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वाराणसी: प्यास बुझाने को तरसते लोग,नालियों में बहता पानी - पानी की पाइपलाइन डैमेज

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में पाइपलाइन लीकेज की वजह से रोजाना लाखोें लीटर पानी बर्बाद हो रहा है. लोग पीने के पानी के लिए रोज घंटों लाइनों में लगे रहते हैं. पाइप लाइन लीकेज की वजह से पानी सड़कों पर बहता रहता है.

पाइपलाइन में लीकेज
पाइपलाइन में लीकेज
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Published : Jul 24, 2020, 5:13 PM IST

वाराणसी: सदियों से एक कहावत चली आ रही है. 'जल ही जीवन है' और जल के बिना कल की कल्पना करना भी मुश्किल है. सरकारी दावे और विज्ञापन जल की बर्बादी को रोकने के लिए लोगों से अपील भी करते दिखाई देते हैं. लेकिन विभागीय लापरवाही और सरकारी विभागों की उदासीनता की वजह से हर रोज हजारों लाखों लीटर पानी पाइप लाइन के लीकेज की वजह से बर्बाद हो जाता है.

गंगा किनारे बसे शहर बनारस के हालात भी कुछ अच्छे नहीं हैं. यदि आंकड़ों पर गौर करें तो बनारस में विभागीय लापरवाही का खामियाजा यहां की जनता को भुगतना पड़ता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस के पुराने इलाके, बस्तियां और गलियों में सैकड़ों साल पुरानी पीने के पानी की पाइप लाइन डैमेज होने की वजह से हर रोज 120 एमएलडी पानी की बर्बादी होती है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि जितना पानी यहां रोजाना बर्बाद होता है, सिर्फ उतने पानी से शहर की पांच लाख की आबादी की जरूरत पूरी हो सकती है.

पाइप लाइन में लीकेज से पानी की बर्बादी
अंग्रेजों के जमाने की है पाइपलाइन

दरअसल वाराणसी में पीने के पानी की व्यवस्था अंग्रेजों के समय की है. पीने के पानी के लिहाज से शहर को दो भागों में बांटा गया है. ट्रांस वरुणा और सिंस वरुणा. इन दो हिस्सों में बांटे जाने के बाद शहर के 15 लाख उपभोक्ताओं को रोजाना जलापूर्ति करने का दावा जलकल करता है. जलकल के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो सिंस वरुणा यानी में 466 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन अंग्रेजों के समय बिछाई गई, जो इस वक्त भी संचालित हो रही है, जबकि वरुणा क्षेत्र में 150 किलोमीटर पुरानी पाइप लाइन बिछी हुई है.

जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के तहत लगभग ढाई सौ किलोमीटर नई पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा किया गया है. इन सबके बीच पुराने सिस्टम पर काम कर रहे जलकल को सबसे ज्यादा परेशानी अंग्रेजों के समय बिछाई गई पाइप लाइन नहीं आ रही है. गलियों और पुराने बनारस में जगह-जगह लीकेज हर रोज 120 एमएलडी पानी की बर्बाद करता है. जलकल इस बात को मानता भी है की लीकेज एक बड़ी समस्या है, लेकिन दावा यह भी है कि लीकेज को बंद कर पानी की बर्बादी को रोककर लोगों को साफ और भरपूर पानी देने का प्रयास जलकल की तरफ से जारी है, लेकिन इस दावे की हकीकत शायद हवा-हवाई है. क्योंकि स्थानीय लोगों ने खुलकर इस बात को सामने रखा.

सरकारी दावे हवा-हवाई

स्थानीय लोगों का साफ तौर पर कहना था कि यह दावे झूठे हैं. लीकेज की स्थिति यह है कि शिकायत पर शिकायत करने के बाद भी लीकेज बंद नहीं होती. घरों में गंदा, दूषित पानी आता है. इस महामारी के दौर में भी लोग गंदे पानी को पीकर बीमार हो रहे हैं. हालात इतने बुरे हैं कि एक मोहल्ले में 10 से 12 दिन तक लीकेज होने के बाद खुद ही इसे रोकना पड़ता है. सड़कें बर्बाद हो जाती हैं. घरों में पीने का पानी समय से नहीं पहुंचता. जलकल की तरफ से लीकेज को रोकने के दावे सिर्फ कागजी हकीकत है. वाराणसी में हर रोज हजारों लीटर पानी नालियों में बह जाता है, जबकि इस पानी से ना जाने हर रोज कितने परिवारों की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है.

इन इलाकों में लीकेज समस्या ज्यादा है.
लीकेज की समस्या वाले इलाकों में चौक, भदैनी, शिवाला, सिगरा, पीली कोठी, नदेसर, छित्तूपुर, पांडेपुर, विशेश्वरगंज, मुकीमगंज, महमूरगंज, तेलियानाला शामिल हैं.

आंकड़ों में पर एक नजर

  • बनारस में कुल 15 लाख उपभोक्ता हैं.
  • रोजाना 600 एमएलडी पानी सप्लाई होती है.
  • पानी की जरूरतों को 300 एमएलडी ओवरहेड टैंकों से पूरा किया जाता है.
  • जलकल के वॉटर ट्यूबेल से 155 एमएलडी पानी की सप्लाई जाती है.
  • गंगा से 145 एमएलडी पानी की जरूरत पूरी होती है.
  • छोटी-छोटी लीकेज की वजह से 120 एमएलडी पानी हर रोज बर्बाद होता है.
  • बर्बाद हो रहे पानी से हर रोज पचास हजार लोगों की जरूरते पूरी हो सकती हैं
  • 50 से ज्यादा गंदे पानी की शिकायतें हर रोज जलकल की हेल्पलाइन पर पहुंचती हैं.
  • बीस से ज्यादा मोहल्ले दूषित जलापूर्ति की वजह से परेशान हैं.
  • शहर के पुराने इलाके में बमुश्किल 50 हजार लोगों तक पानी पहुंच पाता है.

