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पंचायत चुनाव विशेष: बनारस के इस गांव में लोगों को है विकास का इंतजार - पंचायत चुनाव 2021

यूपी में पंचायत चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सरकार ने चुनाव को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं. वाराणसी के रोहनिया स्थित केसरीपुर गांव में ईटीवी भारत की टीम ने पहुंचकर लोगों से बातचीत कर जाना कि क्या रहा पांच साल के पंचायत कार्यकाल का उन पर लाभ और अब क्या है, आने वाले चुनावों से उनकी उम्मीदें.

बनारस के इस गांव में लोगों को है विकास का इंतजार
बनारस के इस गांव में लोगों को बनारस के इस गांव में लोगों को है विकास का इंतजारहै विकास का इंतजार
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Published : Jan 21, 2021, 2:24 PM IST

वाराणसी: यूपी में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव जल्द होने वाले हैं. इसे लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं. राजनीतिक दलों ने एक तरफ जहां कमर कस ली है, वहीं ग्रामीण स्तर पर पांच सालों तक चुनाव का इंतजार करने वाले नेता भी एक बार फिर से अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए लोगों के बीच पहुंचने लगे हैं, लेकिन इन सबके बीच यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या इन पांच सालों में अपने प्रधान बीडीसी या पंचायत सदस्यों के कामों से गांव देहात के लोग खुश हैं. क्या वास्तव में इन पांच सालों में विकास की वह बयार गांव तक बही, जिसकी उम्मीद और दावे किए गए थे. इन दावों की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत ग्रामीण परिवेश में पहुंचकर लोगों से बातचीत कर उनकी राय जानने में जुट गया है.

बनारस के इस गांव में लोगों को है विकास का इंतजार
वादें हैं वादों का क्या
वाराणसी शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर रोहनिया का केसरीपुर गांव है. इस गांव की आबादी लगभग 7000 से ज्यादा है. गांव में रहने वाले लोगों में इस बात को लेकर जहां खुशी है कि चुनाव जल्द होने वाले हैं तो निराशा भी इस बात की है कि बीते चुनावों में किए गए वादों को अब तक पूरा नहीं किया गया. हाईवे पर सड़क किनारे कच्चे मकानों में रहने वाले लोग अभी अपने कच्चे मकानों के पक्के होने का इंतजार कर रहे हैं. गांव की महिलाओं का कहना है कि जब चुनाव आते हैं तो उम्मीदवार हाथ जोड़कर वोट मांगने आ जाते हैं. जब हम अपनी बातें रखते हैं तो हमसे वादा किया जाता है कि सारे काम होंगे लेकिन चुनाव खत्म होते ही ना नेता देखते हैं और ना ही वादे करने वाले लोग.
ग्रामीणों को अब भी आवास का इंतजार
प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर भले ही सरकारी तौर पर ढिंढोरा पीटा जा रहा हो लेकिन आवाज़ क्या सच में लोगों तक पहुंची है. यह इस पंचायत चुनाव के दौरान भी बड़ा मुद्दा बन सकता है, क्योंकि रोहनिया के केसरीपुर गांव में रहने वाले लोग कच्चे मकानों में अभी जीवन यापन कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि जब चुनाव होने थे तब उन्हें पक्का मकान दिए जाने का वादा हुआ था. घरों के बाहर हैंडपंप लगाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन न ही आज तक हैंडपंप लगा न ही पक्का मकान मिला, जिसकी वजह से ठंडी, गर्मी, बरसात तीनों मौसम में कच्चे मकानों में बच्चों के साथ रहना काफी मुश्किल होता जा रहा है.
नहीं आते ग्राम प्रधान
केसरीपुर गांव के लोगों में इस बात की भी नाराजगी है कि जब चुनाव नजदीक था और वोट मांगना था तब प्रधानी का चुनाव लड़ने वाले बहुत से लोग उनके घरों को पहुंचे. वोट मांगने के लिए लंबे चौड़े वादे हुए और जब जीत गए तो प्रधान को गांव के लोगों से कोई मतलब ही नहीं है. लोगों का कहना है कि स्वास्थ्य खराब रहे या पानी बिजली ना मिले फिर भी ग्राम प्रधान गांव में हाल-चाल लेने भी नहीं आते. अपनी समस्याओं को लेकर जब ग्राम प्रधान के पास जाओ तो ग्राम प्रधान मिलते नहीं हैं.
खुद के पैसे से लगवाया नल
गांव के लोगों का कहना है कि बस्ती में नल की व्यवस्था ना होने के बाद जब चुनाव के दौरान स्वच्छ पानी के लिए हैंडपंप लगवाने की बात हुई तो कहा गया जल्द लगेगा, लेकिन चुनाव खत्म हुए उसके बाद किसी ने पूछा तक नहीं हाला किए हुए जब पीने के पानी लेने के लिए दो से तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा था, तो गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा करके नल लगाया, जिससे अब लगभग एक हजार से ज्यादा लोगों की प्यास बुझती है. फिलहाल चुनाव से पहले दावों का जाल कैसे बुना जाता है और ग्रामीण इस जाल में कैसे फंसते हैं यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन चुनाव से पहले किए गए वादे किस हद तक जमीनी हकीकत पर उतर रहे हैं यह देखने वाली बात है.

