वाराणसी: धर्म नगरी काशी को शिक्षा और संस्कृति का शहर कहा जाता है. यहां हर गली और हर चौराहे पर आपको वो तस्वीरें नजर आ जाएंगी, जो वाराणसी के साहित्य का वर्णन करती हैं. ऐसे ही वाराणसी में एक ऐसी अनोखी लाइब्रेरी है जो वाराणसी के शिक्षा प्रेमियों के लिए बहुत ही खास है. इस लाइब्रेरी की खास बात यह है कि यहां पर आपको भोजपुरी की किताबें पढ़ने को मिलेंगी, जोकि पढ़ने और पढ़ाने वाले दोनों के काम आती हैं.
वाराणसी में मौजूद भोजपुरी अनोखी लाइब्रेरी एक तरफ जहां सरकार नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा दे रही है. वहीं, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सदानंद शाही ने अनोखी पहल की है. उन्होंने भोजपुरी लाइब्रेरी की शुरुआत की है. यहां पर विश्वविद्यालय व आस-पास के विद्यार्थी आकर अध्ययन करते हैं. वहीं, कई अध्यापक भी यहां पर आकर अध्ययन करते हैं. दरअसल, भोजपुरी में लिखी हुई किताबें मिलना बहुत मुश्किल होता है, ऐसे में यह लाइब्रेरी सहायक बन रही है.लाइब्रेरी में रखी भोजपुरी भाषा की किताबें इस वजह से भोजपुरी को मानते हैं फूहड़: प्रोफेसर सदानंद शाही ने कहा कि हम भोजपुरी को एक भाषा मानते हैं और चाहते हैं कि इसको सरकारी संरक्षण प्राप्त हो. यह भी चाहते हैं कि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए. लेकिन, कुछ लोग फिल्मों और गानों की वजह से फूहड़ मानने लगे हैं. मीडिया के माध्यम से लोगों तक फूहड़ गाने पहुंचे हैं. ऐसे में लोगों में इसको लेकर धारणा बन गई है कि भोजपुरी कितनी फूहड़ भाषा है.लाइब्रेरी में रखी भोजपुरी भाषा की किताबें भोजपुरी में बेहतरीन साहित्य भी हैं: भोजपुरी अध्यन केंद्र के संस्थापक प्रो. सदानंद शाही ने बताया कि भोजपुरी में भोलानाथ गहमरी, हरिराम द्विवेदी और प्रकाश उदय भी हैं. साथ ही और भी लोगों द्वारा अच्छी रचनाएं लिखी जा रही हैं. केवल हमारे कहने से नहीं होगा. किताबें सामने हैं, जिससे लोग जान सकें कि भोजपुरी कितनी बेहतर भाषा है. प्रोफेसर ने कहा कि इसीलिए हमने ये लाइब्रेरी शुरू की. यहां पर किताबों के साथ ही पत्रिकाएं भी रखी जाती हैं, जिससे लोग अलग-अलग तरीके की पठन सामग्री पा सकें. लोग यहां से किताबें खरीद भी सकते हैं.लाइब्रेरी में रखी भोजपुरी भाषा की किताबें लाइब्रेरी में नि:शुल्क पढ़ाई: शोधार्थी धीरज गुप्ता ने बताया कि यह बनारस की पहली भोजपुरी लाइब्रेरी है. प्रो. सदानंद शाही ने एक दूरगामी सोच के साथ साल 2017 में इसकी शुरुआत की थी. यहां पर लोग निशुल्क पढ़ाई कर सकते हैं. भोजपुरी की तमाम पत्र-पत्रिकाएं आती रहती हैं. भोजपुरी समाज अपनी मातृभाषा के लिए बहुत पहले से ही संघर्षरत हैं. लोगों को भोजपुरी के प्रति जागरुक करने के लिए इस लाइब्रेरी का उद्घाटन किया गया है. शोधार्थियों के लिए भी यह लाइब्रेरी सहायक बनती है.लाइब्रेरी में किताबों का अध्ययन करते लोग वहीं, शुभम ने बताया कि बनारस की इस लाइब्रेरी में हम आते रहते हैं. यहां पर भोजपुरी में लिखी हुई किताबें आसानी से मिल जाती हैं. उन्होंने कहा कि भोजपुरी का प्रसार इतना अधिक नहीं है कि कहीं पर भी इसकी किताबें मिल जाएं, लेकिन इस लाइब्रेरी में हमारे काम की और पढ़ाई से संबंधित किताबें आसानी से मिल जाती हैं. इस लाइब्रेरी से यह फायदा है कि हमें भोजपुरी की किताबों के लिए कहीं और नहीं जाना होता. हम भोजपुरी जानते हैं तो दिक्कत भी नहीं आती.भोजपुरी लाइब्रेरी में किताबे देखते लोग यह भी पढ़ें: बनारस के इस घाट पर चलता है अनोखा स्कूल, बच्चों को दी जाती है निशुल्क शिक्षा