थिति यह है कि कोल्लम के बंदरगाहों पर स्क्रैपिंग यूनिट बन रही हैं.ऑल केरल मैकेनाइज्ड बोट ओनर्स एसोसिएशन के स्टेट प्रेजिडेंट पीटर माथियास के अनुसार, पहले कोल्लम जिले में केवल दो बोट स्क्रैपिंग यार्ड थे, अब ऐसी 12 स्क्रैपिंग यूनिटें दिन रात नावों से स्क्रैप निकाल रही हैं. पहले कोच्चि के थोप्पम्पडी में के दो स्क्रैपिंग यार्ड बने थे. अब कोझिकोड, कन्नूर और बेपोर में नई स्क्रैपिंग यूनिट बन रही हैं.
पीटर माथियास ने बताया कि मछुआरे पिछले कई साल से मौसम की बेरुखी झेल रहे थे. उनके पास समंदर में जाकर मछली पकड़ने के दिन ही कम पड़ गए थे. चक्रवात और कोविड का असर कम हुआ तो मछली पकड़ने वालों ने जब थोड़ी राहत की सांस ली, डीजल के रेट ने तबाह करना शुरू कर दिया. मछुआरों का कहना है कि गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए एक बोट के लिए प्रतिदिन 600 लीटर डीजल की आवश्यकता होती है. उथले पानी में मछली पकड़ने के लिए भी हर दिन 150 लीटर डीजल की आवश्यकता होती है. अगर डीप-सी फिशिंग एक हफ्ते तक की जाए तो हर बोट को 3000 लीटर डीजल की जरूरत होगी. इसके अलावा मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले जाल, रस्सी, स्पेयर पार्ट्स और अन्य उपकरणों की कीमतों में बढ़ोतरी से मछुआरों की परेशानी बढ़ी है.
पीटर माथियास ने बताया कि फिशिंग सेक्टर बड़े संकट से गुजर रहा है. मछली पकड़ने के कारोबार में मछुआरों का नुकसान हो रहा है. मछुआरे कर्ज की जाल में फंस रहे हैं. आर्थिक तंगी के कारण जो लोग काम-धंधा बंदकर अपनी बोट बेचना चाहते हैं, उन्हें खरीदार नहीं मिल रहा है. इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में मछुआरों के पास कबाड़ डीलरों को नावें बेचने के अलावा और कोई चारा नहीं है. उन्होंने बताया कि एक नाव में करीब 40-70 मछुआरे मछली पकड़ने जाते हैं. जब एक बोट बंद होती है तो इन 40-70 लोगों के परिवार की इनकम भी बंद हो जाती है. ऑल केरल बोट ऑपरेटर्स एसोसिएशन ने केंद्र और राज्य सरकारों से मैकेनाइज्ड बोट सेक्टर को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया है. वे फिशिंग सेक्टर के लिए ईंधन सब्सिडी की मांग कर रहे हैं.
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