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बाघों की कब्रगाह बना उत्तराखंड! 5 महीने में 13 टाइगर की मौत, कॉर्बेट में पांच ने गंवाई जान

उत्तराखंड में पिछले 5 महीने में 13 बाघों की मौत हुई है. इसमें से 5 बाघ अकेले कॉर्बेट में दम तोड़ चुके हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को बाघों के संरक्षण के लिए सबसे अधिक बजट दिया जाता है. इसके बाद भी यहां बाघों की सबसे अधिक जान जा रही है.

death of tigers in uttarakhand
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Published : Jun 8, 2023, 11:17 AM IST

Updated : Jun 8, 2023, 11:12 PM IST

5 महीने में 13 टाइगर की मौत.

देहरादून (उत्तराखंड): साल 2023 उत्तराखंड में बाघों के लिए अब तक सबसे मुसीबतों वाला साल रहा है. उत्तराखंड में पिछले 5 महीनों में कई बाघों की मौत हुई है. हैरानी की बात यह है कि इन मौतों को वन महकमा सामान्य स्थिति दिखाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि कई बाघों की मौत की वजह बेहद संवेदनशील है. जिसमें बाघों के बीच आपसी संघर्ष से हो रही मौत और मरी हुई बाघिन के पेट में पोस्टमार्टम के दौरान खाना ना मिलना शामिल है. हालांकि, इस पूरे मामले को लेकर जांच के आदेश दिए जा चुके हैं.

death of tigers in uttarakhand
उत्तराखंड में कुल बाघों की मौत का आंकड़ा

उत्तराखंड के जंगलों में बाघों की बादशाहत को खतरा: उत्तराखंड ने बाघों के संरक्षण को लेकर पिछले लंबे समय से अपनी बादशाहत कायम रखी है. भले ही उत्तराखंड देश में बाघों की संख्या के लिहाज से तीसरे नंबर पर हो लेकिन घनत्व के लिहाज से आज भी राज्य पहले स्थान पर ही है. वैसे तो हर 4 साल में बाघों की गणना के दौरान उत्तराखंड से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं, लेकिन प्रदेश में साल 2023 बाघों के लिए मुसीबत बनकर आया है. यह बात पिछले 5 महीनों के दौरान बाघों की मौत के उस आंकड़े को देखकर कही जा रही है. प्रदेश में बाघों की मौत को लेकर फिलहाल क्या कहते हैं आंकड़े यह भी जानिए.

death of tigers in uttarakhand
साल 2023 में उत्तराखंड में बाघों की मौत के आंकड़े

5 महीने में 13 बाघों की मौत: राज्य में पिछले 5 महीनों के दौरान 13 बाघों की मौत हो चुकी है. इसमें कुछ बाघ तो खराब स्थिति में मरे हुए मिले. यही नहीं एक बाघ फंदे में फंसा हुआ मिला. जिसका इलाज करने का दावा कॉर्बेट प्रशासन कर रहा है. उत्तराखंड वन विभाग के पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ डॉक्टर समीर सिन्हा कहते हैं राज्य में जिन बाघों की मौत हुई है, उसके लिए सीसीएफ कुमाऊं को जांच के आदेश दे दिए गए हैं. हालांकि, उन्होंने यह भी साफ किया कि जिन बाघों की मौत हुई है, वह मौतें फिलहाल प्राकृतिक दिखाई देती हैं. ऐसे में कॉर्बेट में बाघों की जो संख्या है उसके लिहाज से मौत के जो आंकड़े आए हैं, वह असामान्य नहीं हैं.

death of tigers in uttarakhand
साल 2023 में उत्तराखंड में बाघों की मौत के आंकड़े

पढ़ें- बाघों को मिलेगा नया आशियाना, फिर आबाद होगा राजाजी का पश्चिमी इलाका

बाघों के लिए बजट की नहीं है कमी: बता दें देश भर में बाघों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर भी चलाया जा रहा है. जिसके तहत बड़ी भारी रकम राज्यों को टाइगर के संरक्षण के लिए दी जाती है. देश में अब तक बाघों के संरक्षण के लिए 54 टाइगर रिजर्व पार्क स्थापित किए जा चुके हैं. इन टाइगर रिजर्व पार्क में कॉर्बेट का स्थान बेहद महत्वपूर्ण है. कॉर्बेट देश में घनत्व के लिहाज से सबसे ज्यादा बाघों की संख्या वाला पार्क है. वैसे कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को प्रोजेक्ट टाइगर के तहत और राज्य सरकार की तरफ से भी बड़ा बजट दिया जाता है. जिससे बाघों की सुरक्षा को मुकम्मल किया जा सके. उत्तराखंड में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व बजट के लिहाज से भी अव्वल है, देखिए आंकड़े.

