वाराणसी: काशी को परंपरा और संस्कृति को संजोकर रखने वाली उस अद्भुत नगरी के रूप में जाना जाता है, जिसने आज भी पुरातन परंपराओं को जीवित रखते हुए एक मिसाल कायम की है. सैकड़ों साल पहले शुरू की गई परंपराओं और महापुरुषों की ख्याति को काशी संभालने वाला एक अद्भुत शहर है. ऐसी ख्याति की प्रस्तुति आज वाराणसी के तुलसी घाट पर देखने को मिलेगी. यहां गंगा तट पर यमुना के किनारे भगवान श्रीकृष्ण गंगा में कालिया नाग का मर्दन करते हैं. इस दृश्य को देखने के लिए लाखों की भीड़ उमड़ती है.
दरअसल, गोस्वामी तुलसीदास ने काशी के लक्खा मेले में शुमार नागनथैया लीला का आयोजन शुरू किया था. इसलिए आज भी अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास की ओर से तुलसी घाट पर यह आयोजन किया जाता है. यह लीला 475 साल से ज्यादा पुरानी है. संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र ने बताया कि गंगा में बाढ़ के पानी के कारण लीला का पारंपरिक स्थल डूबा हुआ है. इस वजह से नागनथैया की लीला का मंचन घाट के ऊपर ही होगा. बाढ़ के कारण ही वर्ष 1992 के बाद यह दूसरा अवसर है जब लीला के लिए कदंब की डाल श्री संकटमोचन के मंदिर से अस्सी घाट के रास्ते की बजाय आज सुबह सड़क से सीधे तुलसी घाट लाई गई है.
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इस लीला का दृश्य भी अद्भुत होता है. अपने बाल शाखाओं के साथ भगवान श्री कृष्ण गंगा से यमुना में तब्दील हुए घाट किनारे हाथ में फूल की गेंद लेकर खेलते हैं और उसे पानी में उछाल कर फेंक देते हैं. शाम ठीक 4:40 पर कदंब के पेड़ पर चढ़कर सीधे गंगा में छलांग लगाते हैं और अंदर से कालिया नाग के ऊपर सवार होकर जब निकलते हैं तो पूरा दृश्य काशी को गोकुल में तब्दील कर देता है. हर तरह भगवान कृष्ण और हर हर महादेव की जय जयकार के बीच इस अद्भुत लीला का मंचन हर कोई देख कर अपने आप को धन्य मानता है.
एसीपी भेलूपुर प्रवीण कुमार सिंह ने बताया कि तुलसी घाट पर होने वाली नागनथैया की लीला में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था का खाका खींच लिया गया है. मेला क्षेत्र को 3 जोन में बांटा गया है. सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर 7 इंस्पेक्टर, 60 पुरुष-महिला दरोगा, 240 पुरुष-महिला आरक्षी, 1 कंपनी पीएसी, जल पुलिस और एनडीआरएफ की 11वीं बटालियन के जवान तैनात रहेंगे. दोपहर 2 बजे से तुलसी घाट की तरफ जाने वाले सभी मार्गों पर वाहनों की आवाजाही प्रतिबंधित कर दी जाएगी.
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