देहरादूनः उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर सीजन 15 फरवरी से 15 जून तक माना जाता है. लेकिन इस बार सर्दियों में ही वनाग्नि की घटनाओं ने वन विभाग की नींद हराम कर दी है. सर्दियों के लिहाज से देखें तो फॉरेस्ट फायर ने पिछले साल का रिकॉर्ड अब तक तोड़ दिया. उत्तराखंड में तो सर्दियों के लिहाज से यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में दोगुना हो चुका है. ऐसे में अब वन विभाग को आने वाले फॉरेस्ट फायर सीजन की चिंता सताने लगी है. पिछले दो महीने में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने जंगलों में लगी आग के आंकड़े जारी किए हैं जो बेहद चौंकाने वाले हैं. खास तौर पर हिमालयी राज्य उत्तराखंड और हिमाचल को यह आंकड़े अलार्मिंग सिचुएशन के लिए सतर्क कर रहे हैं.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने नवंबर और दिसंबर के जारी किए आंकड़े:
- उत्तराखंड में दो महीना के भीतर करीब 1500 से ज्यादा घटनाएं की गई रिकॉर्ड.
- राज्य में पिछले साल इससे पहले 556 घटनाएं की गई थी रिकॉर्ड.
- हिमाचल प्रदेश में 1199 आग की घटनाएं रिकॉर्ड की गई.
- मध्य प्रदेश में 577 घटनाएं फॉरेस्ट फायर की हुई.
- महाराष्ट्र में 445 और कर्नाटक में 434 आग की घटनाओं को रिकॉर्ड किया गया.
साल 2024 फॉरेस्ट फायर के लिहाज से संवेदनशील: वनाग्नि को लेकर साल 2024 बेहद ज्यादा संवेदनशील है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस साल ऐसे कई कारण राज्य में फॉरेस्ट फायर में बढ़ोतरी को आशंकित कर रहे हैं, जिनके कारण वन विभाग के सामने चुनौतियां पहले से कहीं ज्यादा होगी. उत्तराखंड के लिए हादसे देखें तो साल 2024 चुनावी वर्ष है. इस दौरान लोकसभा से लेकर ग्राम पंचायत और निकाय चुनाव तक राज्य में होने हैं. जाहिर है कि चुनाव के कारण प्रशासन और सरकार का फोकस चुनाव पर ही रहेगा और मेन पावर भी चुनावी ड्यूटी में व्यस्त रहेगी. इसलिए वनाग्नि पर रोकथाम को लेकर मानव संसाधन की समस्या आ सकती है.
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दूसरा सबसे बड़ा कारण मौसम का बदलाव है. दरअसल, सर्दियों के मौसम में ही बारिश की मौजूदगी कम दिखाई दे रही है और लंबे समय से बारिश न होने के कारण जंगलों पर भी इसका असर पड़ रहा है. इस तरह से देखा जाए तो गर्मियों में भी मौसम की यही स्थिति फॉरेस्ट फायर की संभावनाओं को बढ़ा सकती है.
तैयार किया गया डाटा: जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर वन विभाग भी आने वाली चुनौतियों को समझ रहा है. शायद इसीलिए, अभी से इसके रोकथाम के लिए नए प्लान तैयार किया जा रहे हैं. प्रमुख वन संरक्षक हॉफ ने भी इसको लेकर अधिकारियों के साथ विस्तृत चर्चा के लिए बैठक करनी शुरू कर दी है. उधर मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा की तरफ से अब तक हुए अध्ययन और रिकॉर्ड के आधार पर डाटा तैयार कर लिया गया है. इसी आधार पर मानव संसाधन को तैयार करते हुए वन क्षेत्र में अधिकारियों की ड्यूटी लगाई जा रही है.
शिकार के लिए भी लगाई जाती है आग: सर्दियों के समय में जंगलों में आग की एक वजह शिकारी भी हो सकते हैं. माना जा रहा है कि कस्तूरी मृग के शिकार को लेकर इस समय तस्कर सक्रिय हो जाते हैं और आग लगाकर इन्हें दूसरी जगह खड़े रखने की कोशिश की जाती है. मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा कहते हैं कि वन्य जीव तस्करों की संभावनाओं को देखते हुए भी सूचना तंत्र को बढ़ाया जा रहा है. ऐसी सूचना मिलने की स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जा रही है.
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वैसे वनाग्नि केवल उत्तराखंड की चिंता नहीं है. बल्कि बाकी राज्यों में भी फायर सीजन के दौरान फॉरेस्ट फायर बड़ी समस्या बन रही है. हालांकि नई तकनीक और ज्यादा से ज्यादा मानव संसाधन को जताकर इन पर काबू पाने की कोशिश होती है. लेकिन पर्यावरणीय बदलाव के कारण कई बार विकराल आग को काबू कर पाना वन विभाग के लिए मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जरूरत है कि जागरूकता बढ़ाई जाए और इंसान खुद के अस्तित्व से जुड़े जंगलों को खुद ही आग में ना झोंके.
हालांकि, आम लोग भी इस सीजन में जंगलों में लग रही आग को लेकर परेशान हैं. वे भी मानते हैं कि सर्दियों में जिस तरह जंगलों में आग लग रही है, उससे उन्हें भी बेहद ज्यादा नुकसान हो रहा है.