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तीन महीने के भीतर दिल्ली की 48 हजार झुग्गियों को हटाएं : सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में रेलवे ट्रैक के किनारे बनी 48,000 झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया है. यह कार्रवाई तीन महीने के भीतर की जानी है. इस संबंध में पीठ का आदेश हाल ही में शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया. यह आदेश बीते 31 अगस्त को पारित किया गया था.

Supreme Court on delhi slums
झुग्गी हटाने पर सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 3, 2020, 1:21 PM IST

Updated : Sep 3, 2020, 3:03 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में 140 किलोमीटर तक रेल पटरियों के किनारे बनीं 48,000 झुग्गी बस्तियों को तीन माह के भीतर हटाने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही कहा कि इस कदम के क्रियान्वयन में किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. इसके साथ ही झुग्गी-झोपड़ियों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाएगा.

न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय पीठ ने इलाके में अतिक्रमण हटाने के संबंध में किसी भी अदालत को किसी तरह की रोक लगाने से भी रोका है. पीठ ने कहा है कि रेल पटरियों के पास अतिक्रमण के संबंध में अगर कोई अंतरिम आदेश पारित किया जाता है तो वह प्रभावी नहीं होगा.

पीठ ने कहा कि हम सभी हितधारकों को निर्देश देते हैं कि झुग्गियों को हटाने के लिए व्यापक योजना बनाई जाए और उसका क्रियान्वन चरणबद्ध तरीके से हो. सुरक्षित क्षेत्रों में अतिक्रमणों को तीन माह के भीतर हटाया जाए और किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप, राजनीतिक या कोई और, नहीं होना चाहिए और किसी अदालत को ऐसे इलाकों में अतिक्रमण हटाने के संबंध में किसी तरह की रोक नहीं लगानी चाहिए.

ईपीसीए ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे को उत्तरी क्षेत्र में दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों से शुरू करते हुए, ठोस कूड़ा प्रबंधन के लिए समयबद्ध योजना प्रस्तुत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था.

पीठ ने कहा कि हम तीन माह के भीतर प्लास्टिक के थैले, कूड़े आदि को हटाने के संबंध में योजना के क्रियान्वयन का और सभी हितधारकों यानि रेलवे, दिल्ली सरकार और संबंधित नगर पालिकाओं के साथ ही दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूआईएसबी) की अगली हफ्ते बैठक बुलाने और उसके बाद काम शुरू किए जाने का निर्देश देते हैं.

पीठ ने कहा कि जरूरी खर्च का 70 प्रतिशत हिस्सा रेलवे और तीन प्रतिशत राज्य सरकार उठाएगी. मानव श्रम दक्षिणी दिल्ली नगर निगम, रेलवे और सरकारी एजेंसियों द्वारा नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाएगा और वे एक-दूसरे से इसका शुल्क नहीं वसूलेंगे.

पढ़ें- पैंगोंग झील क्षेत्र में तनाव के बीच सेना प्रमुख नरवणे लद्दाख पहुंचे

शीर्ष अदालत ने एसडीएमसी, रेलवे और अन्य एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनके ठेकेदार रेल पटरियों के किनारे कूड़ा न डालें और रेलवे को एक दीर्घकालिक योजना भी बनानी होगा कि पटरियों के किनारे कूड़े के ढेर न लगाए जाएं.

पीठ ने कहा कि ईपीसीए की रिपोर्ट में सामने आई तस्वीर के साथ ही रेलवे द्वारा दायर जवाब दिखाता है कि अब तक कुछ नहीं किया गया है. इसके साथ ही कूड़े का ढेर लग गया है और उसी वक्त उस इलाके में मानव आबादी अनधिकृत ढंग से बस गई, जिसपर ध्यान देने की जरूरत है. इस संबंध में की गई कार्रवाई से इस अदालत को एक माह के भीतर अवगत कराया जाए.