death of tigers in uttarakhand
प्रोजेक्ट टाइगर के तहत दिया जाता है बजट

कॉर्बेट के जंगल में मारे गए 5 बाघ: इस तरह औसतन देखें तो कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को केंद्र और राज्य मिलकर भारी बजट आवंटित करते हैं. इसका असर यह है कि प्रदेश में कुल 442 बाघों में से 250 बाघ अकेले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ही हैं. उत्तराखंड में हर बार बाघों की गिनती के दौरान चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. पिछले दिनों जारी हुए आंकड़ों में भी शिवालिक रेंज में सबसे ज्यादा करीब 151 बाघों की बढ़ोत्तरी रिकॉर्ड की गई है. साल 2023 के 5 महीने 13 बाघों की मौत ने सभी के माथे पर चिंता की लकीर ला दी. इसमें भी 5 बार अकेले कॉर्बेट क्षेत्र में ही मारे गए हैं. कुछ लोग खाने की कमी के कारण उनकी मौत की बात कहते हैं तो कुछ का कहना है कि संभवत संख्या ज्यादा होने से इनके बीच वर्चस्व की लड़ाई बढ़ने के कारण मौत हुई है.

death of tigers in uttarakhand
प्रोजेक्ट टाइगर के तहत दिया जाता है बजट

पढ़ें-Project TIGER: 'प्रोजेक्ट टाइगर' की हकीकत, देशभर में हर 40 घंटे में एक बाघ की मौत, तेंदुए को लेकर भी चौंकाने वाला आंकड़ा

वन मंत्री का अपना राग: उत्तराखंड सरकार के वन मंत्री सुबोध उनियाल इसे कुछ और ही परिभाषा दे रहे हैं. सुबोध उनियाल की मानें तो जिस तरह एक इंसान का जीवन समय निश्चित होता है, उसी तरह जानवर भी एक निश्चित समय तक जीवित रहते हैं. इस दौरान वृद्ध होने पर वह अपना शिकार नहीं कर पाते. जिसके कारण वह अपनी जान गंवा देते हैं. हालांकि, वे इस पूरे मामले को गंभीरता से लिए जाने और जांच करने की बात भी कहते नजर आते हैं.

death of tigers in uttarakhand
बाघों की मौत पर क्या कहते हैं वन मंत्री सुबोध उनियाल

पढ़ें- चिंताजनक! उत्तराखंड में बाघ की मौत के बाद खुला राज, पहली बार इस वजह से हुई किसी बाघ की डेथ

बाघों की मौत पर क्या है अपडेट: खबर है कि मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं की तरफ से अपनी जांच रिपोर्ट दी जा चुकी है. इसमें भी इन बाघों की मौत को सामान्य बताया गया. हालांकि इन सबके बावजूद जरूरत है कि संवेदनशील क्षेत्रों में बाघों की मौत के कारणों को जानने के लिए अध्ययन करवाया जाए, ताकि बाघों की हो रही मौत के पीछे के असल कारणों को जाना जा सके.

5 महीने में 13 टाइगर की मौत.

देहरादून (उत्तराखंड): साल 2023 उत्तराखंड में बाघों के लिए अब तक सबसे मुसीबतों वाला साल रहा है. उत्तराखंड में पिछले 5 महीनों में कई बाघों की मौत हुई है. हैरानी की बात यह है कि इन मौतों को वन महकमा सामान्य स्थिति दिखाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि कई बाघों की मौत की वजह बेहद संवेदनशील है. जिसमें बाघों के बीच आपसी संघर्ष से हो रही मौत और मरी हुई बाघिन के पेट में पोस्टमार्टम के दौरान खाना ना मिलना शामिल है. हालांकि, इस पूरे मामले को लेकर जांच के आदेश दिए जा चुके हैं.

death of tigers in uttarakhand
उत्तराखंड में कुल बाघों की मौत का आंकड़ा

उत्तराखंड के जंगलों में बाघों की बादशाहत को खतरा: उत्तराखंड ने बाघों के संरक्षण को लेकर पिछले लंबे समय से अपनी बादशाहत कायम रखी है. भले ही उत्तराखंड देश में बाघों की संख्या के लिहाज से तीसरे नंबर पर हो लेकिन घनत्व के लिहाज से आज भी राज्य पहले स्थान पर ही है. वैसे तो हर 4 साल में बाघों की गणना के दौरान उत्तराखंड से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं, लेकिन प्रदेश में साल 2023 बाघों के लिए मुसीबत बनकर आया है. यह बात पिछले 5 महीनों के दौरान बाघों की मौत के उस आंकड़े को देखकर कही जा रही है. प्रदेश में बाघों की मौत को लेकर फिलहाल क्या कहते हैं आंकड़े यह भी जानिए.

