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CJI बोले- कानून बनाने में दूरदर्शिता का अभाव, बिहार का उदाहरण देकर बताई बात

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमना ने कहा कि यह एक मिथक है कि 'न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे (Judges appointing judges propagated myth) हैं', क्योंकि न्यायपालिका, न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया में शामिल कई हितधारकों में से महज एक हितधारक है. उन्होंने कहा कि सरकारों को कानून बनाने की प्रक्रिया में कानून की वजह से उत्पन्न समस्याओं के प्रभावी समाधान के बारे में भी सोचना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि इसे नजरअंदाज किया जा रहा है. उन्होंने बिहार के मद्य निषेध कानून का भी उल्लेख किया.

cji ramana
चीफ जस्टिस एनवी रमना
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Published : Dec 26, 2021, 7:09 PM IST

अमरावती : सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति एनवी रमना () आंध्र प्रदेश दौरे पर हैं. उन्होंने विजयवाड़ा स्थित सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय (Siddhartha Law College Vijayawada) के एक कार्यक्रम को संबोधित किया. सीजेआई ने कहा कि हाल के दिनों में न्यायिक अधिकारियों पर शारीरिक हमले बढ़े हैं और कई बार अनुकूल फैसला नहीं आने पर कुछ पक्षकार प्रिंट और सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों के खिलाफ अभियान चलाते हैं और ये हमले 'प्रायोजित और समकालिक' प्रतीत होते हैं. न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'सरकार से उम्मीद की जाती है और उसका यह कर्तव्य है कि वह सुरक्षित माहौल बनाए ताकि न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी बिना भय के काम कर सके.'

रविवार को सीजेआई रमना ने कहा, यह एक मिथक है कि 'न्यायाधीश ही न्यायाधीशों को नियुक्त कर रहे हैं.' उन्होंने कहा कि मीडिया के नए माध्यमों के पास जानकारी फैलाने की बहुत अधिक क्षमता है लेकिन ऐसा लगता है कि वह सही और गलत, अच्छे और बुरे, वास्तविक और फर्जी के बीच अंतर करने में अक्षम है. मामलों में फैसला तय करने में ‘मीडिया ट्रायल' निर्देशित करने वाला तथ्य नहीं होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से भारत में अभियोजक सरकार के नियंत्रण में रहते हैं. सीजेआई ने कहा, 'इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि वे स्वतत्रं रूप से कार्य नहीं करते. वे कमजोर और अनुपयोगी मामलों को अदालतों तक पहुंचने से रोकने के लिए कुछ नहीं करते. लोक अभियोजक अपने विवेक का इस्तेमाल किए बिना स्वत: ही जमानत अर्जी का विरोध करते हैं. वे सुनवाई के दौरान तथ्यों को दबाते हैं ताकि उसका लाभ आरोपी को मिले.'

उन्होंने सुझाव दिया कि पूरी प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए काम करने की जरूरत है. लोक अभियोजकों को बाहरी प्रभाव से बचाने के लिए उनकी नियुक्ति के लिए स्वतंत्र चयन समिति का गठन किया जा सकता है. अन्य न्यायाधिकार क्षेत्रों का तुलानात्मक अध्ययन कर सबसे बेहतरीन तरीके को अंगीकार किया जाना चाहिए.

बिहार के कानून का उदाहरण दिया

सीजेआई ने कहा कि कानून बनाने के दौरान कानून निर्माताओं को उसकी वजह से उत्पन्न समस्याओं के प्रभावी समाधान के बारे में भी सोचना चाहिए और ऐसा लगता है कि इस सिद्धांत को नजरअंदाज किया जा रहा है. उन्होंने बिहार मद्य निषेद कानून, 2016 का हवाला दिया (CJI cites Bihar Prohibition Act), जिसकी वजह से उच्च न्यायालय में जमानत अर्जियों की बाढ़ आ गई. सीजेआई ने कहा कि कानून बनाने में दूरदर्शिता की कमी (Justice Ramana lack of foresight in legislating) के कारण अदालतों में सीधे तौर पर रुकावट आ सकती है.

