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महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावित करते हैं किडनी से जुड़े रोग

किडनी यानी गुर्दों में समस्या महिलाओं और पुरुषों दोनों में नजर आ सकती है. लेकिन चिकित्सकों और जानकारों का मानना है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को क्रोनिक किडनी डिजीज पांच प्रतिशत तक ज्यादा प्रभावित करती है.

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महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावित करते हैं किडनी से जुड़े रोग
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Published : Mar 7, 2022, 7:30 PM IST

चिकित्सक तथा जानकार मानते हैं कि किडनी से संबंधित समस्याएं या रोग महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा देखने में आते हैं. अलग-अलग शोधों और चिकित्सकों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यदि अनुमानित आंकड़े की बात की जाए तो पुरुषों में 12 प्रतिशत, जबकि महिलाओं में 14 प्रतिशत किडनी की बीमारी का खतरा रहता है. वहीं माना जाता है कि किडनी फेल होना दुनियाभर में महिलाओं की मौत का आठवां बड़ा कारण है. वर्ष 2019 में जारी अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों की बात करें तो उस समय पूरे विश्व में लगभग 19.5 करोड़ महिलाएं किडनी की समस्या से पीड़ित थीं.

साइलेंट किलर
दिल्ली के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. मनोज सिंह बताते हैं कि किडनी संबंधित रोगों को 'साइलेंट किलर' भी कहा जाता है क्योंकि जब तक इसके लक्षण प्रत्यक्ष रूप से नजर आते हैं, आम तौर पर तब तक समस्या काफी बढ़ चुकी होती है. किडनी यानी गुर्दे में कई प्रकार की समस्याएं या रोग नजर आ सकते हैं, जिनमें मुख्यतः किडनी का फेल होना, कैंसर, किडनी में संक्रमण, पथरी, पेशाब में संक्रमण या मूत्रमार्ग संबंधी समस्याएं प्रमुख हैं.

वह बताते हैं कि चाहे महिलाएं हों या पुरुष, उनमें किडनी से संबंधित किसी भी बीमारी के लिए मुख्यतः मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, खाने में नमक की ज्यादा मात्रा या आहार में असंयमित्ता, शराब का ज्यादा मात्रा में सेवन या कई बार कुछ विशेष दवाओं के सेवन से होने वाले पार्श्वप्रभावों को जिम्मेदार माना जाता है. इसके अलावा कई बार कुछ मेटाबॉलिक डिसॉर्डर या ऐनाटॉमी डिसॉर्डर के कारण भी किडनी संबंधी बीमारियां हो सकती हैं.

वहीं, विशेष तौर पर महिलाओं की बात करें तो लंबी अवधि तक यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन या लंबे समय तक पेशाब को रोकने तथा गर्भावस्था की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण महिलाओं में किडनी से जुड़ी समस्या हो सकती है. यही नहीं किडनी में समस्या होने पर गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के समय कुछ समस्याएं या जटिलताएं भी सामने आ सकती हैं. इसके अलावा समस्या के बढ़ने पर विशेषकर क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) से पीड़ित महिलाओं में समयपूर्व प्रसव होने की आशंका भी बढ़ जाती है. वहीं सीकेडी पीड़ित महिलाओं को गर्भधारण करने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि इस रोग में महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है.

किडनी डिजीज के लक्षण
डॉ. मनोज बताते हैं कि किडनी में समस्या होने पर आम तौर पर शुरुआती दौर में ज्यादा प्रत्यक्ष लक्षण नहीं नजर आते हैं, और जो लक्षण नजर आते भी हैं वे इतने सामान्य होते हैं कि ज्यादातर लोग उनकी तरफ ध्यान ही नहीं देते हैं. किडनी की बीमारी में विशेषकर महिलाओं में नजर आने वाले कुछ लक्षण इस प्रकार हैं:-

  • भूख कम लगना
  • वजन कम होना
  • रात में कई बार पेशाब आना
  • पैरों तथा टखनों में सूजन
  • लगातार थकान, कमजोरी महसूस करना
  • मतली और उल्टी जैसा महसूस होना
  • मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन, खिंचाव महसूस होना
  • एकाग्रता में कमी
  • नींद न आना
  • त्वचा में समस्याएं
  • आंखों के आसपास सूजन

डॉ. मनोज बताते हैं कि ज्यादा गंभीर अवस्था में कई बार पेशाब से खून आने या सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं.

