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काशी के इस मंदिर में हर रोज तिल के बराबर बढ़ता है शिवलिंग, मंहत ने बताया रहस्य

कहा जाता है कि काशी की शिव की नगरी है. यहां भगवान शिव के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनकी अलौकिक और पौराणिक कथाओं का जिक्र शिव महापुराण में भी मिलता है. इन्हीं में से एक प्रसिद्ध शिव मंदिर 'तिलभांडेश्वर मंदिर' है, जो हर रोज तिल के बराबर बढ़ता है.

वाराणसी तिलभांडेश्वर मंदिर
वाराणसी तिलभांडेश्वर मंदिर
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Published : Jul 13, 2023, 11:23 AM IST

Updated : Jul 13, 2023, 2:02 PM IST

वाराणसी तिलभांडेश्वर मंदिर में शिवलिंग बढ़ने का रहस्य.

वाराणसी: काशी में ऐसी कई अद्भुत और अलौकिक चीजें हैं, जिनके बारे में शायद हर कोई नहीं जानता. इनमें से एक है काशी में स्थापित मंदिरों की महत्ता. इनकी पौराणिकता के साथ इनकी कहानी और किस्से भी उतने ही रोचक हैं, जितना काशी नगरी का इतिहास. इसी कड़ी में वाराणसी के सोनारपुरा थाना क्षेत्र में स्थित तिलभांडेश्वर नाम का प्रसिद्ध शिव मंदिर का नाम भी शामिल है. यहां पर स्थापित भगवान भोलेनाथ का विशाल शिवलिंग अपने आप में कई कहानियों को बयां करता है. लेकिन इससे जुड़ी कहानी इसे और अनूठा बनाती है. मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग प्रतिदिन एक तिल के बराबर बढ़ता है?

वाराणसी तिलभांडेश्वर मंदिर
काशी के तीन सबसे बड़े शिवलिंग में से एक है तिलभांडेश्वर मंदिर का शिवलिंग.

दरअसल, वाराणसी का तिलभांडेश्वर मंदिर दक्षिण भारत से आने वाले दर्शनार्थियों के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है. यह शिवलिंग स्वयं-भू शिवलिंग है. (यानी जमीन से खुद निकला हुआ) ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी के कण-कण में शिव का वास है. ऐसी ही एक पौराणिक कथा काशी के तिलभांडेश्वर मंदिर के बारे में भी है. शिव महापुराण में भी ऐसी कई बातें वर्णित हैं, जो इस मंदिर को अन्य शिव मंदिरों से बिल्कुल अलग बना देती हैं.

वाराणसी तिलभांडेश्वर मंदिर
सावन माह में तिलभांडेश्वर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है.

तीन सबसे बड़े शिवलिंग में से एकः मंदिर के महंत स्वामी शिवानंद गिरि ने बताया कि इस शिवलिंग का आकार काशी के 3 सबसे बड़े शिवलिंग में से एक है, जिसमें हर वर्ष तिल के सामान वृद्धि होती है. कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर स्थापित है, जहां द्वापर युग में तिल की खेती हुआ करती थी. इस मंदिर का इतिहास भी द्वापर युग से जुड़ा है. उस समय जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा और तिल की खेती के बीच इस शिवलिंग को देखकर इसकी पूजा पाठ शुरू की, तभी से इसे तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाने लगा.

'तिलभांडेश्वर मंदिर
कहा जाता है कि द्वापर युग में यहां शिवलिंग हुआ था प्रकट.

मुगल शासकों ने किया हमलाः मंहत ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान मंदिर को नष्ट करने की कोशिश भी की गई. इस दौरान मंदिर पर एक नहीं 3 बार मुस्लिम शासकों ने हमला भी किया. मगर उस समय इस शिवलिंग को कुछ भी नहीं हुआ. इसके बाद मुगल शासकों को यहां से वापस लौटना पड़ा. इसके अलावा ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने शिवलिंग की महिमा सुनकर इसके आकार में हो रही बढ़ोतरी को जांचने के लिए इसके चारों तरफ धागा भी बांधा था, लेकिन धागा बार-बार टूट जा रहा था, जो यह साफ कर रहा था कि यह शिवलिंग प्रतिदिन बढ़ता है. इस शिवलिंग के बारे में शिव पुराण में भी जिक्र मिलता है. जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि यह शिवलिंग तिल के बराबर बढ़ता है. हालांकि शिवलिंग में हो रही बढ़ोतरी कैसे और क्यों होती है. यह आज तक कोई नहीं जान पाया है.