यह भी पढ़ें- CJI बनने के बाद पहली बार अपने पैतृक गांव पहुंचे जस्टिस एनवी रमना

प्रधान न्यायाधीश रमना पांचवें श्री लवु वेंकेटवरलु धर्मार्थ व्याख्यान (Sri Lavu Venkatewarlu Endowment Lecture) में 'भारतीय न्यायपालिका- भविष्य की चुनौतियां' विषय पर अपने विचार रख रहे थे. उन्होंने कहा कि लोक अभियोजकों के संस्थान को स्वतंत्र करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि उन्हें पूर्ण आजादी दी जानी चाहिए और उन्हें केवल अदालतों के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है.

न्यायाधीशों की नियुक्ति पर फैलाया जा रहा मिथक

न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'इन दिनों 'न्यायाधीश खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे हैं' जैसे जुमलों को दोहराना चलन हो गया है. मेरा मनाना है कि यह बड़े पैमाने पर फैलाए जाने वाले मिथकों में से एक (Judges appointing judges propagated myth) है. तथ्य यह है कि न्यायपालिका इस प्रक्रिया में शामिल कई हितधारकों में से महज एक हितधारक है.'

यह भी पढ़ें- न्यायपालिका में 50 फीसद महिलाएं हों, चीफ जस्टिस रमना भी कर चुके हैं वकालत : एनसीपी सांसद

मलिक मजहर मामले में सरकार से उम्मीद

उन्होंने अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की कोशिश को लेकर केंद्र सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों द्वारा की गई कुछ नामों की अनुशंसा को अब भी केंद्रीय कानून मंत्रालय की ओर से उच्चतम न्यायालय भेजा जाना है. उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार मलिक मजहर मामले में तय समयसीमा का अनुपालन करेगी.

न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना जांच नहीं !

सीजेआई ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों, खासतौर पर विशेष एजेंसियों को न्यायपालिक पर हो रहे दुर्भावनापूर्ण हमलों से निपटना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब तक न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करता और आदेश पारित नहीं करता, तब तक आमतौर पर अधिकारी जांच की प्रक्रिया शुरू नहीं करते.

उल्लेखनीय है कि हाल में केरल से सांसद जॉन ब्रिट्टस ने उच्च और उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन विधयेक-2021 पर चर्चा के दौरान संसद में कथित तौर पर कहा था कि न्यायाधीशों के ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की बात दुनिया के कहीं सुनाई नहीं देती.

उम्मीदवार की योग्यता को परखने का काम

न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'कई प्राधिकारी इस प्रक्रिया में शामिल हैं, जिनमें केंद्रीय कानून मंत्रालय, राज्य सरकार, राज्यपाल, उच्च न्यायालय का कॉलेजियम, खुफिया ब्यूरो और अंतत: शीर्ष में कार्यकारी शामिल है, जिनकी जिम्मेदारी उम्मीदवार की योग्यता को परखने की है. मैं यह देखकर कर दुखी हूं कि जानकार व्यक्ति भी यह धारणा फैला रहा है. आखिरकार यह कथानक एक वर्ग को अनुकूल लगता है.'

संसद की बहस पर रमना को अफसोस

बता दें कि सीजेआई रमना ने एक अन्य मौके पर भी कहा था कि संसद में गुणवत्तापूर्ण बहस का अभाव है. 15 अगस्त को एक कार्यक्रम में संसद के कामकाज की आलोचना करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना ने संसद की बहस पर कहा कि यह एक खेदजनक स्थिति है और संसद में गुणवत्तापूर्ण बहस (lack of quality debates in Parliament) का अभाव है.

चीफ जस्टिस रमना यह (संसद की बहस पर) एक खेदजनक स्थिति है. कानूनों में बहुत अस्पष्टता है और अदालतें कानून बनाने के पीछे के उद्देश्य और मंशा को नहीं जानती हैं. उन्होंने आजादी के बाद की संसदीय बहसों को बेहद रोशन करने वाला करार दिया. उन्होंने कहा, 'यदि आप उन दिनों सदनों में होने वाली बहसों को देखें, तो वे बहुत बुद्धिमान, रचनात्मक हुआ करती थीं.

मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा, ऐसा लगता है कि कानून बनाते समय संसद में गुणवत्तापूर्ण बहस का अभाव है. इससे बहुत सारे मुकदमे होते हैं और अदालतें, गुणवत्तापूर्ण बहस के अभाव में, नए कानून के पीछे की मंशा और उद्देश्य को समझने में असमर्थ हो जाती हैं.

