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राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस आज, जानें 'तिरंगे' का रोचक इतिहास

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस हर साल 22 जुलाई को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य भारतीय ध्वज के बारे में लोगों को जागरुक करना है. राष्ट्रीय ध्वज संपूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है. विस्तार से पढ़ें, राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस पर हमारी विशेष रिपोर्ट...

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भारत का राष्ट्रीय ध्वज
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Published : Jul 22, 2020, 8:55 AM IST

हैदराबाद : दुनिया के सभी स्वतंत्र देशों का अपना झंडा होता है. यह एक आजाद देश का प्रतीक है. भारत का राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' है, जो तीन क्षैतिज रंगों के समान अनुपात में बना है. सबसे ऊपर गहरा केसरिया, बीच में सफेद और नीचे गहरा हरा रंग है. सफेद पट्टी के केंद्र में गहरे नीले रंग का चक्र है, जो अशोक चक्र को दर्शाता है. इसमें कुल 24 तीलियां हैं जो मनुष्य के 24 गुणों को दर्शाती हैं.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस
राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस हर साल 22 जुलाई को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य भारतीय ध्वज के बारे में लोगों को जागरुक करना है, क्योंकि राष्ट्रीय ध्वज संपूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है.

भारत को 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी. नए राष्ट्र के निर्माण के साथ भारत के सभी लोगों को देश के हर हिस्से में घूमने का अधिकार और अवसर मिला.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज के महत्व, सलामी देना, सम्मान देना और नई पीढ़ियों में भारतीय संस्कृतियों और परंपराओं के प्रति सम्मान की भावना पैदा की जाती है.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस क्यों मानाया जाता है
यह 22 जुलाई को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' को अपनाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' को देशभक्ति के सही अर्थ का प्रतिनिधित्व करने के लिए अपनाया गया था. साथ ही यह देश के लोगों, युवाओं और भावी पीढ़ियों के बीच सही सार और ऊर्जा का प्रसार करता है.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस मनाने का एक और महत्व है कि लोगों को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के मूल्य और इतिहास के बारे में लोगों को जागरूक करना है. लोगों को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना चाहिए क्योंकि यह संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करता है.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस का इतिहास
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था. जिसे पहली बार भारतीय संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को हुई बैठक में अपनाया था. यही कारण है कि 1947 के बाद से हर साल देशभर में राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस मनाया जा रहा है.

राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप तब अपनाया गया जब इसे आधिकारिक रूप से संविधान सभा की बैठक में 'भारत के प्रभुत्व का आधिकारिक ध्वज' घोषित किया गया.

हमारे राष्ट्र ध्वज का विकास कैसे हुआ
पहला झंडा: भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के पारसी बागान स्क्वायर (ग्रीन पार्क) में फहराया गया था. यह ध्वज तीन क्षैतिज पट्टी लाल, पीले और हरे रंग से बना था.

दूसरा झंडा: इसे 'सप्तऋषि ध्वज' कहा जाता है, इसे 22 अगस्त, 1907 को जर्मनी के श्टुटगार्ट में आयोजित अंतरराष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में फहराया गया था.

तीसरा झंडा: तीसरा झंडा 1917 में फहराया गया, जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने एक निश्चित मोड़ ले लिया था. होम रूल मूवमेंट के दौरान डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने इसे फहराया था. इस ध्वज में पांच लाल और चार हरे रंग की क्षैतिज पट्टियां थीं, जिन्हें सप्तर्षि विन्यास में सात तारों के साथ बारी-बारी से व्यवस्थित किया गया था. बाएं हाथ के शीर्ष कोने में (पोल एंड) यूनियन जैक था. झंडे के एक कोने में एक सफेद अर्धचंद्र और तारा भी था.

चौथा झंडा
पिंगली वेंकैया: श्री पिंगली वेंकैया आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के बेजावाड़ा (अब विजयवाड़ा) शहर के रहने वाले थे, जिन्होंने चौथा झंडा डिजाइन किया था. यह झंडा दो रंगों- लाल और हरे से बना था. यह दो प्रमुख समुदायों हिंदू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता था. बाद में महात्मा गांधी ने इसमें सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति के प्रतीक चरखा को जोड़ने का सुझाव दिया. सफेद पट्टी भारत के शेष समुदायों का प्रतिनिधित्व करती है.

