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बदलती सोच और कोरोना के डर के बीच रक्षा बंधन - त्योहार की रौनक फीकी पड़ी

भाई और बहनों का त्योहार रक्षा बंधन कोरोना महामारी के कारण प्रभावित हुआ है. एक तरफ जहां रक्षा बंधन त्योहार मनाने के तरीकों में बदलाव हुआ है, वहीं दूसरी तरफ कोरोना के डर के कारण बाजार भी फीका पड़ा हैं.

Raksha Bandhan amid Corona
कोरोना के बीच रक्षा बंधन
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Published : Aug 3, 2020, 1:44 PM IST

राखी का त्योहार भाई और बहनों के बीच प्रेम और सुरक्षा का वायदा होता है. समय के साथ राखी के त्योहार मनाने के तरीकों में बदलाव आया है. उस पर इस बार कोरोना के सायें में रक्षा बंधन के त्योहार का मूड ही बदल गया है. इस बार बाजार में त्योहार की रौनक फीकी पड़ी हुई है और लोगों में डर व्याप्त हैं. रक्षा बंधन त्योहार के बदलते स्वरूप तथा कोरोना के दौरान राखी का पर्व मनाने के तरीके को लेकर ETV भारत सुखीभवा टीम ने मनोचिकित्सक डॉ. वीना कृष्णन से बात की.

राखी और कोरोना

कोरोना के साये में राखी के त्योहार को लेकर लोगों के मन में व्याप्त संशय के बारे में बात करते हुए डॉ. कृष्णन बताती है कि वर्तमान परिस्थितियों में लोग एक अलग ही डर के साये में जिंदगी जी रहे हैं. साधारण तौर पर त्योहार हमारे जीवन में आनंद और उल्लास का क्षण लेकर आता हैं, लेकिन इस बार कोरोना के कारण लोग इस उधेड़बुन में लगे हैं कि त्योहार मनाएं या नहीं. इसके चलते कहीं न कहीं उनके मन में एक निराशा भी है. जो उनके डर को बढ़ावा दे सकती है, जो सही नहीं है.

ऐसे में जरूरी है की वे अपनी सकारात्मक सोच बनाएं रखें और ज्यादा बड़े स्तर पर त्योहार मनाने की बजाय प्रतिकात्मक रूप में सूक्ष्म तरीके से तमाम सावधानियों का ध्यान रखते हुए त्योहार मनाएं. भाई बहन प्रत्यक्ष रूप से मिल जुल कर त्योहार मनाने की बजाय फोन तथा अन्य डिजीटल साधनों का उपयोग करें. जिससे वह भावनात्मक रूप से स्वयं को मजबूत और जुड़ा हुआ महसूस करेंगे.

इसके अलावा जरूरी है कि त्योहार के दौरान बाजार से मिठाई लाने की बजाय घर पर ही ऐसी मिठाईयां और पकवान बनाएं, जो सेहत के लिए अच्छे हो. यदि भाई आसपास रहने वाली बहन के घर जा भी रहे हो तो मास्क, दस्तानों और सैनिटाइजर का उपयोग करें. इसके अलावा बहनों के घर बाजार की मिठाई लेकर जाने की बजाय फल और ऐसे उपहार ले जाएं, जो उन्हें कोरोना संक्रमण से बचाने में मदद करे. जैसे दस्तानों का डब्बा, मास्क तथा विटामिन सी की गोलियों का पैकेट.

राखी का बदलता स्वरूप

डॉ. कृष्णन बताती हैं कि बीतते समय के साथ रक्षा बंधन सिर्फ भाई बहन के त्योहार के रूप में ही नहीं बल्कि एक सामाजिक आयोजन के तौर पर भी मनाया जाने लगा है. राखी का त्योहार आता है, तो स्कूलों में राखी को लेकर आयोजन होने लगते हैं. जहां बच्चे अपने हाथों से राखी बनाते हैं, जिन्हें सरहदों पर तैनात हमारे जवानों को भेजा जाता है. यही नहीं राखी के दिन पुलिस वालों को कई लड़कियां तथा महिलाएं राखी बांधती हैं, क्योंकि वे हमारी रक्षा करते हैं. इन नई कवायदों का लोगों पर भावनात्मक रूप से काफी सकारात्मक असर भी पड़ता है.

ये तो रहा इस त्योहार के बदलते सामाजिक परिदृश्य का उदाहरण. पारिवारिक स्तर पर भी देखें, तो इस त्योहार तथा उसके मनाने के स्वरूप में काफी अंतर आया है. ऐसा नहीं है कि त्योहार मनाने का तरीका बदल गया हो. आज भी बहने उसी प्यार के साथ अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और तोहफे लेती हैं. लेकिन जब बात सुरक्षा के वचन लेने की होती है, तो आज वह वायदा सिर्फ भाई नहीं करता बल्कि भाई बहन दोनों ही एक दूसरे की सुरक्षा और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे का सहारा बनने का अकथित वचन देते हैं. यही नहीं आज कल कई छोटे भाई और बहनें भी अपनी बड़ी बहनों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं. जो भाई बहन के बीच के प्यार और विश्वास को बढ़ाता है.