कैसे करें बचाव
डॉ. मनोज बताते हैं कि वैसे तो महिला हो या पुरुष हर उम्र में स्वास्थ्य की जांच करवाते रहना फायदेमंद होता है. लेकिन 30 से 35 वर्ष के बाद खून पेशाब साहित कुछ जांच सालाना या नियमित अंतराल पर करवाते रहना जरूरी होता है. इसके अलावा किडनी संबंधी बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी है कि कुछ बातों का विशेष ध्यान रखा जाए. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

  • स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं.
  • स्वस्थ आहार तथा खान पान की स्वस्थ आदतों को अपनाएं.
  • शरीर में पानी की कमी न होने दें, भरपूर मात्रा में पानी पीएं.
  • पेशाब को देर तक रोक कर न रखें
  • शराब या धूम्रपान से परहेज करें या उनका सेवन कम करें.
  • मोटापा को नियंत्रित रखें तथा मधुमेह या उच्च रक्तचाप की अवस्था में चिकित्सक के निर्देशों का पालन करें.
  • यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन से बचें.
  • बहुत ज्यादा दर्द निवारक दवाइयों के सेवन से बचें.
  • प्राप्त मात्रा में नींद लें.

चिकित्सीय परामर्श जरूरी
डॉ. मनोज बताते हैं कि शरीर में किसी भी प्रकार की समस्या, अकारण थकान या कमजोरी या किसी भी प्रकार के दर्द को अनदेखा नहीं करना चाहिए. साथ ही बहुत जरूरी है कि कोई भी समस्या होने पर किसी दोस्त या जानकार की सलाह पर कोई भी दवाई लेने की बजाय चिकित्सक से परामर्श लेकर उनके द्वारा बताई गई दवाई का सेवन किया जाए. क्योंकि लक्षणों की अनदेखी या आकारण या गलत दवाइयों का सेवन समस्या को ज्यादा गंभीर बना सकता है.

पढ़ें- महिलाओं में शारीरिक व मानसिक रोगों का कारण बन सकता है कार्यस्थल पर शोषण

चिकित्सक तथा जानकार मानते हैं कि किडनी से संबंधित समस्याएं या रोग महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा देखने में आते हैं. अलग-अलग शोधों और चिकित्सकों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यदि अनुमानित आंकड़े की बात की जाए तो पुरुषों में 12 प्रतिशत, जबकि महिलाओं में 14 प्रतिशत किडनी की बीमारी का खतरा रहता है. वहीं माना जाता है कि किडनी फेल होना दुनियाभर में महिलाओं की मौत का आठवां बड़ा कारण है. वर्ष 2019 में जारी अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों की बात करें तो उस समय पूरे विश्व में लगभग 19.5 करोड़ महिलाएं किडनी की समस्या से पीड़ित थीं.

साइलेंट किलर
दिल्ली के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. मनोज सिंह बताते हैं कि किडनी संबंधित रोगों को 'साइलेंट किलर' भी कहा जाता है क्योंकि जब तक इसके लक्षण प्रत्यक्ष रूप से नजर आते हैं, आम तौर पर तब तक समस्या काफी बढ़ चुकी होती है. किडनी यानी गुर्दे में कई प्रकार की समस्याएं या रोग नजर आ सकते हैं, जिनमें मुख्यतः किडनी का फेल होना, कैंसर, किडनी में संक्रमण, पथरी, पेशाब में संक्रमण या मूत्रमार्ग संबंधी समस्याएं प्रमुख हैं.

वह बताते हैं कि चाहे महिलाएं हों या पुरुष, उनमें किडनी से संबंधित किसी भी बीमारी के लिए मुख्यतः मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, खाने में नमक की ज्यादा मात्रा या आहार में असंयमित्ता, शराब का ज्यादा मात्रा में सेवन या कई बार कुछ विशेष दवाओं के सेवन से होने वाले पार्श्वप्रभावों को जिम्मेदार माना जाता है. इसके अलावा कई बार कुछ मेटाबॉलिक डिसॉर्डर या ऐनाटॉमी डिसॉर्डर के कारण भी किडनी संबंधी बीमारियां हो सकती हैं.