वाराणसी: यूपी में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव जल्द होने वाले हैं. इसे लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं. राजनीतिक दलों ने एक तरफ जहां कमर कस ली है, वहीं ग्रामीण स्तर पर पांच सालों तक चुनाव का इंतजार करने वाले नेता भी एक बार फिर से अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए लोगों के बीच पहुंचने लगे हैं, लेकिन इन सबके बीच यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या इन पांच सालों में अपने प्रधान बीडीसी या पंचायत सदस्यों के कामों से गांव देहात के लोग खुश हैं. क्या वास्तव में इन पांच सालों में विकास की वह बयार गांव तक बही, जिसकी उम्मीद और दावे किए गए थे. इन दावों की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत ग्रामीण परिवेश में पहुंचकर लोगों से बातचीत कर उनकी राय जानने में जुट गया है.

बनारस के इस गांव में लोगों को है विकास का इंतजार
वादें हैं वादों का क्या
वाराणसी शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर रोहनिया का केसरीपुर गांव है. इस गांव की आबादी लगभग 7000 से ज्यादा है. गांव में रहने वाले लोगों में इस बात को लेकर जहां खुशी है कि चुनाव जल्द होने वाले हैं तो निराशा भी इस बात की है कि बीते चुनावों में किए गए वादों को अब तक पूरा नहीं किया गया. हाईवे पर सड़क किनारे कच्चे मकानों में रहने वाले लोग अभी अपने कच्चे मकानों के पक्के होने का इंतजार कर रहे हैं. गांव की महिलाओं का कहना है कि जब चुनाव आते हैं तो उम्मीदवार हाथ जोड़कर वोट मांगने आ जाते हैं. जब हम अपनी बातें रखते हैं तो हमसे वादा किया जाता है कि सारे काम होंगे लेकिन चुनाव खत्म होते ही ना नेता देखते हैं और ना ही वादे करने वाले लोग.
ग्रामीणों को अब भी आवास का इंतजार
प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर भले ही सरकारी तौर पर ढिंढोरा पीटा जा रहा हो लेकिन आवाज़ क्या सच में लोगों तक पहुंची है. यह इस पंचायत चुनाव के दौरान भी बड़ा मुद्दा बन सकता है, क्योंकि रोहनिया के केसरीपुर गांव में रहने वाले लोग कच्चे मकानों में अभी जीवन यापन कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि जब चुनाव होने थे तब उन्हें पक्का मकान दिए जाने का वादा हुआ था. घरों के बाहर हैंडपंप लगाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन न ही आज तक हैंडपंप लगा न ही पक्का मकान मिला, जिसकी वजह से ठंडी, गर्मी, बरसात तीनों मौसम में कच्चे मकानों में बच्चों के साथ रहना काफी मुश्किल होता जा रहा है.
नहीं आते ग्राम प्रधान
केसरीपुर गांव के लोगों में इस बात की भी नाराजगी है कि जब चुनाव नजदीक था और वोट मांगना था तब प्रधानी का चुनाव लड़ने वाले बहुत से लोग उनके घरों को पहुंचे. वोट मांगने के लिए लंबे चौड़े वादे हुए और जब जीत गए तो प्रधान को गांव के लोगों से कोई मतलब ही नहीं है. लोगों का कहना है कि स्वास्थ्य खराब रहे या पानी बिजली ना मिले फिर भी ग्राम प्रधान गांव में हाल-चाल लेने भी नहीं आते. अपनी समस्याओं को लेकर जब ग्राम प्रधान के पास जाओ तो ग्राम प्रधान मिलते नहीं हैं.
खुद के पैसे से लगवाया नल
गांव के लोगों का कहना है कि बस्ती में नल की व्यवस्था ना होने के बाद जब चुनाव के दौरान स्वच्छ पानी के लिए हैंडपंप लगवाने की बात हुई तो कहा गया जल्द लगेगा, लेकिन चुनाव खत्म हुए उसके बाद किसी ने पूछा तक नहीं हाला किए हुए जब पीने के पानी लेने के लिए दो से तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा था, तो गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा करके नल लगाया, जिससे अब लगभग एक हजार से ज्यादा लोगों की प्यास बुझती है. फिलहाल चुनाव से पहले दावों का जाल कैसे बुना जाता है और ग्रामीण इस जाल में कैसे फंसते हैं यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन चुनाव से पहले किए गए वादे किस हद तक जमीनी हकीकत पर उतर रहे हैं यह देखने वाली बात है.
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