वाराणसी: मुसीबत के समय किसी की जिंदगी बचाने वाला भगवान से भी बड़े दर्जे के साथ पूजा जाता है. क्योंकि, किसी को जिंदगी देना बहुत पुण्य का काम माना जाता है. लेकिन, सही समय पर यदि सही प्रयास न किए जाएं तो कई बार नतीजे काफी खराब हो जाते हैं. यही वजह है कि वाराणसी में अब जिंदगी बचाने वाले नाविक एनडीआरएफ की मदद से जीवन रक्षक बनेंगे, ताकि गंगा में डूबने की कंडीशन में या फिर जिंदगी से हताश होकर अपनी जान देने के लिए गंगा में छलांग लगाने वालों को न सिर्फ गंगा से बाहर निकाल कर उन्हें सुरक्षित किया जाए, बल्कि गोल्डन ऑवर टाइम पीरियड में इनको उचित ट्रीटमेंट नाविकों द्वारा देकर इनकी जिंदगी बचाई जा सके.
दरअसल, वाराणसी में एनडीआरएफ 11 की पूरी यूनिट वर्क करती है और सोशल इंजीनियरिंग के जरिए लोगों की जिंदगी बचाने के लिए अक्सर एनडीआरएफ अपने तरीके से ट्रेंड करने का काम करती है. इस बार ऐसा पहला मौका है, जब एनडीआरएफ की टीम बनारस में 600 से ज्यादा नाविकों को अलग-अलग घाटों पर जाकर विशेष ट्रेनिंग देने की तैयारी कर रही है.
इस बारे में एनडीआरएफ 11 के कमांडेंट एमके शर्मा का कहना है कि गंगा में डूबने वालों की संख्या बनारस में बहुत ज्यादा है. बाहर से आने वाले लोगों और जिंदगी से हताश होकर गंगा में जान देने वालों के मामले अक्सर सामने आते हैं. प्रतिदिन एक-दो लोगों के गंगा में डूबने की खबर सामने आती है और उन्हें सुरक्षित करने के लिए नाविक दिन-रात कोशिश करते हैं. घाटों पर मौजूद नाविक ही सबसे बड़े जीवन रक्षक हैं. लोगों को गंगा से बचाकर बाहर तो निकाल लेते हैं, लेकिन फेफड़ों में पानी भर जाने की वजह से ऑक्सीजन की कमी के कारण अक्सर इनकी जिंदगी नहीं बचाई जा पाती है.
यही वजह है कि एनडीआरएफ की टीमें अब इन्हें विशेष रूप से ट्रेनिंग देने का काम शुरू कर रही है. एनडीआरएफ कमांडेंट का कहना है कि इसके लिए एक्यूटिक डिजास्टर रिस्पॉन्स, यानी एडीआरसी एक ट्रेनिंग का महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसके जरिए एनडीआरएफ के जवानों को पानी में डूबने के दौरान बचाए गए लोगों की जिंदगी को सुरक्षित रखने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है. इसी ट्रेनिंग के जरिए हम बनारस के अलग-अलग घाटों पर रहने वाले नाविकों को ट्रेंड करने का काम शुरू कर रहे हैं.
कमांडेंट एमके शर्मा का कहना है कि पानी में डूबने के दौरान यदि किसी को पानी से बाहर निकाला गया है तो उसके लिए गोल्डन ऑवर पीरियड के 4 से 5 मिनट बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं. क्योंकि, मुंह के जरिए या नाक के जरिए फेफड़ों में पानी जाने के बाद धीरे-धीरे फेफड़े काम करना बंद करते हैं और कंडीशन बॉडी को शिथिल करने के साथ ही डेथ कॉज को और मजबूत कर देती है.
ऐसी स्थिति में यह अनिवार्य होता है कि जिसके साथ घटना हुई है उस व्यक्ति के फेफड़ों से पानी सही तरीके से निकालने के साथ ही आर्टिफिशियल ऑक्सीजन के रूप में उन्हें सीपीआर दिया जाए. यही वजह है कि हमारे जवान इन नाविकों को सीपीआर देने के सही तरीके के साथ ही इस रिस्पांस प्लान के तहत उन्हें तैयार कर रहे हैं, ताकि लोगों की जिंदगी को समय रहते बचाया जा सके. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि हर घाट पर जब नाविक ट्रेंड हो जाएंगे तो वह अन्य लोगों को भी इसके बारे में बता सकेंगे, जिससे ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग कनेक्ट होंगे और लोगों की जिंदगी को सुरक्षित रखने में हम सफल हो पाएंगे.
बनारस में यदि 1 महीने में बात की जाए तो 10 से 15 की संख्या में डूबने के मामले सामने आते हैं. जिनमें 30% से ज्यादा लोगों की जिंदगी बची है, जबकि बहुत से लोगों को बचाना संभव नहीं हो पाता है. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि जो इनकी जिंदगी बचाने के लिए पहला प्रयास कर रहे हैं, वह पूरी तरह से ट्रेंड हो जाएं और किसी भी एजेंसी या हेल्प पहुंचने से पहले ही वह उनको फर्स्टटेड ट्रीटमेंट देकर उनकी जिंदगी को सुरक्षित कर लें.
यह भी पढ़ें: Kuda Bazar Varanasi: बनारस के इस अनोखे बाजार में बेचा जाता है कूड़ा, जानिए क्या है खासियत?