वाराणसी: सदियों से एक कहावत चली आ रही है. 'जल ही जीवन है' और जल के बिना कल की कल्पना करना भी मुश्किल है. सरकारी दावे और विज्ञापन जल की बर्बादी को रोकने के लिए लोगों से अपील भी करते दिखाई देते हैं. लेकिन विभागीय लापरवाही और सरकारी विभागों की उदासीनता की वजह से हर रोज हजारों लाखों लीटर पानी पाइप लाइन के लीकेज की वजह से बर्बाद हो जाता है.

गंगा किनारे बसे शहर बनारस के हालात भी कुछ अच्छे नहीं हैं. यदि आंकड़ों पर गौर करें तो बनारस में विभागीय लापरवाही का खामियाजा यहां की जनता को भुगतना पड़ता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस के पुराने इलाके, बस्तियां और गलियों में सैकड़ों साल पुरानी पीने के पानी की पाइप लाइन डैमेज होने की वजह से हर रोज 120 एमएलडी पानी की बर्बादी होती है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि जितना पानी यहां रोजाना बर्बाद होता है, सिर्फ उतने पानी से शहर की पांच लाख की आबादी की जरूरत पूरी हो सकती है.

पाइप लाइन में लीकेज से पानी की बर्बादी
अंग्रेजों के जमाने की है पाइपलाइन

दरअसल वाराणसी में पीने के पानी की व्यवस्था अंग्रेजों के समय की है. पीने के पानी के लिहाज से शहर को दो भागों में बांटा गया है. ट्रांस वरुणा और सिंस वरुणा. इन दो हिस्सों में बांटे जाने के बाद शहर के 15 लाख उपभोक्ताओं को रोजाना जलापूर्ति करने का दावा जलकल करता है. जलकल के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो सिंस वरुणा यानी में 466 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन अंग्रेजों के समय बिछाई गई, जो इस वक्त भी संचालित हो रही है, जबकि वरुणा क्षेत्र में 150 किलोमीटर पुरानी पाइप लाइन बिछी हुई है.

जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के तहत लगभग ढाई सौ किलोमीटर नई पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा किया गया है. इन सबके बीच पुराने सिस्टम पर काम कर रहे जलकल को सबसे ज्यादा परेशानी अंग्रेजों के समय बिछाई गई पाइप लाइन नहीं आ रही है. गलियों और पुराने बनारस में जगह-जगह लीकेज हर रोज 120 एमएलडी पानी की बर्बाद करता है. जलकल इस बात को मानता भी है की लीकेज एक बड़ी समस्या है, लेकिन दावा यह भी है कि लीकेज को बंद कर पानी की बर्बादी को रोककर लोगों को साफ और भरपूर पानी देने का प्रयास जलकल की तरफ से जारी है, लेकिन इस दावे की हकीकत शायद हवा-हवाई है. क्योंकि स्थानीय लोगों ने खुलकर इस बात को सामने रखा.

सरकारी दावे हवा-हवाई

स्थानीय लोगों का साफ तौर पर कहना था कि यह दावे झूठे हैं. लीकेज की स्थिति यह है कि शिकायत पर शिकायत करने के बाद भी लीकेज बंद नहीं होती. घरों में गंदा, दूषित पानी आता है. इस महामारी के दौर में भी लोग गंदे पानी को पीकर बीमार हो रहे हैं. हालात इतने बुरे हैं कि एक मोहल्ले में 10 से 12 दिन तक लीकेज होने के बाद खुद ही इसे रोकना पड़ता है. सड़कें बर्बाद हो जाती हैं. घरों में पीने का पानी समय से नहीं पहुंचता. जलकल की तरफ से लीकेज को रोकने के दावे सिर्फ कागजी हकीकत है. वाराणसी में हर रोज हजारों लीटर पानी नालियों में बह जाता है, जबकि इस पानी से ना जाने हर रोज कितने परिवारों की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है.

इन इलाकों में लीकेज समस्या ज्यादा है.
लीकेज की समस्या वाले इलाकों में चौक, भदैनी, शिवाला, सिगरा, पीली कोठी, नदेसर, छित्तूपुर, पांडेपुर, विशेश्वरगंज, मुकीमगंज, महमूरगंज, तेलियानाला शामिल हैं.

आंकड़ों में पर एक नजर

  • बनारस में कुल 15 लाख उपभोक्ता हैं.
  • रोजाना 600 एमएलडी पानी सप्लाई होती है.
  • पानी की जरूरतों को 300 एमएलडी ओवरहेड टैंकों से पूरा किया जाता है.
  • जलकल के वॉटर ट्यूबेल से 155 एमएलडी पानी की सप्लाई जाती है.
  • गंगा से 145 एमएलडी पानी की जरूरत पूरी होती है.
  • छोटी-छोटी लीकेज की वजह से 120 एमएलडी पानी हर रोज बर्बाद होता है.
  • बर्बाद हो रहे पानी से हर रोज पचास हजार लोगों की जरूरते पूरी हो सकती हैं
  • 50 से ज्यादा गंदे पानी की शिकायतें हर रोज जलकल की हेल्पलाइन पर पहुंचती हैं.
  • बीस से ज्यादा मोहल्ले दूषित जलापूर्ति की वजह से परेशान हैं.
  • शहर के पुराने इलाके में बमुश्किल 50 हजार लोगों तक पानी पहुंच पाता है.
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