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वाराणसी: आज बीएचयू मना रहा है अपने महामना का जन्मदिन

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Published : Dec 25, 2019, 8:20 AM IST

Updated : Dec 25, 2019, 12:18 PM IST

देश को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे संस्थान देने वाले भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का आज यानी 25 दिसंबर को जन्मदिन है. इनका जन्म इलाबाद में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था. इनका निधन 12 नवंबर 1946 में हुआ.

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भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्मदिन आज

वाराणसी: आज हम बात करेंगे भारत माता के ऐसे पुत्र की, जिसका मानव कल्याण ही उद्देश्य रहा. वह कोई और नहीं बल्कि प्रयागराज की धरती में आज ही के दिन यानी 25 दिसंबर को जन्म लेने वाले भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 दिसंबर 1861 को प्रयागराज में देश के इस महान विभूति का जन्म हुआ. 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया.

आज बीएचयू मना रहा है अपने महामना का जन्मदिन.
चार बार रहे राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष
मालवीय जी ने भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य "सत्यमेव जयते" को लोकप्रिय बनाने का श्रेय उनको ही जाता है. सत्यमेव जयते हजारों साल पहले लिखे गए उपनिषदों का एक मंत्र है. भारतीय राजनीति स्वतंत्रता सेनानी के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वह चार बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे 1909, 1918 , 1932 और 1933.मदन मोहन मालवीय 1886 में कोलकाता में कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में प्रेरक भाषण देते ही राजनीति के मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस सेवा दिया. मदन मोहन इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहे थे तो उन्होंने गोरखपुर की चौरी-चौरा घटना में आरोपी बनाए गए क्रांतिकारियों का केस लड़ा. कहा जाता है कि उन्होंने 153 क्रांतिकारियों को मौत की सजा से बचाया था.

कई पत्रिकाओं के संपादक रहे मालवीय
1885 से 1907 के बीच 3 पत्रों जिनमें हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय का संपादन किया. 1909 में 'द लीडर' समाचार पत्र की स्थापना कर इलाहाबाद से प्रकाशित किया. मालवीय ने 1937 में सक्रिय राजनीति से अलविदा कह कर अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित किया.

विधवाओं के पुनर्विवाह का किया समर्थन
लवीय के विश्वविद्यालय का कार्य पूरा हो चुका था. उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन और बाल विवाह का विरोध करने के साथ ही महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किया. भारत मां के महान सपूत 12 नवंबर 1946 को हम सब को छोड़कर चले गए. 24 दिसंबर 2014 को, महामना की 153वीं जयंती के एक दिन पूर्व भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया.
विश्वविद्यालय की स्थापना से जुड़े देश के के महान हस्ती
महामना ने 1916 में एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना की. मालवीय जानते थे कि जब हमारा देश आजाद होगा तो हमारे देश को नेतृत्व करने वाला चाहिए होंगे. यही वजह रही कि उन्होंने आजादी के पहले ही विश्वविद्यालय की स्थापना कर देश को नेतृत्व देने वालों के बीज रोपे. विश्वविद्यालय में स्थापना से लेकर उसके निर्माण तक डॉ एनी बेसेन्ट, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णनन, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, काशी नरेश विशेष योगदान रहा.

मालवीय के वंशज आज भी 13 विश्वविद्यालयों को सेवा दे रहे
1916 से लेकर अब तक मालवीय जी का परिवार विश्वविद्यालय को अपनी सेवा दे रहा है. मालवीय जी के पुत्र गोविंद मालवीय 1948 से 1951 तक विश्वविद्यालय के कुलपति थे. मालवीय जी के पौत्र जस्टिस गिरधर मालवीय वर्तमान समय में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं.

यह है विश्वविद्यालय की वर्तमान संरचना
वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 6 संस्थान, 14 संकाय, 140 विभाग, 4 अंतर आनुवांशिक केंद्र, महिलाओं का संगठक महिला महाविद्यालय, 3 विद्यालय और 4 संबंधित डिग्री कॉलेज शामिल हैं. विश्वविद्यालय में चालीस हजार छात्र छात्राएं और तीन हजार शिक्षक हैं .




वाराणसी: आज हम बात करेंगे भारत माता के ऐसे पुत्र की, जिसका मानव कल्याण ही उद्देश्य रहा. वह कोई और नहीं बल्कि प्रयागराज की धरती में आज ही के दिन यानी 25 दिसंबर को जन्म लेने वाले भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 दिसंबर 1861 को प्रयागराज में देश के इस महान विभूति का जन्म हुआ. 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया.

