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वाराणसी: जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में ये है कुपोषितों की स्थिति - वाराणसी जिला अस्पताल

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्वास्थ्य विभाग का दावा फेल होता नजर आ रहा है. यहां पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में 10 बेड और स्टाफ की कमी है, जबकि बच्चों की संख्या उससे ज्यादा है. ऐसे में बेड और स्टाफ की कमी के कारण बच्चों का इलाज नहीं हो पा रहा है.

वाराणसी.
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Published : Jul 12, 2019, 12:41 PM IST

वाराणसी: जिले को कुपोषण मुक्त कराने का स्वास्थ्य विभाग का दावा जिला अस्पताल के एनआरसी वार्ड में धराशाई होता नजर आ रहा है. पूरी तरह मुफ्त इलाज, पोषाहार का इंतजाम और मां को पालन-पोषण का ज्ञान कराने के लिए खोले गए एनआरसी वार्ड में 10 बेड लगाए गए हैं, तो वहीं भर्ती होने के लिए इस केंद्र में 14 पीड़ित है. ऐसे में न सिर्फ जगह की कमी है, वहीं दूसरी तरफ स्टाफ और संसाधन के अभाव में बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं.

जानकारी देते मुख्य चिकित्सा अधिकारी वीबी सिंह.
  • 2014 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल में 10 बेड का पोषण पुनर्वास केंद्र खोला गया था.
  • संचालन के लिए बाल रोग विशेषज्ञ, डाइटिशियन, केयरटेकर और 4 स्टाफ नर्स की तैनाती की गई थी.
  • बच्चों के इलाज और पोषाहार के साथ ही मां के खान-पान और मजदूरी क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिदिन 100 रुपये खाते में भेजने का प्रावधान भी किया गया था.
  • कुपोषित और अति कुपोषितों की बड़ी संख्या को देखते हुए 2015-16 में इस एनआरसी बोर्ड को विस्तार देने की बात की गई थी.
  • अभी अगर हालात देखे जाएं तो न ही कोई विस्तार हुआ है और न ही स्टाफ नर्सों की संख्या बढ़ाई गई है.

कुपोषित बच्चों के आकड़े

  • आंकड़ों की माने तो जिले में 9 से 12 महीने तक के बच्चों की संख्या 26,682 है.
  • वहीं 1 से 2 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 1.14 लाख है.
  • 2 से 5 वर्ष में देखा जाए तो 3.15 लाख बच्चे आते हैं.
  • इन आंकड़ों में लाल श्रेणी यानी अति कुपोषित श्रेणी की बात की जाए तो 3,998 बच्चे हैं.
  • इसके साथ ही पीली श्रेणी के कुपोषित बच्चे 65,600 हैं.

आंगनबाड़ी और सरकार के अन्य संस्थाओं से लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा रही है. जो केस अभी तक दबे हुए रह जाते थे अब वह भी बाहर निकल कर आ रहे हैं. इसलिए यह आंकड़े बड़े हुए नजर आते हैं. यह किसी तरीके की सरकारी कमी नहीं, बल्कि जागरूकता का असर है, जिसका आने वाला परिणाम बेहतर होगा. पुनर्वास केंद्र के बेड ऐसे हैं, जिनमें एक बेड पर दो बच्चे आराम से लेट सकते हैं. अगर जरूरत पड़ती है तो हम अलग से भी संसाधनों की व्यवस्था कर लेते हैं.
-वीबी सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी

वाराणसी: जिले को कुपोषण मुक्त कराने का स्वास्थ्य विभाग का दावा जिला अस्पताल के एनआरसी वार्ड में धराशाई होता नजर आ रहा है. पूरी तरह मुफ्त इलाज, पोषाहार का इंतजाम और मां को पालन-पोषण का ज्ञान कराने के लिए खोले गए एनआरसी वार्ड में 10 बेड लगाए गए हैं, तो वहीं भर्ती होने के लिए इस केंद्र में 14 पीड़ित है. ऐसे में न सिर्फ जगह की कमी है, वहीं दूसरी तरफ स्टाफ और संसाधन के अभाव में बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं.

जानकारी देते मुख्य चिकित्सा अधिकारी वीबी सिंह.
  • 2014 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल में 10 बेड का पोषण पुनर्वास केंद्र खोला गया था.
  • संचालन के लिए बाल रोग विशेषज्ञ, डाइटिशियन, केयरटेकर और 4 स्टाफ नर्स की तैनाती की गई थी.
  • बच्चों के इलाज और पोषाहार के साथ ही मां के खान-पान और मजदूरी क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिदिन 100 रुपये खाते में भेजने का प्रावधान भी किया गया था.
  • कुपोषित और अति कुपोषितों की बड़ी संख्या को देखते हुए 2015-16 में इस एनआरसी बोर्ड को विस्तार देने की बात की गई थी.
  • अभी अगर हालात देखे जाएं तो न ही कोई विस्तार हुआ है और न ही स्टाफ नर्सों की संख्या बढ़ाई गई है.

