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प्रगति के मार्ग पर है मानसिक रोग उपचार पद्दतीयां - मानसिक रोग

कोविड-19 के साएं में बीता यह डेढ़ साल से ज्यादा का समय जन और मन दोनों पर काफी भारी रहा हैं। संक्रमण के प्रभाव में आकर इस अवधि में बहुत से लोगों ने अपनी जान गवाईं, और बड़ी संख्या में लोग लंबी अवधि के लिए रोग का शिकार बने। इस अवधि में लोगों को बड़ी संख्या में चिंता, शोक, सामाजिक अलगाव के चलते अवसाद, स्किज़ोफ्रेनिया तथा अन्य प्रकार की मनोविकृतियां, मनोदशाओं और व्यवहार विकारों का सामना करना पड़ा।

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Mental health transformation
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Published : Aug 12, 2021, 3:06 PM IST

एक दौर था जब किसी भी प्रकार के मानसिक समस्या के इलाज के लिए मनो चिकित्सकों के पास जाना समाज में हंसी और शर्म का कारण बन जाता था। मिलेनियम और जेनरेशन जेड कही जाने वाली आज की पीढ़ी भी मनोचिकित्सकों के पास जाने में हिचकिचाती है लेकिन उसका कारण सामाजिक मान्यताएं नहीं बल्कि मानसिक समस्याओं के उपचार के लिये दी जाने वाली महंगी जांचे तथा महंगी दवाइयां हैं। यही नहीं, ज्यादातर मामलों में मानसिक समस्याओं के लिए दी जाने वाली दवाइयों के शरीर पर दुष्प्रभाव या पार्श्व प्रभाव भी नजर आते हैं जैसे वजन बढ़ना, भावनात्मक या पाचन संबंधी समस्याएं, यौन रोग, नींद में समस्या तथा हारमोंस में असंतुलन आदि।

मानसिक विकारों और समस्याओं के क्षेत्र में उपचार को हर लिहाज से बेहतर और सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से विभिन्न विकल्पों के विकास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्षेत्र में कार्य कर रहे स्टिमवेदा न्यूरोसाइंसेज के संस्थापक और सीईओ राम्या येलाप्रगदा बताते हैं कि वर्तमान में इसी श्रंखला के अंतर्गत आने वाले “अत्याधुनिक मानसिक उत्तेजना” (आरटीएमएस) उपचार का उपयोग करने के लिए भारत में 1.2 लाख रूपये से अधिक का भुगतान करना पड़ता है।

वह बताते हैं कि मस्तिष्क उत्तेजना के सुरक्षित और लक्षित विकल्प अपेक्षाकृत काफी लोकप्रियता प्राप्त कर सकते हैं लेकिन इसमें आरटीएमएस की जटिलता और आकार एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आता है। वह बताते हैं कि वर्षों से शोधकर्ता मस्तिष्क उत्तेजना तकनीक का एक पोर्टेबल संस्करण विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे ट्रांसक्रेनियल डायरेक्ट करंट स्टीम्यूलेशन (टीडीसीएस) कहा जाता है जो दैनिक मनोरोग चिकित्सा को बेहतर रूप में बदल सकता है।

गौरतलब है कि राम्या येलाप्रगदा आईआईटी दिल्ली से अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद ए.आई, एम.एल केंद्रित कार्यक्रम प्लाक्षा लीडर्स फैलोशिप का हिस्सा बने। यहीं पर उनकी मुलाकात उनकी साथी संस्थापक से हुई जिसके उपरांत उन्होंने उनके साथ मिलकर स्टिमवेदा न्यूरोसाइंसेज की शुरुआत की।

टीडीसीएस के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए एम्स दिल्ली के क्लीनिकल मनोचिकित्सक रोहित बताते हैं कि टीडीसीएस व्यापक उपयोग की क्षमता के चलते मानसिक बीमारियों के प्रबंधन में उपयोगी साबित हो सकते हैं। इस तकनीक ने अभी तक संज्ञानात्मक समस्याओं और मानसिक रुग्णता या बीमारियों के प्रबंधन में प्रभावकारी भूमिका दर्शित की है।

गौरतलब है कि 2019 में टीडीसीएस को यूरोप और यूके में बेचे जाने वाले अवसाद के लिए घरेलू उपचार के लिए एक चिकित्सा उपकरण के रूप में अनुमोदन प्राप्त हुआ था। वहीं वर्ष 2020 से अमेरिका में एफडीए के साथ इसे लेकर विभिन्न प्रकार के परीक्षण चल रहे हैं।

