देहरादून(उत्तराखंड): देवभूमि उत्तराखंड समेत अन्य पर्वतीय राज्य अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सीमित संसाधनों में सिमटे हुए हैं. प्रकृति ने उत्तराखंड समेत अन्य पर्वतीय राज्यों को कई अनमोल तोहफों से भी नवाजा है. जियोथर्मल एनर्जी इन्हीं में से एक है. वाडिया इंस्टीट्यूट जियोथर्मल एनर्जी के साथ ही विंड और सोलर एनर्जी को मिक्स कर हाईब्रिड एनर्जी बनाए जाने पर जोर दे रहा है. अगर हिमालयी राज्यों में हाईब्रिड एनर्जी का सही इस्तेमाल किया जाये तो इससे बिजली की समस्या को दूर किया जा सकता है.
गर्मियां शुरू होते ही देश के तमाम राज्यों में बिजली संकट गहरा जाता है. जिसके चलते कई राज्यों को महंगे दामों पर अन्य राज्यों से बिजली खरीदनी पड़ती है. ऐसे में वैज्ञानिक बिजली संकट को दूर करने के लिए समय-समय पर नई तकनीकी ईजाद करने की कवायद में जुटे रहते हैं. लिहाजा, देश के हिमालयी राज्यों के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर उर्जा उत्पन्न करने की कोशिशें हुई. इसे लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट ने उत्तराखंड में भी पहल को शुरू की, मगर साल 2021 में रैणी में आई आपदा के चलते ये प्रोजेक्ट चल नहीं पाया.
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दरअसल, हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद तप्त कुंड यानी गर्म पानी के स्रोत लोगों के लिए हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है. हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद तप्त कुंड को देखने के लिए दूरदराज से लोग पहुंचते हैं. यही नहीं, तप्त कुंड का अभी तक कोई खास इस्तेमाल नहीं हो पाया है. हालांकि, कई जगहों पर तप्त कुंड का इस्तेमाल श्रद्धालु स्नान करने के लिए करते हैं, लेकिन वाडिया की रिसर्च के अनुसार तप्त कुंड से बिजली का भी उत्पादन किया जा सकता है. दरअसल, वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कई सालों की मेहनत के बाद जियोथर्मल स्प्रिंग्स से बिजली पैदा करने की रिसर्च में सफलता हासिल की है.
वैज्ञानिकों के अनुसार जियो थर्मल स्प्रिंग पर बायनरी पावर प्लांट लगाकर बिजली पैदा की जा सकेगी. वैज्ञानिक जियोथर्मल स्प्रिंग के ही विंड और सोलर एनर्जी को मिक्स कर हाईब्रिड एनर्जी बनाए जाने पर जोर दे रहे हैं. इस हाईब्रिड एनर्जी से प्रयाप्त मात्रा में ऊर्जा उपन्न की जा सकेगी. साथ ही मौसम और परिस्थितियों के अनुसार एक कांस्टेंट रूप में बिजली मिल सकेगी. मौसम खराब होने पर अगर सोलर एनर्जी से बिजली नहीं मिलेगी तो भी, जियोथर्मल स्प्रिंग और विंड एनर्जी से बिजली का उत्पादन होता रहेगा. अगर तीनों एनर्जी एक साथ बिजली उत्पादन करेंगे तो काफी मात्रा में बिजली बनेगी.
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वैज्ञानिकों के अनुसार देश के हिमालयी क्षेत्रों में भारी संख्या में तप्त कुंड मौजूद हैं. अभी तक करीब 340 तप्त कुंड के स्रोत ही चिन्हित किए गए हैं. जिसमें उत्तराखंड में मौजूद करीब 40 तप्त कुंड शामिल हैं. उत्तराखंड में मौजूद 40 जियोथर्मल स्प्रिंग में से 20 गढ़वाल क्षेत्र और 20 कुमाऊं क्षेत्र में मौजूद हैं. यही नहीं, वाडिया के वैज्ञानिक समीर तिवारी ने कुछ साल पहले जोशीमठ के तपोवन में मौजूद तप्त कुंड पर रिसर्च की. हालांकि, उस अध्ययन से यह बात सामने आई थी कि तपोवन स्थित जियोथर्मल स्प्रिंग्स से करीब 5 मेगावाट तक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है.
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद्र साईं ने बताया उत्तराखंड राज्य में जियोसिंटिफिक इन्वेस्टिगेशन के जरिए 40 जियोथार्मल स्प्रिंग्स की जानकारी मिली. अध्यनन से पता चला कि इन सभी जियोथार्मल स्प्रिंग्स से बिजली उत्पन्न की जा सकती है. इतनी बिजली उत्पन्न नहीं हो सकती कि बिजली की कमी को पूरा किया जा सके. इसमें कुछ और एनर्जी को जोड़कर, हाईब्रिड एनर्जी के जरिए काफी मात्रा में बिजली का उत्पादन किया जा सकता है.
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उन्होंने कहा उत्तराखंड राज्य में हर समय सन साइन, विंड मिलता है. ऐसे में सोलर और विंड से एनर्जी का उत्पादन किया जा सकता है. लिहाजा, प्रदेश में जहा-जहा जियोथार्मल स्प्रिंग्स है वहां पर सोलर और विंड को लेकर हाईब्रिड एनर्जी के जरिए ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है. इसके लिए अगर इन एनर्जी को लेकर टेक्नोलॉजी डेवलप करेंगे तो काफी मात्रा में बिजली का उत्पादन कर सकेगें. यही नहीं, इससे ना सिर्फ काफी मात्रा में बिजली का उत्पादन होगा बल्कि स्थानीय लोगो को रोजगार भी मिलेगा.
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वहीं, इस मामले पर जियोलॉजिस्ट एसपी सती ने बताया प्रदेश में मौजूद जियो थार्मल एनर्जी अभी तक अनटेप्ड है. इसके साथ ही विंड एनर्जी का भी अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया है, जबकि कई देश विंड एनर्जी का इस्तेमाल कर रहे हैं. सोलर एनर्जी पर तेजी से काम जरूर हो रहा है, लेकिन आने वाले समय में गैर परंपरागत एनर्जी पर जाना होगा. ऐसे में जियोथार्मल एनर्जी, विंड एनर्जी और सोलर एनर्जी को हाइब्रिड एनर्जी के रूप में इस्तेमाल पर जाना चाहिए. पर्वतीय क्षेत्रों में इस हाईब्रिड एनर्जी की बड़ी संभावनाएं हैं.
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