वाराणसीः नमामि गंगे योजना के सौजन्य से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत गंगा में मछलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए केंद्रीय अंतरस्थली मत्स्यकी अनुसंधान संस्थान सिफरी के द्वारा संत रविदास घाट पर दो लाख मछलियां छोड़ी गईं. वहीं, नमामि गंगे योजना के तहत गंगा की स्वच्छता और भूगर्भ जल के संरक्षण के लिए समग्र प्रयास किए जा रहे हैं. ये भी उसी का एक हिस्सा है. योजना के क्रियान्वयन से स्थानीय मछलियों के प्रजाति के जर्म-पलाज्म का पुनर्स्थापन व जैव विविधता का संतुलन एवं संरक्षण हो सकेगा तथा प्रति इकाई क्षेत्रफल में मत्स्य उत्पादन में अभिवृद्धि से जीविकोपार्जन के लिए शिकारमाही पर निर्भर मछुआरों की आय बढ़ोतरी होगी और उनके जीवन स्तर में सुधार होगा.
वहीं, संत रवि दास घाट पर गंगा नदी में 2 लाख भारतीय प्रमुख कार्प-कतला, रोहू, मृगल मछलियों के बीज को रैंचिंग सह जन जागरूकता कार्यक्रम के तहत छोड़ा गया. वहीं, इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डॉ. बिके दास ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए गंगा नदी में मछली और रैंचिंग के महत्व को बताया और कहा कि इस वर्ष गंगा नदी में कम हो रहे महत्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियों के 22 लाख से ज्यादा बीज का रैंचिंग होना रखा गया है.
वहीं, कार्यक्रम के अतिविशिष्ट अतिथि अतिरिक्त महानिदेशक (अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी), आईसीएआर, नई दिल्ली डॉ. बीपी मोहंती ने कहा कि गंगा की अविरलता और निर्मलता बनाए रखने के लिए सभी जन का सहयोग जरूरी है. गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने और नदी का इको सिस्टम बरकरार रखने के लिए रिवर रांचिंग प्रोसेस का भी प्रयोग किया जा रहा है. इस प्रक्रिया में गंगा में अलग-अलग प्रजाति की मछलियां छोड़ी जाती हैं. यह मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करती हैं. ये मछलियां गंगा की गंदगी को तो समाप्त करती हैं. साथ ही जलीय जंतुओं के लिए भी हितकारी होती हैं.
वहीं, नमामि गंगे (गंगा विचार मंच) के प्रांत सह संयोजक राजेश शुक्ला ने कहा कि स्थानीय मछुआरों की आजीविका बढ़ाने में यह योजना मददगार साबित हो रही है. मछली की संख्या में इजाफा होने से नदी की स्वच्छता को बनाए रखने में मदद मिलेगी. पतित पावनी गंगा की अविरल धारा को स्वच्छ बनाने की जरूरत है ताकि मां गंगा के अस्तित्व को बचाया जा सके.
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