पीठ ने उत्तर रेलवे के डीआरएम कार्यालय में अतिरिक्त संभागीय रेलवे प्रबंधक, एके यादव द्वारा दायर हलफनामे का संज्ञान लिया और कहा कि यह बताया गया है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के इलाके में 140 किलोमीटर तक रेल पटरियों के किनारे झुग्गियां बहुत अधिक संख्या में मौजूद हैं.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में 140 किलोमीटर तक रेल पटरियों के किनारे बनीं 48,000 झुग्गी बस्तियों को तीन माह के भीतर हटाने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही कहा कि इस कदम के क्रियान्वयन में किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. इसके साथ ही झुग्गी-झोपड़ियों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाएगा.

न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय पीठ ने इलाके में अतिक्रमण हटाने के संबंध में किसी भी अदालत को किसी तरह की रोक लगाने से भी रोका है. पीठ ने कहा है कि रेल पटरियों के पास अतिक्रमण के संबंध में अगर कोई अंतरिम आदेश पारित किया जाता है तो वह प्रभावी नहीं होगा.

पीठ ने कहा कि हम सभी हितधारकों को निर्देश देते हैं कि झुग्गियों को हटाने के लिए व्यापक योजना बनाई जाए और उसका क्रियान्वन चरणबद्ध तरीके से हो. सुरक्षित क्षेत्रों में अतिक्रमणों को तीन माह के भीतर हटाया जाए और किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप, राजनीतिक या कोई और, नहीं होना चाहिए और किसी अदालत को ऐसे इलाकों में अतिक्रमण हटाने के संबंध में किसी तरह की रोक नहीं लगानी चाहिए.

ईपीसीए ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे को उत्तरी क्षेत्र में दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों से शुरू करते हुए, ठोस कूड़ा प्रबंधन के लिए समयबद्ध योजना प्रस्तुत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था.

पीठ ने कहा कि हम तीन माह के भीतर प्लास्टिक के थैले, कूड़े आदि को हटाने के संबंध में योजना के क्रियान्वयन का और सभी हितधारकों यानि रेलवे, दिल्ली सरकार और संबंधित नगर पालिकाओं के साथ ही दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूआईएसबी) की अगली हफ्ते बैठक बुलाने और उसके बाद काम शुरू किए जाने का निर्देश देते हैं.

पीठ ने कहा कि जरूरी खर्च का 70 प्रतिशत हिस्सा रेलवे और तीन प्रतिशत राज्य सरकार उठाएगी. मानव श्रम दक्षिणी दिल्ली नगर निगम, रेलवे और सरकारी एजेंसियों द्वारा नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाएगा और वे एक-दूसरे से इसका शुल्क नहीं वसूलेंगे.

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शीर्ष अदालत ने एसडीएमसी, रेलवे और अन्य एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनके ठेकेदार रेल पटरियों के किनारे कूड़ा न डालें और रेलवे को एक दीर्घकालिक योजना भी बनानी होगा कि पटरियों के किनारे कूड़े के ढेर न लगाए जाएं.

पीठ ने कहा कि ईपीसीए की रिपोर्ट में सामने आई तस्वीर के साथ ही रेलवे द्वारा दायर जवाब दिखाता है कि अब तक कुछ नहीं किया गया है. इसके साथ ही कूड़े का ढेर लग गया है और उसी वक्त उस इलाके में मानव आबादी अनधिकृत ढंग से बस गई, जिसपर ध्यान देने की जरूरत है. इस संबंध में की गई कार्रवाई से इस अदालत को एक माह के भीतर अवगत कराया जाए.

पीठ ने उत्तर रेलवे के डीआरएम कार्यालय में अतिरिक्त संभागीय रेलवे प्रबंधक, एके यादव द्वारा दायर हलफनामे का संज्ञान लिया और कहा कि यह बताया गया है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के इलाके में 140 किलोमीटर तक रेल पटरियों के किनारे झुग्गियां बहुत अधिक संख्या में मौजूद हैं.

Last Updated : Sep 3, 2020, 3:03 PM IST
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