ऋषि विभांड की तपस्या से प्रकट हुआ शिवलिंगः मंदिर के महंत के अनुसार मान्यता है कि अति प्राचीन काल में यह स्वयंभू शिवलिंग उस वक्त के प्रख्यात ऋषि विभांड की तपस्या किए जाने के बाद इस जगह पर प्रकट हुआ था. इसलिए इस शिवलिंग को तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाता है. उस वक्त भगवान शिव ने ऋषि को कहा था कि कलयुग में यह शिवलिंग रोज तिल के समान बढ़ेगा और इसके दर्शन मात्र से ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा. इसके बाद इस शिवलिंग का नाम तिलभांडेश्वर पड़ा ऐसी भी मान्यता है कि यह शिवलिंग साल में एक बार मकर संक्रांति के दिन तिल के बराबर बढ़ता है.

'तिलभांडेश्वर मंदिर
नारियल की जटाओं से सुबह-शाम घिसकर साफ किया जाता है शिवलिंग.

भक्तों को हर बार बढ़ा लगता है शिवलिंगः एक कथा यह भी कही गई है कि यहां पर इस शिवलिंग को 15 दिन शुक्ल पक्ष में बढ़ोतरी के रूप में देखा जाता है. जबकि, कृष्ण पक्ष के 15 दिन या शिवलिंग घटता है. इस शिवलिंग की आकृति को बढ़ने से रोकने के लिए इसे नारियल की जटाओं से सुबह-शाम घिस घिसकर साफ किया जाता है, ताकि इस में होने वाली बढ़ोतरी रोकी जा सके. यहां आने वाले भक्तों का भी कहना है कि हम लोग काफी वक्त से शिवलिंग के दर्शन कर रहे हैं और जब भी दर्शन करते हैं तो यह शिवलिंग पहले की अपेक्षा ज्यादा बढ़ा प्रतीत होता है.

ये भी पढ़ेंः केदारेश्वर महादेव मंदिर में होते हैं विशेष दर्शन, जानें भगवान राम के पूर्वज की तपस्या की अनोखी कहानी

वाराणसी तिलभांडेश्वर मंदिर में शिवलिंग बढ़ने का रहस्य.

वाराणसी: काशी में ऐसी कई अद्भुत और अलौकिक चीजें हैं, जिनके बारे में शायद हर कोई नहीं जानता. इनमें से एक है काशी में स्थापित मंदिरों की महत्ता. इनकी पौराणिकता के साथ इनकी कहानी और किस्से भी उतने ही रोचक हैं, जितना काशी नगरी का इतिहास. इसी कड़ी में वाराणसी के सोनारपुरा थाना क्षेत्र में स्थित तिलभांडेश्वर नाम का प्रसिद्ध शिव मंदिर का नाम भी शामिल है. यहां पर स्थापित भगवान भोलेनाथ का विशाल शिवलिंग अपने आप में कई कहानियों को बयां करता है. लेकिन इससे जुड़ी कहानी इसे और अनूठा बनाती है. मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग प्रतिदिन एक तिल के बराबर बढ़ता है?

वाराणसी तिलभांडेश्वर मंदिर
काशी के तीन सबसे बड़े शिवलिंग में से एक है तिलभांडेश्वर मंदिर का शिवलिंग.

दरअसल, वाराणसी का तिलभांडेश्वर मंदिर दक्षिण भारत से आने वाले दर्शनार्थियों के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है. यह शिवलिंग स्वयं-भू शिवलिंग है. (यानी जमीन से खुद निकला हुआ) ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी के कण-कण में शिव का वास है. ऐसी ही एक पौराणिक कथा काशी के तिलभांडेश्वर मंदिर के बारे में भी है. शिव महापुराण में भी ऐसी कई बातें वर्णित हैं, जो इस मंदिर को अन्य शिव मंदिरों से बिल्कुल अलग बना देती हैं.