वहीं, विशेष तौर पर महिलाओं की बात करें तो लंबी अवधि तक यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन या लंबे समय तक पेशाब को रोकने तथा गर्भावस्था की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण महिलाओं में किडनी से जुड़ी समस्या हो सकती है. यही नहीं किडनी में समस्या होने पर गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के समय कुछ समस्याएं या जटिलताएं भी सामने आ सकती हैं. इसके अलावा समस्या के बढ़ने पर विशेषकर क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) से पीड़ित महिलाओं में समयपूर्व प्रसव होने की आशंका भी बढ़ जाती है. वहीं सीकेडी पीड़ित महिलाओं को गर्भधारण करने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि इस रोग में महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है.

किडनी डिजीज के लक्षण
डॉ. मनोज बताते हैं कि किडनी में समस्या होने पर आम तौर पर शुरुआती दौर में ज्यादा प्रत्यक्ष लक्षण नहीं नजर आते हैं, और जो लक्षण नजर आते भी हैं वे इतने सामान्य होते हैं कि ज्यादातर लोग उनकी तरफ ध्यान ही नहीं देते हैं. किडनी की बीमारी में विशेषकर महिलाओं में नजर आने वाले कुछ लक्षण इस प्रकार हैं:-

  • भूख कम लगना
  • वजन कम होना
  • रात में कई बार पेशाब आना
  • पैरों तथा टखनों में सूजन
  • लगातार थकान, कमजोरी महसूस करना
  • मतली और उल्टी जैसा महसूस होना
  • मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन, खिंचाव महसूस होना
  • एकाग्रता में कमी
  • नींद न आना
  • त्वचा में समस्याएं
  • आंखों के आसपास सूजन

डॉ. मनोज बताते हैं कि ज्यादा गंभीर अवस्था में कई बार पेशाब से खून आने या सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं.

कैसे करें बचाव
डॉ. मनोज बताते हैं कि वैसे तो महिला हो या पुरुष हर उम्र में स्वास्थ्य की जांच करवाते रहना फायदेमंद होता है. लेकिन 30 से 35 वर्ष के बाद खून पेशाब साहित कुछ जांच सालाना या नियमित अंतराल पर करवाते रहना जरूरी होता है. इसके अलावा किडनी संबंधी बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी है कि कुछ बातों का विशेष ध्यान रखा जाए. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

  • स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं.
  • स्वस्थ आहार तथा खान पान की स्वस्थ आदतों को अपनाएं.
  • शरीर में पानी की कमी न होने दें, भरपूर मात्रा में पानी पीएं.
  • पेशाब को देर तक रोक कर न रखें
  • शराब या धूम्रपान से परहेज करें या उनका सेवन कम करें.
  • मोटापा को नियंत्रित रखें तथा मधुमेह या उच्च रक्तचाप की अवस्था में चिकित्सक के निर्देशों का पालन करें.
  • यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन से बचें.
  • बहुत ज्यादा दर्द निवारक दवाइयों के सेवन से बचें.
  • प्राप्त मात्रा में नींद लें.

चिकित्सीय परामर्श जरूरी
डॉ. मनोज बताते हैं कि शरीर में किसी भी प्रकार की समस्या, अकारण थकान या कमजोरी या किसी भी प्रकार के दर्द को अनदेखा नहीं करना चाहिए. साथ ही बहुत जरूरी है कि कोई भी समस्या होने पर किसी दोस्त या जानकार की सलाह पर कोई भी दवाई लेने की बजाय चिकित्सक से परामर्श लेकर उनके द्वारा बताई गई दवाई का सेवन किया जाए. क्योंकि लक्षणों की अनदेखी या आकारण या गलत दवाइयों का सेवन समस्या को ज्यादा गंभीर बना सकता है.

पढ़ें- महिलाओं में शारीरिक व मानसिक रोगों का कारण बन सकता है कार्यस्थल पर शोषण

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