आज बीएचयू मना रहा है अपने महामना का जन्मदिन.
चार बार रहे राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष
मालवीय जी ने भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य "सत्यमेव जयते" को लोकप्रिय बनाने का श्रेय उनको ही जाता है. सत्यमेव जयते हजारों साल पहले लिखे गए उपनिषदों का एक मंत्र है. भारतीय राजनीति स्वतंत्रता सेनानी के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वह चार बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे 1909, 1918 , 1932 और 1933.मदन मोहन मालवीय 1886 में कोलकाता में कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में प्रेरक भाषण देते ही राजनीति के मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस सेवा दिया. मदन मोहन इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहे थे तो उन्होंने गोरखपुर की चौरी-चौरा घटना में आरोपी बनाए गए क्रांतिकारियों का केस लड़ा. कहा जाता है कि उन्होंने 153 क्रांतिकारियों को मौत की सजा से बचाया था.

कई पत्रिकाओं के संपादक रहे मालवीय
1885 से 1907 के बीच 3 पत्रों जिनमें हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय का संपादन किया. 1909 में 'द लीडर' समाचार पत्र की स्थापना कर इलाहाबाद से प्रकाशित किया. मालवीय ने 1937 में सक्रिय राजनीति से अलविदा कह कर अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित किया.

विधवाओं के पुनर्विवाह का किया समर्थन
लवीय के विश्वविद्यालय का कार्य पूरा हो चुका था. उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन और बाल विवाह का विरोध करने के साथ ही महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किया. भारत मां के महान सपूत 12 नवंबर 1946 को हम सब को छोड़कर चले गए. 24 दिसंबर 2014 को, महामना की 153वीं जयंती के एक दिन पूर्व भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया.
विश्वविद्यालय की स्थापना से जुड़े देश के के महान हस्ती
महामना ने 1916 में एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना की. मालवीय जानते थे कि जब हमारा देश आजाद होगा तो हमारे देश को नेतृत्व करने वाला चाहिए होंगे. यही वजह रही कि उन्होंने आजादी के पहले ही विश्वविद्यालय की स्थापना कर देश को नेतृत्व देने वालों के बीज रोपे. विश्वविद्यालय में स्थापना से लेकर उसके निर्माण तक डॉ एनी बेसेन्ट, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णनन, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, काशी नरेश विशेष योगदान रहा.

मालवीय के वंशज आज भी 13 विश्वविद्यालयों को सेवा दे रहे
1916 से लेकर अब तक मालवीय जी का परिवार विश्वविद्यालय को अपनी सेवा दे रहा है. मालवीय जी के पुत्र गोविंद मालवीय 1948 से 1951 तक विश्वविद्यालय के कुलपति थे. मालवीय जी के पौत्र जस्टिस गिरधर मालवीय वर्तमान समय में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं.

यह है विश्वविद्यालय की वर्तमान संरचना
वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 6 संस्थान, 14 संकाय, 140 विभाग, 4 अंतर आनुवांशिक केंद्र, महिलाओं का संगठक महिला महाविद्यालय, 3 विद्यालय और 4 संबंधित डिग्री कॉलेज शामिल हैं. विश्वविद्यालय में चालीस हजार छात्र छात्राएं और तीन हजार शिक्षक हैं .




Intro:158 वी जयंती पर विशेष

आज हम बात करेंगे भारत माता के एक ऐसे पुत्र की जिसका जन्म ही मानव कल्याण का उद्देश्य रहा, अध्यापक,वकील, पत्रकार,नेता और समाज सेवक, एक मनुष्य के इतने रूप भारत में ही देखने को मिले सकता है। वह कोई और नहीं बल्कि प्रयागराज की धरती में आज ही के दिन जन्म लेने वाले भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 दिसंबर 1861 को प्रयागराज में देश के इस महान विभूति का जन्म हुआ। 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया। भारत को पहला हिन्दू विश्वविद्यालय दिया।


Body:चार बार रह राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष

मालवीय जी ने भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य "सत्यमेव जयते" को लोकप्रिय बनाने का श्रेय उनको ही जाता है,सत्यमेव जयते हजारों साल पहले लिखे गए उपनिषदों का एक मंत्र है। भारतीय राजनीति स्वतंत्रता सेनानी के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वह चार बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे 1909,1918 ,1932 और 1933।
मदन मोहन मालवीय 18 86 में कोलकाता में कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में प्रेरक भाषण देते ही राजनीति के मंच पर छा गए उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस सेवा दिया।

मदन मोहन इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहे थे तो उन्होंने गोरखपुर की चौरी-चौरा घटना में आरोपी बनाए गए क्रांतिकारियों का केस लड़ा कहा जाता है कि उन्होंने 153 क्रांतिकारियों को मौत की सजा से बचाया था।

मालवीय जी एक संपादक के रूप में

1885 से 1907 के बीच 3 पत्रों जिनमे हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय का संपादन किया। 1909 में द लीडर समाचार पत्र स्थापना कर इलाहाबाद से प्रकाशित किया। मालवीय ने 1937 में सक्रिय राजनीति से अलविदा कह कर अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित किया।

जबड़ा भारत रक्त का मान

उधर विश्वविद्यालय का कार्य पूरा हो चुका था मालवीय जी ने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन और बाल विवाह का विरोध करने के साथ ही महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किया। भारत मां के महान सपूत 12 नवंबर 1946 में हम सब को छोड़कर चले गए। 24 दिसंबर 2014 को महामना की 153 वी जयंती एक दिन पूर्व भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देकर भारत रत्न का मान और बढ़ा दिया गया.


