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सूरजकुंड मेला : जंगली कीड़ा कोसा के रेशे से बनी कलाकृतियां लुभा रहीं सबको - Wild Worms Whipped Fiber Artifacts

फरीदाबाद में चल रहे सूरजकुंड मेले (Surajkund International Crafts Mela 2022) में जंगली कीड़े कोसा से निकाले गए रेशे से बनी कलाकृतियां लोगों को देखने को मिल रही हैं. कलाकार का दावा है कि ये देश के इकलौते ऐसे कलाकार हैं जिनके पास यह कला है.

kosa artifacts
कोसा के रेशे से बनी कलाकृति
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Published : Mar 25, 2022, 5:25 PM IST

फरीदाबाद: 35वें सूरजकुंड मेले (Surajkund International Crafts Mela 2022) में इस बार उड़ीसा के कलाकारों ने अपनी एक अलग जगह बनाई है. उड़ीसा के कलाकार द्वारा जंगली कीड़े कोसा से निकाले गए रेशे से बनी कलाकृतियां लोगों को बेहद आकर्षित कर रही हैं. उड़ीसा के आर्टिस्ट राजेंद्र कुमार मेहर के आर्ट की अनोखी कहानी है. वह छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जंगलों में पाए जाने जाने वाले कोसा नामक जंगली कीड़े को उबालकर उससे टसर शिल्क निकालते हैं.

वे शिल्क से आकर्षक कलाकृतियों का निर्माण करते हैं. इस कला को नेचुरल फाइबर क्राफ्ट के नाम से जाना जाता है. उनका दावा है कि ये कला देश के अन्य किसी भी हिस्से में नहीं पायी जाती है. जंगली कीड़े के रेशे से सिद्धि विनायक की आकर्षक तस्वीर बनाकर इन्होंने वर्ष 2018 में नेशनल अवार्ड भी जीता था. राजेंद्र कुमार इस कला को पिछले 15 वर्षों से देशभर में फैला रहे हैंं. उड़ीसा के सुंदरगढ़ निवासी राजेंद्र कुमार मेहर ने बताया कि उनके पिता कृष्ण चंद्र मेहर बुनकर थे, साड़ी बनाया करते थे. उन्हीं को देखकर साड़ी के धागे से छोटी छोटी कलाकृति बनानी सीखी.

artifacts made form kosa
कोसा से बनी कलाकृति

पिता को इस मजदूरी के बदले 3-4 हजार रुपए महीने के मिला करते थे. बचपन से ही आर्टिस्ट बनने के शौक के कारण उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई. वर्ष 2017 में भगवान जगन्नाथ के दशावतार की आकृति बनाने पर इन्हें स्टेट अवार्ड से नवाजा गया. राजेंद्र ने बताया कि नेचुरल फाइबर क्राफ्ट कला देश के किसी अन्य हिस्से में नहीं है. शिल्पकार ने बताया कि छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जंगलों में पेड़ों की टहनियों पर कोसा नामक जंगली कीड़ा पाया जाता है.

सूरजकुंड मेले से ईटीवी भारत की रिपोर्ट

उन्होंने बताया कि ये छोटे बैगन के समान होते हैं. उसे तोड़कर उबालते हैं. इसके बाद उसे सुखाकर ऊपरी हिस्से से रेशा निकाला जाता है. इसे टसर शिल्क धागा कहते हैं. उड़ीसा में ये छह हजार रुपए किलो की दर से बिकता है. राजेंद्र ने बताया कि किसी भी कलाकृति को बनाने से पहले कागज पर उसकी डिजाइन पेंसिल से तैयार करते हैं. इसके बाद सनबोर्ड काटकर टसर शिल्क धागा लपेटकर उसे आकार देते हैं. नेचुरल फाइबर क्राॅफ्ट इनके रोजगार का माध्यम बन गया है. उनकी यही कलाकारी सूरजकुंड मेले में भी अपना जादू बिखेर रही है.

ये भी पढ़ें : Surajkund fair: जो पराली बनी थी जान की दुश्मन! उसी से कलाकृति बना केरल के शिल्पकार ने दिया संदेश

फरीदाबाद: 35वें सूरजकुंड मेले (Surajkund International Crafts Mela 2022) में इस बार उड़ीसा के कलाकारों ने अपनी एक अलग जगह बनाई है. उड़ीसा के कलाकार द्वारा जंगली कीड़े कोसा से निकाले गए रेशे से बनी कलाकृतियां लोगों को बेहद आकर्षित कर रही हैं. उड़ीसा के आर्टिस्ट राजेंद्र कुमार मेहर के आर्ट की अनोखी कहानी है. वह छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जंगलों में पाए जाने जाने वाले कोसा नामक जंगली कीड़े को उबालकर उससे टसर शिल्क निकालते हैं.

वे शिल्क से आकर्षक कलाकृतियों का निर्माण करते हैं. इस कला को नेचुरल फाइबर क्राफ्ट के नाम से जाना जाता है. उनका दावा है कि ये कला देश के अन्य किसी भी हिस्से में नहीं पायी जाती है. जंगली कीड़े के रेशे से सिद्धि विनायक की आकर्षक तस्वीर बनाकर इन्होंने वर्ष 2018 में नेशनल अवार्ड भी जीता था. राजेंद्र कुमार इस कला को पिछले 15 वर्षों से देशभर में फैला रहे हैंं. उड़ीसा के सुंदरगढ़ निवासी राजेंद्र कुमार मेहर ने बताया कि उनके पिता कृष्ण चंद्र मेहर बुनकर थे, साड़ी बनाया करते थे. उन्हीं को देखकर साड़ी के धागे से छोटी छोटी कलाकृति बनानी सीखी.

artifacts made form kosa
कोसा से बनी कलाकृति

पिता को इस मजदूरी के बदले 3-4 हजार रुपए महीने के मिला करते थे. बचपन से ही आर्टिस्ट बनने के शौक के कारण उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई. वर्ष 2017 में भगवान जगन्नाथ के दशावतार की आकृति बनाने पर इन्हें स्टेट अवार्ड से नवाजा गया. राजेंद्र ने बताया कि नेचुरल फाइबर क्राफ्ट कला देश के किसी अन्य हिस्से में नहीं है. शिल्पकार ने बताया कि छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जंगलों में पेड़ों की टहनियों पर कोसा नामक जंगली कीड़ा पाया जाता है.

सूरजकुंड मेले से ईटीवी भारत की रिपोर्ट

उन्होंने बताया कि ये छोटे बैगन के समान होते हैं. उसे तोड़कर उबालते हैं. इसके बाद उसे सुखाकर ऊपरी हिस्से से रेशा निकाला जाता है. इसे टसर शिल्क धागा कहते हैं. उड़ीसा में ये छह हजार रुपए किलो की दर से बिकता है. राजेंद्र ने बताया कि किसी भी कलाकृति को बनाने से पहले कागज पर उसकी डिजाइन पेंसिल से तैयार करते हैं. इसके बाद सनबोर्ड काटकर टसर शिल्क धागा लपेटकर उसे आकार देते हैं. नेचुरल फाइबर क्राॅफ्ट इनके रोजगार का माध्यम बन गया है. उनकी यही कलाकारी सूरजकुंड मेले में भी अपना जादू बिखेर रही है.

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