वाराणसी: जिले को कुपोषण मुक्त कराने का स्वास्थ्य विभाग का दावा जिला अस्पताल के एनआरसी वार्ड में धराशाई होता नजर आ रहा है. पूरी तरह मुफ्त इलाज, पोषाहार का इंतजाम और मां को पालन-पोषण का ज्ञान कराने के लिए खोले गए एनआरसी वार्ड में 10 बेड लगाए गए हैं, तो वहीं भर्ती होने के लिए इस केंद्र में 14 पीड़ित है. ऐसे में न सिर्फ जगह की कमी है, वहीं दूसरी तरफ स्टाफ और संसाधन के अभाव में बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं.
- 2014 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल में 10 बेड का पोषण पुनर्वास केंद्र खोला गया था.
- संचालन के लिए बाल रोग विशेषज्ञ, डाइटिशियन, केयरटेकर और 4 स्टाफ नर्स की तैनाती की गई थी.
- बच्चों के इलाज और पोषाहार के साथ ही मां के खान-पान और मजदूरी क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिदिन 100 रुपये खाते में भेजने का प्रावधान भी किया गया था.
- कुपोषित और अति कुपोषितों की बड़ी संख्या को देखते हुए 2015-16 में इस एनआरसी बोर्ड को विस्तार देने की बात की गई थी.
- अभी अगर हालात देखे जाएं तो न ही कोई विस्तार हुआ है और न ही स्टाफ नर्सों की संख्या बढ़ाई गई है.
कुपोषित बच्चों के आकड़े
- आंकड़ों की माने तो जिले में 9 से 12 महीने तक के बच्चों की संख्या 26,682 है.
- वहीं 1 से 2 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 1.14 लाख है.
- 2 से 5 वर्ष में देखा जाए तो 3.15 लाख बच्चे आते हैं.
- इन आंकड़ों में लाल श्रेणी यानी अति कुपोषित श्रेणी की बात की जाए तो 3,998 बच्चे हैं.
- इसके साथ ही पीली श्रेणी के कुपोषित बच्चे 65,600 हैं.
आंगनबाड़ी और सरकार के अन्य संस्थाओं से लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा रही है. जो केस अभी तक दबे हुए रह जाते थे अब वह भी बाहर निकल कर आ रहे हैं. इसलिए यह आंकड़े बड़े हुए नजर आते हैं. यह किसी तरीके की सरकारी कमी नहीं, बल्कि जागरूकता का असर है, जिसका आने वाला परिणाम बेहतर होगा. पुनर्वास केंद्र के बेड ऐसे हैं, जिनमें एक बेड पर दो बच्चे आराम से लेट सकते हैं. अगर जरूरत पड़ती है तो हम अलग से भी संसाधनों की व्यवस्था कर लेते हैं.
-वीबी सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी