अल्मोड़ा: महात्मा गांधी दुनिया के लिए वे नाम हैं जिनके सत्य और अहिंसा के आंदोलन से अंग्रेजी हुकूमत भी कांपती थी. पूरे देश को सत्याग्रह का पाठ पढ़ाने वाले गांधी जी ने कभी हिम्मत नहीं हारी,और अंतिम सांस तक देशवासियों के लिए लड़ते रहे.
दरअसल, भारत की आजादी के आंदोलन में लाखों लोगों की भूमिका रही है. महात्मा गांधी को आजादी की लड़ाई का महानायक कहा जाता है. कुछ लोग गांधी से सीधे तौर से जुड़े हुए हैं. इसी में एक उत्तराखंड का भी परिवार है. पूरे देश का भ्रमण करने के दौरान अल्मोड़ा पहुंचे गांधी को यहां से काफी सहयोग मिला था.
भारतवासियों के साथ ही पूरी दुनिया महात्मा गांधी के नाम को जपती हैं. लोग आज भी उनके योगदान को याद करते हैं. वहीं इतिहास के साथ गांधी जी जुड़ी कई चीजें इतिहास के साथ ही विरासत बन गई. उन्हीं में से एक गांधी जी का लोटा भी है. जिसके पीछे का इतिहास काफी रोचक है जिसके बारे में आप जरूर जानना चाहेंगे.
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश की आजादी के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने बर्तन तक नीलाम कर दिए थे. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में आज भी गांधीजी का वह लोटा मौजूद है, जिसको उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक जनसभा में नीलाम किया था. उस समय अल्मोड़ा के कैलाश होटल मालिक जवाहर शाह ने गांधीजी से खरीदा था.
आर्थिक मदद के दौरान लोटे की नीलामी
दिवंगत जवाहर शाह के बेटे सावल शाह का कहना है कि उनके पिता उन्हें बताते थे कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए पैसों की कमी के कारण गांधी जी अपने सामानों को नीलाम कर पैसा इकट्ठा कर रहे थे. उसी दौरान वह अल्मोड़ा दौरे पर आए थे, जहां उन्होंने अपने लोटे की नीलामी की थी.
सावल शाह ने बताया कि ये लोटा चांदी का है. उन्होंने बताया कि आजादी की लड़ाई के दौरान उनके पिताजी ने गांधी जी का सहयोग किया था.
11 रुपये में खरीदा
बकौल सावल शाह, आजादी के आंदोलन में सहयोग करने के लिए तत्कालीन असल कीमत से कई गुना ज्यादा दाम देकर जवाहर शाह ने गांधी जी का लोटा खरीदा था. ये कीमत लगभग 11 रुपये थी. 11 रुपये में खरीदा गया गांधी जी का लोटा आज भी जवाहर शाह के परिवार के पास सुरक्षित है.
गांधी को मिला काफी सहयोग
वहीं इतिहासकार वीडी एस नेगी का कहना है कि गांधीजी 1929 में अल्मोड़ा के दौरे पर आए थे. यहां आकर उन्होंने कई जनसभाओं को संबोधित किया. इसी दौरान यह लोटा भी उन्होंने जवाहर शाह को दिया होगा.
महिलाओं ने गहने भी दिए
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग के लिए अल्मोड़ा से काफी मात्रा में चंदा इकट्ठा कर गांधी जी को दिया गया था. नेगी बताते हैं कि साल 1929 में नैनीताल में महिलाओं ने आजादी के आंदोलन में अपना सहयोग देते हुए गांधी जी को अपने गहने तक भेंट कर दिए.
मंदिर में रखा जाता था लोटा
दिवंगत जवाहर शाह की बहू गीता शाह बताती हैं कि उनको इस बात का गर्व है कि गांधी जी का लोटा उनके पास है. वे कहती हैं कि उनके ससुर इस लोटे को मंदिर में रखा करते थे. साथ ही उनसे भी इस लोटे को सुरक्षित रखने को कहते थे.