हैदराबाद : कोरोना संकट ने इंसानी जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है. मानवीय जीवन के कुछ हिस्से ज्यादा प्रभावित और कुछ कम प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन हर किसी पक्ष पर इसका कुछ न कुछ असर तो हो ही रहा है. शिक्षा जगत भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां इस व्यापक असर देखा जा सकता है.
देशभर में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए 17 मई तक लॉकडाउन है. 24 मार्च के शुरू हुए इस लॉकडाउन में शिक्षा व्यवस्था और पठन- पाठन बुरी तरह से प्रभावित है, क्योंकि इस दौरान अधिक लोगों को एक जगह एकत्रित होने से मनाही है. इतना ही नहीं इस वायरस की वजह से केंद्र और राज्य सरकारों ने स्कूल और कॉलेज हो बंद करने के आदेश दे दिए हैं. इससे निबटने के लिए ऑनलाइन शिक्षा एक विकल्प हो सकता है, लेकिन क्या भारत ऑनलाइन शिक्षा के लिए तैयार है. आइए जानते हैं इस बारे में...
कोरोना वायरस के कारण उपजी परिस्थिति में भारतीय इंटरनेट की बुनियादी संरचना ऑनलाइन शिक्षा की दिशा में बढ़ने के लिए अभी पूरी तरह तैयार नहीं है, क्योंकि भारत के पर्याप्त संसाधन नहीं है. शैक्षिक संस्थानों की वैश्विक रैंकिग तैयार करने वाली संस्था क्वाकक्वारेल्ली सायमंड्स (क्यूएस) की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना के संक्रमण के कारण दुनिया कक्षाएं मुहैया कराने के लिए परंपरागत तरीकों से ऑनलाइन माध्यम की दिशा में आगे बढ़ रही है,लेकिन समुचित आधारभूत संरचना के अभाव में पठन-पाठन के लिए ऑनलाइन माध्यम पर पूरी तरह निर्भरता दूर का ही सपना है.
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि ऑनलाइन कक्षाओं के समय छात्रों को सबसे ज्यादा कनेक्टिविटी और सिग्नल के मुद्दों का सामना करना पड़ता है .
रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2019 में पूरी दुनिया में लगभग 4.4 बिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जिसमें से केवल 56 करोड़ लोग भारत में थे, लेकिन यदि वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो 57 प्रतिशत लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते है, जबकि भारत के 41 लोग प्रतिशत इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, 'सर्वेक्षण में उल्लेख किया गया है कि भारत में प्रौद्योगिकी की बुनियादी संरचना इतनी गुणवत्तापूर्ण नहीं हो पाई है कि देशभर में छात्रों को ऑनलाइन कक्षाएं आसानी से उपलब्ध कराई जा सके. ऐसा देखा गया है कि सरकारी और निजी क्षेत्र भी तकनीकी चुनौतियों से उबर नहीं पाए हैं. मसलन, पर्याप्त बिजली आपूर्ति और प्रभावी कनेक्टिविटी की दिक्कतें हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वेक्षण में 7,600 से ज्यादा लोगों ने जवाब दिए. इसमें घर पर इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों के बारे में पता चला कि 72.60 प्रतिशत लोगों ने मोबाइल हॉटस्पॉट का उपयोग किया, 15 प्रतिशत ने ब्रॉडबैंड का, 9.68 प्रतिशत ने वाई-फाई डोंगल का उपयोग किया तथा 1.85 प्रतिशत के पास इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं थी.
रिपोर्ट में कहा गया आंकड़ों से पता चला कि घरेलू ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल करने वालों में तीन प्रतिशत से ज्यादा को केबल कटने की दिक्कतें हुईं, 53 प्रतिशत ने कमजोर कनेक्टिविटी का सामना किया, 11.47 प्रतिशत को बिजली से जुड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और 32 प्रतिशत लोग सिग्नल से ही जूझते रहे. मोबाइल हॉटस्पॉट की बात हो तो 40.18 प्रतिशत को कमजोर कनेक्टिविटी, 3.19 प्रतिशत को बिजली की दिक्कतों और 56.63 प्रतिशत को सिग्नल से जुड़ी दिक्कतें हुई.
शिक्षा पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017 -18 के अनुसार-
- 66 प्रतिशत भारतीय गांवो में रहते हैं, लेकिन 15 प्रतिशत घरों में ही इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है.
- 42 प्रतिशत शहरी घरों में इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है.
- केरल के 23 प्रतिशत ग्रामीण घरों में इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है.
- विश्वविद्यालय के 85 प्रतिशत छात्र जो शहरी हैं, इसमें से 41 प्रतिशत छात्र ही घरों में इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.