टीडीसीएस की उपयोगिता को लेकर 30 से अधिक वर्षों तक किए गए शोध को सारांशित करते हुए हार्वर्ड विश्वविद्यालय, निमहंस बैंगलोर और दुनिया भर के अन्य प्रमुख न्यूरो मनोरोग अनुसंधान संस्थानों के शोधकर्ताओं ने इंटरनेशनल जनरल ऑफ न्यूरोसाइकोफार्मोकोलॉजी में एक शोध लेख प्रकाशित किया है। जिसके निष्कर्षों के अनुसार टीडीसीएस निश्चित रूप से अवसाद जैसे रोग के इलाज में प्रभावी है। साथ ही पुराने दर्द, शिजोफ्रेनिया में श्रवण मतिभ्रम तथा मोटर्स स्ट्रोक की इलाज में इसकी भूमिका काफी सकारात्मक मानी जा रही है।

राम्या येलाप्रगदा बताते हैं कि टीडीसीएस वर्तमान समय में कई प्रगतिशील मनोचिकित्सकों द्वारा दवा के सुरक्षित विकल्प और आरएमएस के लिए एक किफायती विकल्प के रूप में अपनाया जा रहा है। भारत में दो सबसे प्रमुख मनोरोग अस्पताल एम्स दिल्ली तथा एन.आई.एम.एच.ए.एन.एस बैंगलोर टीडीसीएस का उपयोग अवसाद शिजोफ्रेनिया के लिए श्रवण मतिभ्रम, टिनिटस, मस्तिष्क की चोट तथा ओसीडी जैसे विभिन्न विकारों के इलाज में करते हैं।

वे बताते हैं कि मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के उपचार में इस प्रकार के पोर्टेबल मस्तिष्क उत्तेजना उपचार की भूमिका सिर्फ सुरक्षित उपचार के दायरे तक ही सीमित नही है, बल्कि “ईईजी” जैसे मस्तिष्क गतिविधि निगरानी तकनीक (जांच) और गैर शिक्षण एल्गोरिदम के संयोजन में भी इसकी भूमिका काफी प्रभावी मानी जाती है ।

गौरतलब है कि स्टिमवेदा न्यूरोसाइंसेज एक ऐसा भारतीय स्टार्टअप है जो एम्स दिल्ली के सहयोग से यूसी बर्कले में पूर्व डीन ऑफ इंजीनियरिंग द्वारा बताई गई प्राथमिकताओं के आधार पर न्यूरो साइकियाट्रिक तकनीक की मदद से घरेलू अवसाद के सुरक्षित उपचार तथा उसके प्रबंधन का विकल्प प्रदान करता है। इसे नैसकॉम सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड प्लाक्षा में इनक्यूबेट किया गया है।

पढ़ें: क्यों अनिश्चितता हमें व्यवहार बदलने पर मजबूर कर देती है: शोध

एक दौर था जब किसी भी प्रकार के मानसिक समस्या के इलाज के लिए मनो चिकित्सकों के पास जाना समाज में हंसी और शर्म का कारण बन जाता था। मिलेनियम और जेनरेशन जेड कही जाने वाली आज की पीढ़ी भी मनोचिकित्सकों के पास जाने में हिचकिचाती है लेकिन उसका कारण सामाजिक मान्यताएं नहीं बल्कि मानसिक समस्याओं के उपचार के लिये दी जाने वाली महंगी जांचे तथा महंगी दवाइयां हैं। यही नहीं, ज्यादातर मामलों में मानसिक समस्याओं के लिए दी जाने वाली दवाइयों के शरीर पर दुष्प्रभाव या पार्श्व प्रभाव भी नजर आते हैं जैसे वजन बढ़ना, भावनात्मक या पाचन संबंधी समस्याएं, यौन रोग, नींद में समस्या तथा हारमोंस में असंतुलन आदि।

मानसिक विकारों और समस्याओं के क्षेत्र में उपचार को हर लिहाज से बेहतर और सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से विभिन्न विकल्पों के विकास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्षेत्र में कार्य कर रहे स्टिमवेदा न्यूरोसाइंसेज के संस्थापक और सीईओ राम्या येलाप्रगदा बताते हैं कि वर्तमान में इसी श्रंखला के अंतर्गत आने वाले “अत्याधुनिक मानसिक उत्तेजना” (आरटीएमएस) उपचार का उपयोग करने के लिए भारत में 1.2 लाख रूपये से अधिक का भुगतान करना पड़ता है।

वह बताते हैं कि मस्तिष्क उत्तेजना के सुरक्षित और लक्षित विकल्प अपेक्षाकृत काफी लोकप्रियता प्राप्त कर सकते हैं लेकिन इसमें आरटीएमएस की जटिलता और आकार एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आता है। वह बताते हैं कि वर्षों से शोधकर्ता मस्तिष्क उत्तेजना तकनीक का एक पोर्टेबल संस्करण विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे ट्रांसक्रेनियल डायरेक्ट करंट स्टीम्यूलेशन (टीडीसीएस) कहा जाता है जो दैनिक मनोरोग चिकित्सा को बेहतर रूप में बदल सकता है।

गौरतलब है कि राम्या येलाप्रगदा आईआईटी दिल्ली से अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद ए.आई, एम.एल केंद्रित कार्यक्रम प्लाक्षा लीडर्स फैलोशिप का हिस्सा बने। यहीं पर उनकी मुलाकात उनकी साथी संस्थापक से हुई जिसके उपरांत उन्होंने उनके साथ मिलकर स्टिमवेदा न्यूरोसाइंसेज की शुरुआत की।

टीडीसीएस के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए एम्स दिल्ली के क्लीनिकल मनोचिकित्सक रोहित बताते हैं कि टीडीसीएस व्यापक उपयोग की क्षमता के चलते मानसिक बीमारियों के प्रबंधन में उपयोगी साबित हो सकते हैं। इस तकनीक ने अभी तक संज्ञानात्मक समस्याओं और मानसिक रुग्णता या बीमारियों के प्रबंधन में प्रभावकारी भूमिका दर्शित की है।

गौरतलब है कि 2019 में टीडीसीएस को यूरोप और यूके में बेचे जाने वाले अवसाद के लिए घरेलू उपचार के लिए एक चिकित्सा उपकरण के रूप में अनुमोदन प्राप्त हुआ था। वहीं वर्ष 2020 से अमेरिका में एफडीए के साथ इसे लेकर विभिन्न प्रकार के परीक्षण चल रहे हैं।

टीडीसीएस की उपयोगिता को लेकर 30 से अधिक वर्षों तक किए गए शोध को सारांशित करते हुए हार्वर्ड विश्वविद्यालय, निमहंस बैंगलोर और दुनिया भर के अन्य प्रमुख न्यूरो मनोरोग अनुसंधान संस्थानों के शोधकर्ताओं ने इंटरनेशनल जनरल ऑफ न्यूरोसाइकोफार्मोकोलॉजी में एक शोध लेख प्रकाशित किया है। जिसके निष्कर्षों के अनुसार टीडीसीएस निश्चित रूप से अवसाद जैसे रोग के इलाज में प्रभावी है। साथ ही पुराने दर्द, शिजोफ्रेनिया में श्रवण मतिभ्रम तथा मोटर्स स्ट्रोक की इलाज में इसकी भूमिका काफी सकारात्मक मानी जा रही है।

राम्या येलाप्रगदा बताते हैं कि टीडीसीएस वर्तमान समय में कई प्रगतिशील मनोचिकित्सकों द्वारा दवा के सुरक्षित विकल्प और आरएमएस के लिए एक किफायती विकल्प के रूप में अपनाया जा रहा है। भारत में दो सबसे प्रमुख मनोरोग अस्पताल एम्स दिल्ली तथा एन.आई.एम.एच.ए.एन.एस बैंगलोर टीडीसीएस का उपयोग अवसाद शिजोफ्रेनिया के लिए श्रवण मतिभ्रम, टिनिटस, मस्तिष्क की चोट तथा ओसीडी जैसे विभिन्न विकारों के इलाज में करते हैं।

वे बताते हैं कि मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के उपचार में इस प्रकार के पोर्टेबल मस्तिष्क उत्तेजना उपचार की भूमिका सिर्फ सुरक्षित उपचार के दायरे तक ही सीमित नही है, बल्कि “ईईजी” जैसे मस्तिष्क गतिविधि निगरानी तकनीक (जांच) और गैर शिक्षण एल्गोरिदम के संयोजन में भी इसकी भूमिका काफी प्रभावी मानी जाती है ।

गौरतलब है कि स्टिमवेदा न्यूरोसाइंसेज एक ऐसा भारतीय स्टार्टअप है जो एम्स दिल्ली के सहयोग से यूसी बर्कले में पूर्व डीन ऑफ इंजीनियरिंग द्वारा बताई गई प्राथमिकताओं के आधार पर न्यूरो साइकियाट्रिक तकनीक की मदद से घरेलू अवसाद के सुरक्षित उपचार तथा उसके प्रबंधन का विकल्प प्रदान करता है। इसे नैसकॉम सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड प्लाक्षा में इनक्यूबेट किया गया है।

पढ़ें: क्यों अनिश्चितता हमें व्यवहार बदलने पर मजबूर कर देती है: शोध

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