वाराणसी: कहते हैं जब अपनी पुरातन संस्कृति सभ्यता और कला को बचाने के लिए प्रयास किए जाएं तो वह कभी विफल नहीं होते. किए गए प्रयासों से कई लोगों की जिंदगी में भी सुधार आता है. कुछ ऐसा ही प्रयास बनारस की 27 साल की बुनकर कर रही है. जिसने बनारसी साड़ी उद्योग को एक नया मुकाम देने के लिए कुछ ऐसे बदलाव करने की कोशिश की हैं. जिसकी सराहना हाल ही में यूपी ग्लोबल समिट लखनऊ में भी देखने को मिली.
27 साल की उम्र में ग्रेजुएशन फिर मास्टर और अब पीएचडी कर रही बुनकर पढ़ लिखकर बनारसी साड़ी उद्योग में एक क्रांति लाने की प्लानिंग कर रही है. क्या है यह क्रांति और कौन है यह पढ़ी-लिखी बुनकर और कैसे बनारसी साड़ी उद्योग में बदलाव लाने के लिए लोग इनका साथ दे रहे हैं. आप भी जानिए स्मार्ट बुनकर की कहानी.
27 साल की अंगिका ने जयपुर के एक नामी इंस्टिट्यूट से ग्रेजुएशन और टेक्सटाइल में मास्टर डिग्री हासिल की है. इस वक्त अंगिका इसी यूनिवर्सिटी से टेक्सटाइल में पीएचडी भी कर रही है. अंगिका का कहना है कि परिवार ने उसका नाम भी इसी आधार पर रखा था. अंगिका का अर्थ होता है अंग को ढकने वाला कपड़ा. यही वजह है कि बचपन से ही उसका कपड़ों को लेकर काफी रुझान रहा है. अंगिका कहती है कि उसके खून में ही बुनकारी दौड़ती रही है. बचपन से ही उसने हथकरघा पर बुनकारी का काम करते देखा है. यही वजह है उसने इसी प्रोफेशन में जाने की ठानी.
अंगिका का कहना है कि उसने 17 साल की उम्र से ही बुनकारी के काम में कदम रख दिया था. अपने पिता के कारोबार में हथकरघा पर बैठकर साड़ी तैयार करने का काम शुरू किया था. तब उसे यह एहसास हुआ कि चाइना से आने वाला सिल्क कहीं ना कहीं बनारसी साड़ी को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है. इसलिए उसने नेचुरल तरीके से सिल्क यान को तैयार करने की तैयारी की और नेचुरल तरीके से इस चाइनीज सिल्क की जगह पाइनएप्पल के रेशे से सिल्क और धागे को तैयार किया. इसके बाद सिल्क और धागे को डाई करने के बाद साड़िया बनाना शुरू किया.
अंगिका का कहना है सिल्क बनाने की यह तकनीक पूरी तरह से नेचुरल है और स्किन फ्रेंडली होने के साथ ही फंगस फ्री है. इसे रंगने के लिए भी पौधे और फूल की पत्तियों से कलर बनाया जाता है. अंगिका का कहना है ब्रोकेड पर वह कार्य कर रही हैं. इस पर अभी रिसर्च भी कर रही है. किस तरह से बनारसी साड़ी उद्योग को बनारसी साड़ी और बनारसी कपड़ों से हटकर फर्निशिंग और डेकोरेशन के काम में इस्तेमाल किया जा सकता है. कोविड-19 के दौर में एक और नया प्रयास करते हुए पहली बार बनारसी साड़ी पर रेशम के जरिए बारकोड बनाने का काम किया था. जिसमें बीएचयू आईआईटी ने भी अंगिका की मदद की थी.