राखी का त्योहार भाई और बहनों के बीच प्रेम और सुरक्षा का वायदा होता है. समय के साथ राखी के त्योहार मनाने के तरीकों में बदलाव आया है. उस पर इस बार कोरोना के सायें में रक्षा बंधन के त्योहार का मूड ही बदल गया है. इस बार बाजार में त्योहार की रौनक फीकी पड़ी हुई है और लोगों में डर व्याप्त हैं. रक्षा बंधन त्योहार के बदलते स्वरूप तथा कोरोना के दौरान राखी का पर्व मनाने के तरीके को लेकर ETV भारत सुखीभवा टीम ने मनोचिकित्सक डॉ. वीना कृष्णन से बात की.

राखी और कोरोना

कोरोना के साये में राखी के त्योहार को लेकर लोगों के मन में व्याप्त संशय के बारे में बात करते हुए डॉ. कृष्णन बताती है कि वर्तमान परिस्थितियों में लोग एक अलग ही डर के साये में जिंदगी जी रहे हैं. साधारण तौर पर त्योहार हमारे जीवन में आनंद और उल्लास का क्षण लेकर आता हैं, लेकिन इस बार कोरोना के कारण लोग इस उधेड़बुन में लगे हैं कि त्योहार मनाएं या नहीं. इसके चलते कहीं न कहीं उनके मन में एक निराशा भी है. जो उनके डर को बढ़ावा दे सकती है, जो सही नहीं है.

ऐसे में जरूरी है की वे अपनी सकारात्मक सोच बनाएं रखें और ज्यादा बड़े स्तर पर त्योहार मनाने की बजाय प्रतिकात्मक रूप में सूक्ष्म तरीके से तमाम सावधानियों का ध्यान रखते हुए त्योहार मनाएं. भाई बहन प्रत्यक्ष रूप से मिल जुल कर त्योहार मनाने की बजाय फोन तथा अन्य डिजीटल साधनों का उपयोग करें. जिससे वह भावनात्मक रूप से स्वयं को मजबूत और जुड़ा हुआ महसूस करेंगे.

इसके अलावा जरूरी है कि त्योहार के दौरान बाजार से मिठाई लाने की बजाय घर पर ही ऐसी मिठाईयां और पकवान बनाएं, जो सेहत के लिए अच्छे हो. यदि भाई आसपास रहने वाली बहन के घर जा भी रहे हो तो मास्क, दस्तानों और सैनिटाइजर का उपयोग करें. इसके अलावा बहनों के घर बाजार की मिठाई लेकर जाने की बजाय फल और ऐसे उपहार ले जाएं, जो उन्हें कोरोना संक्रमण से बचाने में मदद करे. जैसे दस्तानों का डब्बा, मास्क तथा विटामिन सी की गोलियों का पैकेट.

राखी का बदलता स्वरूप

डॉ. कृष्णन बताती हैं कि बीतते समय के साथ रक्षा बंधन सिर्फ भाई बहन के त्योहार के रूप में ही नहीं बल्कि एक सामाजिक आयोजन के तौर पर भी मनाया जाने लगा है. राखी का त्योहार आता है, तो स्कूलों में राखी को लेकर आयोजन होने लगते हैं. जहां बच्चे अपने हाथों से राखी बनाते हैं, जिन्हें सरहदों पर तैनात हमारे जवानों को भेजा जाता है. यही नहीं राखी के दिन पुलिस वालों को कई लड़कियां तथा महिलाएं राखी बांधती हैं, क्योंकि वे हमारी रक्षा करते हैं. इन नई कवायदों का लोगों पर भावनात्मक रूप से काफी सकारात्मक असर भी पड़ता है.

ये तो रहा इस त्योहार के बदलते सामाजिक परिदृश्य का उदाहरण. पारिवारिक स्तर पर भी देखें, तो इस त्योहार तथा उसके मनाने के स्वरूप में काफी अंतर आया है. ऐसा नहीं है कि त्योहार मनाने का तरीका बदल गया हो. आज भी बहने उसी प्यार के साथ अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और तोहफे लेती हैं. लेकिन जब बात सुरक्षा के वचन लेने की होती है, तो आज वह वायदा सिर्फ भाई नहीं करता बल्कि भाई बहन दोनों ही एक दूसरे की सुरक्षा और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे का सहारा बनने का अकथित वचन देते हैं. यही नहीं आज कल कई छोटे भाई और बहनें भी अपनी बड़ी बहनों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं. जो भाई बहन के बीच के प्यार और विश्वास को बढ़ाता है.

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