पांचवां झंडा
साल 1931 भारतीय ध्वज के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण था. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे झंडे को अपनाने का प्रस्ताव पारित किया गया. इस ध्वज में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टी के साथ मध्य में महात्मा गांधी का चरखा था. हालांकि, यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह कोई सांप्रदायिक महत्व नहीं रखता है.

वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा'
संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को 'तिरंगा' को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था. स्वतंत्रता के बाद, रंग और उनका महत्व समान रहा. केवल सम्राट अशोक के धर्म चक्र को चरखा की जगह ध्वज के प्रतीक के रूप में अपनाया गया था. इस तरह, कांग्रेस पार्टी का तिरंगा झंडा अंततः स्वतंत्र भारत का तिरंगा झंडा बन गया.

'तिरंगे' की पहली पट्टी
केसरिया- यह देश की ताकत और साहस को दर्शाता है.

'तिरंगे' की दूसरी पट्टी
श्वेत- यह धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य को इंगित करता है, जिसमें 24 तीलियां हैं.

धर्म चक्र को मौर्य सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में बनाए गए स्तम्भ से लिया गया है, जिसे 'कानून का पहिया' के रूप में दर्शाया गया है. चक्र यह इंगित करता है कि गति में जीवन है और ठहराव में मृत्यु है.

24 तीलियों का अर्थ है- प्रेम, संयम, आरोग्य, शांति, त्याग, शील, सेवा, क्षमा, मैत्री, बंधुत्व, संगठन, कल्याण, समृद्धि, उद्योग, सुरक्षा, नियम, समता, अर्थ, नीति, न्याय, सहकार्य, कर्तव्य, अधिकार, बुद्धिमत्ता.

'तिरंगे' की तीसरी पट्टी
हरा- यह भूमि की उर्वरता, वृद्धि और शुभ को दर्शाता है.

भारतीय ध्वज से जुड़ी दिलचस्प बातें

  • भारतीय ध्वज को दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट पर 29 मई, 1953 को फहराया गया था.
  • मैडम भीकाजी रूस्तम कामा 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के श्टुटगार्ट में विदेशी धरती पर झंडा फहराने वाली पहली व्यक्ति थीं.
  • विंग कमांडर राकेश शर्मा ने 1984 में अंतरिक्ष में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को फहराया था. राकेश शर्मा के अंतरिक्ष सूट पर पदक के रूप में झंडा लगा हुआ था. (राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री थे).

हैदराबाद : दुनिया के सभी स्वतंत्र देशों का अपना झंडा होता है. यह एक आजाद देश का प्रतीक है. भारत का राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' है, जो तीन क्षैतिज रंगों के समान अनुपात में बना है. सबसे ऊपर गहरा केसरिया, बीच में सफेद और नीचे गहरा हरा रंग है. सफेद पट्टी के केंद्र में गहरे नीले रंग का चक्र है, जो अशोक चक्र को दर्शाता है. इसमें कुल 24 तीलियां हैं जो मनुष्य के 24 गुणों को दर्शाती हैं.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस
राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस हर साल 22 जुलाई को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य भारतीय ध्वज के बारे में लोगों को जागरुक करना है, क्योंकि राष्ट्रीय ध्वज संपूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है.

भारत को 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी. नए राष्ट्र के निर्माण के साथ भारत के सभी लोगों को देश के हर हिस्से में घूमने का अधिकार और अवसर मिला.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज के महत्व, सलामी देना, सम्मान देना और नई पीढ़ियों में भारतीय संस्कृतियों और परंपराओं के प्रति सम्मान की भावना पैदा की जाती है.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस क्यों मानाया जाता है
यह 22 जुलाई को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' को अपनाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' को देशभक्ति के सही अर्थ का प्रतिनिधित्व करने के लिए अपनाया गया था. साथ ही यह देश के लोगों, युवाओं और भावी पीढ़ियों के बीच सही सार और ऊर्जा का प्रसार करता है.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस मनाने का एक और महत्व है कि लोगों को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के मूल्य और इतिहास के बारे में लोगों को जागरूक करना है. लोगों को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना चाहिए क्योंकि यह संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करता है.

राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस का इतिहास
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था. जिसे पहली बार भारतीय संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को हुई बैठक में अपनाया था. यही कारण है कि 1947 के बाद से हर साल देशभर में राष्ट्रीय ध्वज दत्तक ग्रहण दिवस मनाया जा रहा है.

राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप तब अपनाया गया जब इसे आधिकारिक रूप से संविधान सभा की बैठक में 'भारत के प्रभुत्व का आधिकारिक ध्वज' घोषित किया गया.

हमारे राष्ट्र ध्वज का विकास कैसे हुआ
पहला झंडा: भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के पारसी बागान स्क्वायर (ग्रीन पार्क) में फहराया गया था. यह ध्वज तीन क्षैतिज पट्टी लाल, पीले और हरे रंग से बना था.

दूसरा झंडा: इसे 'सप्तऋषि ध्वज' कहा जाता है, इसे 22 अगस्त, 1907 को जर्मनी के श्टुटगार्ट में आयोजित अंतरराष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में फहराया गया था.

तीसरा झंडा: तीसरा झंडा 1917 में फहराया गया, जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने एक निश्चित मोड़ ले लिया था. होम रूल मूवमेंट के दौरान डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने इसे फहराया था. इस ध्वज में पांच लाल और चार हरे रंग की क्षैतिज पट्टियां थीं, जिन्हें सप्तर्षि विन्यास में सात तारों के साथ बारी-बारी से व्यवस्थित किया गया था. बाएं हाथ के शीर्ष कोने में (पोल एंड) यूनियन जैक था. झंडे के एक कोने में एक सफेद अर्धचंद्र और तारा भी था.

चौथा झंडा
पिंगली वेंकैया: श्री पिंगली वेंकैया आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के बेजावाड़ा (अब विजयवाड़ा) शहर के रहने वाले थे, जिन्होंने चौथा झंडा डिजाइन किया था. यह झंडा दो रंगों- लाल और हरे से बना था. यह दो प्रमुख समुदायों हिंदू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता था. बाद में महात्मा गांधी ने इसमें सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति के प्रतीक चरखा को जोड़ने का सुझाव दिया. सफेद पट्टी भारत के शेष समुदायों का प्रतिनिधित्व करती है.

पांचवां झंडा
साल 1931 भारतीय ध्वज के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण था. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे झंडे को अपनाने का प्रस्ताव पारित किया गया. इस ध्वज में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टी के साथ मध्य में महात्मा गांधी का चरखा था. हालांकि, यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह कोई सांप्रदायिक महत्व नहीं रखता है.

वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा'
संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को 'तिरंगा' को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था. स्वतंत्रता के बाद, रंग और उनका महत्व समान रहा. केवल सम्राट अशोक के धर्म चक्र को चरखा की जगह ध्वज के प्रतीक के रूप में अपनाया गया था. इस तरह, कांग्रेस पार्टी का तिरंगा झंडा अंततः स्वतंत्र भारत का तिरंगा झंडा बन गया.

'तिरंगे' की पहली पट्टी
केसरिया- यह देश की ताकत और साहस को दर्शाता है.

'तिरंगे' की दूसरी पट्टी
श्वेत- यह धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य को इंगित करता है, जिसमें 24 तीलियां हैं.

धर्म चक्र को मौर्य सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में बनाए गए स्तम्भ से लिया गया है, जिसे 'कानून का पहिया' के रूप में दर्शाया गया है. चक्र यह इंगित करता है कि गति में जीवन है और ठहराव में मृत्यु है.

24 तीलियों का अर्थ है- प्रेम, संयम, आरोग्य, शांति, त्याग, शील, सेवा, क्षमा, मैत्री, बंधुत्व, संगठन, कल्याण, समृद्धि, उद्योग, सुरक्षा, नियम, समता, अर्थ, नीति, न्याय, सहकार्य, कर्तव्य, अधिकार, बुद्धिमत्ता.

'तिरंगे' की तीसरी पट्टी
हरा- यह भूमि की उर्वरता, वृद्धि और शुभ को दर्शाता है.

भारतीय ध्वज से जुड़ी दिलचस्प बातें

  • भारतीय ध्वज को दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट पर 29 मई, 1953 को फहराया गया था.
  • मैडम भीकाजी रूस्तम कामा 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के श्टुटगार्ट में विदेशी धरती पर झंडा फहराने वाली पहली व्यक्ति थीं.
  • विंग कमांडर राकेश शर्मा ने 1984 में अंतरिक्ष में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को फहराया था. राकेश शर्मा के अंतरिक्ष सूट पर पदक के रूप में झंडा लगा हुआ था. (राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री थे).
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