विश्वविद्यालय की स्थापना से जुड़े देश के के महान हस्ती

महामना ने 1916 में एशिया के सबसे बड़े भूभाग वाले आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना की मालवीय जी की सोच इतनी आगे थी, कि वह जानते थे कि जब हमारा देश आजाद होगा तो हमारे देश को नेतृत्व करने वाला चाहिए होंगे इसलिए उन्होंने आजादी के पहले ही विश्वविद्यालय की स्थापना कर देश के नेतृत्व करने वालों के बीज को रोप दिया। विश्वविद्यालय में स्थापना से लेकर उसके निर्माण तक डॉ एनी बेशेन्थ,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णनन महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, काशी नरेश विशेष योगदान रहा।
मालवीय जी के वंशज आज भी 13 विश्वविद्यालयों को सेवा

1916 लेकर अब तक मालवीय जी का परिवार विश्वविद्यालय को अपनी सेवा दे रहे हैं मालवीय जी के पुत्र गोविंद मालवीय 1948 से 1951 विश्वविद्यालय के कुलपति थे। मालवीय जी के पौत्र जस्टिस गिरधर मालवीय वर्तमान समय में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं।

यह है विश्वविद्यालय के वर्तमान संरचना।

वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 6 संस्थान ,14 संकाय 140 विभाग, 4 अंतर अनुवांशिक केंद्र, महिलाओं का संगठक महिला विद्यालय, 3 विद्यालय और 4 संबंधित डिग्री कॉलेज शामिल है। विश्वविद्यालय में चालीस हजार छात्र छात्राएं, तीन हजार शिक्षक तथा लगभग दश सहायक कर्मचारी कार्य करते हैं।





Conclusion:डॉ उपेंद्र पांडेय महामना के स्मरण और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के बारे में बताते हुए कहा विश्वविद्यालय स्थापना का संकल्प महामना के मन में इसलिए आया राष्ट्रीय स्वतंत्र होने के बाद राष्ट्र को चलाने के लिए उपयुक्त व्यक्तियों की आवश्यकता होगी। इसका निर्माण कैसे होगा। इसलिए उन्होंने विश्वविद्यालय की स्थापना किया। इससे पहले भी भारतवर्ष में कई विश्वविद्यालय थे लेकिन इस विश्वविद्यालय की स्थापना का मुख्य उद्देश्य यहां विद्या के साथ धर्म की शिक्षा दिया जाता है। महामना जानते थे कि धर्म के बिना विद्या सुशोभित नहीं होती। इसीलिए आप देखेंगे कि परिसर के मध्य में श्री काशी विश्वनाथ का मंदिर स्थापित है। जिसके मुख्य द्वार पर एक श्लोक लिखा है। अनेक राजा और विद्वान हम सब मिलकर विद्या और धर्म के विशेष वृद्धि के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना करते हैं। यहां समस्त क्रियाओं का अध्ययन अध्यापन तो होता ही है उसके साथ ही धर्म कि रक्षा हो,महामना की सोच विचार विद्यार्थियों के जीवन में पहुंचे उसके लिए विश्वविद्यालय परिवार हिंदी तिथि के हिसाब से मालवीय जयंती मनाया जाता है। जो पौष कृष्ण अष्टमी को भारतीय तिथि के अनुसार उनका जन्म हुआ था। आज भी उसी प्राचीन परंपरा के अनुसार उनके जयंती मनाई जाती है जिसके तहत गीता पाठ का शुभारंभ होता है आज भी उसी प्राचीन परंपरा के अनुसार उनके जयंती मनाई जाती है जिसके सर गीता पाठ का शुभारंभ होता है विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं चुकी अंग्रेजी तिथि के हिसाब से 25 सितंबर को जानती होती है तो उस दिन मालवीय भवन में जहां पर उन्होंने 20 वर्षों तक निवास किया पुष्प प्रदर्शनी लगाई जाती है।दिप उत्सव मनाया जाता है।

बाईट :--- डॉ उपेंद्र पांडेय, मानीत निर्देशक, मालवीय भवन,बीएचयू,

आशुतोष उपाध्याय
7007459303

मालवीय जयंती पर विशेष खबर एडिट ऑफिस होगा।
Last Updated : Dec 25, 2019, 12:18 PM IST
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