कुपोषित बच्चों के आकड़े

  • आंकड़ों की माने तो जिले में 9 से 12 महीने तक के बच्चों की संख्या 26,682 है.
  • वहीं 1 से 2 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 1.14 लाख है.
  • 2 से 5 वर्ष में देखा जाए तो 3.15 लाख बच्चे आते हैं.
  • इन आंकड़ों में लाल श्रेणी यानी अति कुपोषित श्रेणी की बात की जाए तो 3,998 बच्चे हैं.
  • इसके साथ ही पीली श्रेणी के कुपोषित बच्चे 65,600 हैं.

आंगनबाड़ी और सरकार के अन्य संस्थाओं से लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा रही है. जो केस अभी तक दबे हुए रह जाते थे अब वह भी बाहर निकल कर आ रहे हैं. इसलिए यह आंकड़े बड़े हुए नजर आते हैं. यह किसी तरीके की सरकारी कमी नहीं, बल्कि जागरूकता का असर है, जिसका आने वाला परिणाम बेहतर होगा. पुनर्वास केंद्र के बेड ऐसे हैं, जिनमें एक बेड पर दो बच्चे आराम से लेट सकते हैं. अगर जरूरत पड़ती है तो हम अलग से भी संसाधनों की व्यवस्था कर लेते हैं.
-वीबी सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी

Intro:वाराणसी। वाराणसी को कुपोषण मुक्त कराने का स्वास्थ्य विभाग का दावा जिला अस्पताल के एनआरसी वार्ड में धराशाई होता नजर आ रहा है। कुपोषित नौनिहालों की संख्या देखकर तो यही लगता है कि शहर से कुपोषण जाने का नाम नहीं ले रहा। पूरी तरह मुफ्त इलाज, पोषाहार का इंतजाम और मां को पालन पोषण का ज्ञान कराने के लिए आज से खोले गए एनआरसी वर्ड में 10 बेड लगाए गए हैं, तो वही भर्ती होने के लिए इस केंद्र में 14 पीड़ित है। ऐसे में न सिर्फ जगह की कमी नजर आती है तो वही दूसरी तरफ से स्टाफ और संसाधन केवी अभाव में बच्चे पोषण से जूझ रहे हैं।


Body:VO1: आंकड़ों की माने तो जिले में 9 से 12 महीने तक के बच्चों में बच्चों की संख्या 26,682 है तो वही 1 से 2 वर्ष तक के बच्चों में 1.14 लाख बच्चे हैं। 2 से 5 वर्ष में देखा जाए तो 3.15 लाख बाचे आते हैं। इन आंकड़ों में लाल श्रेणी यानी अति कुपोषित श्रेणी की बात की जाए तो 3,998 बच्चे इस श्रेणी में आ रहे हैं। इसके साथ ही पीली श्रेणी के कुपोषित बच्चे 65,600 है। 2014 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल में 10 फीट का पोषण पुनर्वास केंद्र खोला गया था और संचालन के लिए बाल रोग विशेषज्ञ, डाइटिशियन, केयरटेकर और 4 स्टाफ नर्स की तैनाती की गई थी। भर्ती बच्चों के इलाज और पोषाहार के साथ ही माता के खानपान और मजदूरी क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिदिन ₹100 खाते में भेजने का प्रावधान भी किया गया था। हालांकि, जिले में कुपोषित और अति कुपोषितों कि बड़ी संख्या को देखते हुए 2015 और 16 में इस एनआरसी बोर्ड को विस्तार देने की बात की गई थी और 10 से 30 बेड कर देने की बात भी की गई थी। लेकिन अभी अगर हालात देखे जाएं तो ना ही कोई विस्तार हुआ है और ना ही स्टाफ नर्सों की संख्या बढ़ाई गई है। बल्कि एक नर्स कम कर संख्या को 4 से 3 कर दिया गया है। संसाधन बढ़ाने की बात भी कहीं ना कहीं दबी हुई नजर आ रही है। अपने बच्चों को एनआरसी वर्ड तक लाए परिजनों का कहना है कि उन्हें इस बात का इंतजार है कि केंद्र में पहले से जो बच्चे भर्ती हैं वह ठीक हो जाए तो उनके बच्चों को भी बेड और संसाधन मिल सके। वहीं, वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी की माने तो पुनर्वास केंद्र में ज़रूरत की सभी चीज़ें मौजूद हैं। किसी तरह की कोई भी कमी को सीएमओ डॉ वी बी सिंह ने खारिज करते हुए कहा है कि बेड की वर्तमान स्थिति बुरी नही हैं और ज़रूरत पड़ने पर हम ओर संसाधनों की व्यवस्था करते हैं।

बाइट: वी बी सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी


Conclusion:VO2: वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में जागरूकता की ओर इशारा कर रहा है आंगनवाड़ी और सरकार के अन्य संस्थाओं से लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा रही है और जो केस अभी तक दबे हुए रह जाते थे अब वह भी बाहर निकल कर आ रहे हैं इसलिए यह आंकड़े बड़े हुए नजर आते हैं। यह किसी तरीके की सरकारी कमी नहीं बल्कि जागरूकता का ही असर है जिसका आने वाला परिणाम बेहतर होगा। इसके साथ ही सीएमओ का कहना है कि पुनर्वास केंद्र के बेड ऐसे हैं जिनमें एक बेड पर दो बच्चे आराम से लेट सकते हैं और अगर जरूरत पड़ती है तो हम अलग से भी संसाधनों की व्यवस्था कर लेते हैं।

Regards
Arnima Dwivedi
Varanasi
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