यह भी पढ़ें :- देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना : कश्मीर में इंटरनेट बहाली समेत कई महत्वपूर्ण फैसले दिए

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद, संसद में बड़ी संख्या में वकील होते थे, जिससे संभवत: ज्ञानवर्धक बहस होती थी. उन्होंने कहा कि वकीलों को खुद को सार्वजनिक जीवन में समर्पित करना चाहिए और संसदीय बहसों में बदलाव लाना चाहिए.

अमरावती : सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति एनवी रमना () आंध्र प्रदेश दौरे पर हैं. उन्होंने विजयवाड़ा स्थित सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय (Siddhartha Law College Vijayawada) के एक कार्यक्रम को संबोधित किया. सीजेआई ने कहा कि हाल के दिनों में न्यायिक अधिकारियों पर शारीरिक हमले बढ़े हैं और कई बार अनुकूल फैसला नहीं आने पर कुछ पक्षकार प्रिंट और सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों के खिलाफ अभियान चलाते हैं और ये हमले 'प्रायोजित और समकालिक' प्रतीत होते हैं. न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'सरकार से उम्मीद की जाती है और उसका यह कर्तव्य है कि वह सुरक्षित माहौल बनाए ताकि न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी बिना भय के काम कर सके.'

रविवार को सीजेआई रमना ने कहा, यह एक मिथक है कि 'न्यायाधीश ही न्यायाधीशों को नियुक्त कर रहे हैं.' उन्होंने कहा कि मीडिया के नए माध्यमों के पास जानकारी फैलाने की बहुत अधिक क्षमता है लेकिन ऐसा लगता है कि वह सही और गलत, अच्छे और बुरे, वास्तविक और फर्जी के बीच अंतर करने में अक्षम है. मामलों में फैसला तय करने में ‘मीडिया ट्रायल' निर्देशित करने वाला तथ्य नहीं होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से भारत में अभियोजक सरकार के नियंत्रण में रहते हैं. सीजेआई ने कहा, 'इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि वे स्वतत्रं रूप से कार्य नहीं करते. वे कमजोर और अनुपयोगी मामलों को अदालतों तक पहुंचने से रोकने के लिए कुछ नहीं करते. लोक अभियोजक अपने विवेक का इस्तेमाल किए बिना स्वत: ही जमानत अर्जी का विरोध करते हैं. वे सुनवाई के दौरान तथ्यों को दबाते हैं ताकि उसका लाभ आरोपी को मिले.'

उन्होंने सुझाव दिया कि पूरी प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए काम करने की जरूरत है. लोक अभियोजकों को बाहरी प्रभाव से बचाने के लिए उनकी नियुक्ति के लिए स्वतंत्र चयन समिति का गठन किया जा सकता है. अन्य न्यायाधिकार क्षेत्रों का तुलानात्मक अध्ययन कर सबसे बेहतरीन तरीके को अंगीकार किया जाना चाहिए.

बिहार के कानून का उदाहरण दिया

सीजेआई ने कहा कि कानून बनाने के दौरान कानून निर्माताओं को उसकी वजह से उत्पन्न समस्याओं के प्रभावी समाधान के बारे में भी सोचना चाहिए और ऐसा लगता है कि इस सिद्धांत को नजरअंदाज किया जा रहा है. उन्होंने बिहार मद्य निषेद कानून, 2016 का हवाला दिया (CJI cites Bihar Prohibition Act), जिसकी वजह से उच्च न्यायालय में जमानत अर्जियों की बाढ़ आ गई. सीजेआई ने कहा कि कानून बनाने में दूरदर्शिता की कमी (Justice Ramana lack of foresight in legislating) के कारण अदालतों में सीधे तौर पर रुकावट आ सकती है.

यह भी पढ़ें- CJI बनने के बाद पहली बार अपने पैतृक गांव पहुंचे जस्टिस एनवी रमना

प्रधान न्यायाधीश रमना पांचवें श्री लवु वेंकेटवरलु धर्मार्थ व्याख्यान (Sri Lavu Venkatewarlu Endowment Lecture) में 'भारतीय न्यायपालिका- भविष्य की चुनौतियां' विषय पर अपने विचार रख रहे थे. उन्होंने कहा कि लोक अभियोजकों के संस्थान को स्वतंत्र करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि उन्हें पूर्ण आजादी दी जानी चाहिए और उन्हें केवल अदालतों के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है.

न्यायाधीशों की नियुक्ति पर फैलाया जा रहा मिथक

न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'इन दिनों 'न्यायाधीश खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे हैं' जैसे जुमलों को दोहराना चलन हो गया है. मेरा मनाना है कि यह बड़े पैमाने पर फैलाए जाने वाले मिथकों में से एक (Judges appointing judges propagated myth) है. तथ्य यह है कि न्यायपालिका इस प्रक्रिया में शामिल कई हितधारकों में से महज एक हितधारक है.'

यह भी पढ़ें- न्यायपालिका में 50 फीसद महिलाएं हों, चीफ जस्टिस रमना भी कर चुके हैं वकालत : एनसीपी सांसद

मलिक मजहर मामले में सरकार से उम्मीद

उन्होंने अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की कोशिश को लेकर केंद्र सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों द्वारा की गई कुछ नामों की अनुशंसा को अब भी केंद्रीय कानून मंत्रालय की ओर से उच्चतम न्यायालय भेजा जाना है. उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार मलिक मजहर मामले में तय समयसीमा का अनुपालन करेगी.

न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना जांच नहीं !

सीजेआई ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों, खासतौर पर विशेष एजेंसियों को न्यायपालिक पर हो रहे दुर्भावनापूर्ण हमलों से निपटना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब तक न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करता और आदेश पारित नहीं करता, तब तक आमतौर पर अधिकारी जांच की प्रक्रिया शुरू नहीं करते.

उल्लेखनीय है कि हाल में केरल से सांसद जॉन ब्रिट्टस ने उच्च और उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन विधयेक-2021 पर चर्चा के दौरान संसद में कथित तौर पर कहा था कि न्यायाधीशों के ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की बात दुनिया के कहीं सुनाई नहीं देती.

उम्मीदवार की योग्यता को परखने का काम

न्यायमूर्ति रमना ने कहा, 'कई प्राधिकारी इस प्रक्रिया में शामिल हैं, जिनमें केंद्रीय कानून मंत्रालय, राज्य सरकार, राज्यपाल, उच्च न्यायालय का कॉलेजियम, खुफिया ब्यूरो और अंतत: शीर्ष में कार्यकारी शामिल है, जिनकी जिम्मेदारी उम्मीदवार की योग्यता को परखने की है. मैं यह देखकर कर दुखी हूं कि जानकार व्यक्ति भी यह धारणा फैला रहा है. आखिरकार यह कथानक एक वर्ग को अनुकूल लगता है.'

संसद की बहस पर रमना को अफसोस

बता दें कि सीजेआई रमना ने एक अन्य मौके पर भी कहा था कि संसद में गुणवत्तापूर्ण बहस का अभाव है. 15 अगस्त को एक कार्यक्रम में संसद के कामकाज की आलोचना करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना ने संसद की बहस पर कहा कि यह एक खेदजनक स्थिति है और संसद में गुणवत्तापूर्ण बहस (lack of quality debates in Parliament) का अभाव है.

चीफ जस्टिस रमना यह (संसद की बहस पर) एक खेदजनक स्थिति है. कानूनों में बहुत अस्पष्टता है और अदालतें कानून बनाने के पीछे के उद्देश्य और मंशा को नहीं जानती हैं. उन्होंने आजादी के बाद की संसदीय बहसों को बेहद रोशन करने वाला करार दिया. उन्होंने कहा, 'यदि आप उन दिनों सदनों में होने वाली बहसों को देखें, तो वे बहुत बुद्धिमान, रचनात्मक हुआ करती थीं.

मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा, ऐसा लगता है कि कानून बनाते समय संसद में गुणवत्तापूर्ण बहस का अभाव है. इससे बहुत सारे मुकदमे होते हैं और अदालतें, गुणवत्तापूर्ण बहस के अभाव में, नए कानून के पीछे की मंशा और उद्देश्य को समझने में असमर्थ हो जाती हैं.

यह भी पढ़ें :- देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना : कश्मीर में इंटरनेट बहाली समेत कई महत्वपूर्ण फैसले दिए

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद, संसद में बड़ी संख्या में वकील होते थे, जिससे संभवत: ज्ञानवर्धक बहस होती थी. उन्होंने कहा कि वकीलों को खुद को सार्वजनिक जीवन में समर्पित करना चाहिए और संसदीय बहसों में बदलाव लाना चाहिए.

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