death of tigers in uttarakhand
साल 2023 में उत्तराखंड में बाघों की मौत के आंकड़े

5 महीने में 13 बाघों की मौत: राज्य में पिछले 5 महीनों के दौरान 13 बाघों की मौत हो चुकी है. इसमें कुछ बाघ तो खराब स्थिति में मरे हुए मिले. यही नहीं एक बाघ फंदे में फंसा हुआ मिला. जिसका इलाज करने का दावा कॉर्बेट प्रशासन कर रहा है. उत्तराखंड वन विभाग के पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ डॉक्टर समीर सिन्हा कहते हैं राज्य में जिन बाघों की मौत हुई है, उसके लिए सीसीएफ कुमाऊं को जांच के आदेश दे दिए गए हैं. हालांकि, उन्होंने यह भी साफ किया कि जिन बाघों की मौत हुई है, वह मौतें फिलहाल प्राकृतिक दिखाई देती हैं. ऐसे में कॉर्बेट में बाघों की जो संख्या है उसके लिहाज से मौत के जो आंकड़े आए हैं, वह असामान्य नहीं हैं.

death of tigers in uttarakhand
साल 2023 में उत्तराखंड में बाघों की मौत के आंकड़े

पढ़ें- बाघों को मिलेगा नया आशियाना, फिर आबाद होगा राजाजी का पश्चिमी इलाका

बाघों के लिए बजट की नहीं है कमी: बता दें देश भर में बाघों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर भी चलाया जा रहा है. जिसके तहत बड़ी भारी रकम राज्यों को टाइगर के संरक्षण के लिए दी जाती है. देश में अब तक बाघों के संरक्षण के लिए 54 टाइगर रिजर्व पार्क स्थापित किए जा चुके हैं. इन टाइगर रिजर्व पार्क में कॉर्बेट का स्थान बेहद महत्वपूर्ण है. कॉर्बेट देश में घनत्व के लिहाज से सबसे ज्यादा बाघों की संख्या वाला पार्क है. वैसे कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को प्रोजेक्ट टाइगर के तहत और राज्य सरकार की तरफ से भी बड़ा बजट दिया जाता है. जिससे बाघों की सुरक्षा को मुकम्मल किया जा सके. उत्तराखंड में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व बजट के लिहाज से भी अव्वल है, देखिए आंकड़े.

death of tigers in uttarakhand
प्रोजेक्ट टाइगर के तहत दिया जाता है बजट

कॉर्बेट के जंगल में मारे गए 5 बाघ: इस तरह औसतन देखें तो कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को केंद्र और राज्य मिलकर भारी बजट आवंटित करते हैं. इसका असर यह है कि प्रदेश में कुल 442 बाघों में से 250 बाघ अकेले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ही हैं. उत्तराखंड में हर बार बाघों की गिनती के दौरान चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. पिछले दिनों जारी हुए आंकड़ों में भी शिवालिक रेंज में सबसे ज्यादा करीब 151 बाघों की बढ़ोत्तरी रिकॉर्ड की गई है. साल 2023 के 5 महीने 13 बाघों की मौत ने सभी के माथे पर चिंता की लकीर ला दी. इसमें भी 5 बार अकेले कॉर्बेट क्षेत्र में ही मारे गए हैं. कुछ लोग खाने की कमी के कारण उनकी मौत की बात कहते हैं तो कुछ का कहना है कि संभवत संख्या ज्यादा होने से इनके बीच वर्चस्व की लड़ाई बढ़ने के कारण मौत हुई है.

death of tigers in uttarakhand
प्रोजेक्ट टाइगर के तहत दिया जाता है बजट

पढ़ें-Project TIGER: 'प्रोजेक्ट टाइगर' की हकीकत, देशभर में हर 40 घंटे में एक बाघ की मौत, तेंदुए को लेकर भी चौंकाने वाला आंकड़ा

वन मंत्री का अपना राग: उत्तराखंड सरकार के वन मंत्री सुबोध उनियाल इसे कुछ और ही परिभाषा दे रहे हैं. सुबोध उनियाल की मानें तो जिस तरह एक इंसान का जीवन समय निश्चित होता है, उसी तरह जानवर भी एक निश्चित समय तक जीवित रहते हैं. इस दौरान वृद्ध होने पर वह अपना शिकार नहीं कर पाते. जिसके कारण वह अपनी जान गंवा देते हैं. हालांकि, वे इस पूरे मामले को गंभीरता से लिए जाने और जांच करने की बात भी कहते नजर आते हैं.

death of tigers in uttarakhand
बाघों की मौत पर क्या कहते हैं वन मंत्री सुबोध उनियाल

पढ़ें- चिंताजनक! उत्तराखंड में बाघ की मौत के बाद खुला राज, पहली बार इस वजह से हुई किसी बाघ की डेथ

बाघों की मौत पर क्या है अपडेट: खबर है कि मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं की तरफ से अपनी जांच रिपोर्ट दी जा चुकी है. इसमें भी इन बाघों की मौत को सामान्य बताया गया. हालांकि इन सबके बावजूद जरूरत है कि संवेदनशील क्षेत्रों में बाघों की मौत के कारणों को जानने के लिए अध्ययन करवाया जाए, ताकि बाघों की हो रही मौत के पीछे के असल कारणों को जाना जा सके.

Last Updated : Jun 8, 2023, 11:12 PM IST
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