वाराणसी तिलभांडेश्वर मंदिर
सावन माह में तिलभांडेश्वर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है.

तीन सबसे बड़े शिवलिंग में से एकः मंदिर के महंत स्वामी शिवानंद गिरि ने बताया कि इस शिवलिंग का आकार काशी के 3 सबसे बड़े शिवलिंग में से एक है, जिसमें हर वर्ष तिल के सामान वृद्धि होती है. कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर स्थापित है, जहां द्वापर युग में तिल की खेती हुआ करती थी. इस मंदिर का इतिहास भी द्वापर युग से जुड़ा है. उस समय जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा और तिल की खेती के बीच इस शिवलिंग को देखकर इसकी पूजा पाठ शुरू की, तभी से इसे तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाने लगा.

'तिलभांडेश्वर मंदिर
कहा जाता है कि द्वापर युग में यहां शिवलिंग हुआ था प्रकट.

मुगल शासकों ने किया हमलाः मंहत ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान मंदिर को नष्ट करने की कोशिश भी की गई. इस दौरान मंदिर पर एक नहीं 3 बार मुस्लिम शासकों ने हमला भी किया. मगर उस समय इस शिवलिंग को कुछ भी नहीं हुआ. इसके बाद मुगल शासकों को यहां से वापस लौटना पड़ा. इसके अलावा ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने शिवलिंग की महिमा सुनकर इसके आकार में हो रही बढ़ोतरी को जांचने के लिए इसके चारों तरफ धागा भी बांधा था, लेकिन धागा बार-बार टूट जा रहा था, जो यह साफ कर रहा था कि यह शिवलिंग प्रतिदिन बढ़ता है. इस शिवलिंग के बारे में शिव पुराण में भी जिक्र मिलता है. जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि यह शिवलिंग तिल के बराबर बढ़ता है. हालांकि शिवलिंग में हो रही बढ़ोतरी कैसे और क्यों होती है. यह आज तक कोई नहीं जान पाया है.

ऋषि विभांड की तपस्या से प्रकट हुआ शिवलिंगः मंदिर के महंत के अनुसार मान्यता है कि अति प्राचीन काल में यह स्वयंभू शिवलिंग उस वक्त के प्रख्यात ऋषि विभांड की तपस्या किए जाने के बाद इस जगह पर प्रकट हुआ था. इसलिए इस शिवलिंग को तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाता है. उस वक्त भगवान शिव ने ऋषि को कहा था कि कलयुग में यह शिवलिंग रोज तिल के समान बढ़ेगा और इसके दर्शन मात्र से ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा. इसके बाद इस शिवलिंग का नाम तिलभांडेश्वर पड़ा ऐसी भी मान्यता है कि यह शिवलिंग साल में एक बार मकर संक्रांति के दिन तिल के बराबर बढ़ता है.

'तिलभांडेश्वर मंदिर
नारियल की जटाओं से सुबह-शाम घिसकर साफ किया जाता है शिवलिंग.

भक्तों को हर बार बढ़ा लगता है शिवलिंगः एक कथा यह भी कही गई है कि यहां पर इस शिवलिंग को 15 दिन शुक्ल पक्ष में बढ़ोतरी के रूप में देखा जाता है. जबकि, कृष्ण पक्ष के 15 दिन या शिवलिंग घटता है. इस शिवलिंग की आकृति को बढ़ने से रोकने के लिए इसे नारियल की जटाओं से सुबह-शाम घिस घिसकर साफ किया जाता है, ताकि इस में होने वाली बढ़ोतरी रोकी जा सके. यहां आने वाले भक्तों का भी कहना है कि हम लोग काफी वक्त से शिवलिंग के दर्शन कर रहे हैं और जब भी दर्शन करते हैं तो यह शिवलिंग पहले की अपेक्षा ज्यादा बढ़ा प्रतीत होता है.

ये भी पढ़ेंः केदारेश्वर महादेव मंदिर में होते हैं विशेष दर्शन, जानें भगवान राम के पूर्वज की तपस्या की अनोखी कहानी

Last Updated : Jul 13, 2023, 2:02 PM IST
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