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आपातकाल: पंडित कमलापति त्रिपाठी का भी हुआ था विरोध, छात्रों ने खाई थीं पुलिस की लाठियां - emergency in varanasi

भारतीय इतिहास में 25 जून आज भी इमरजेंसी के तमाम काले धब्बों की याद दिलाता है. पूरे देश में इसका पूरजोर विरोध हुआ था. गौरतलब है कि कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली वाराणसी में भी लोगों ने विरोध किया. जानिए आखिर इसके पीछे क्या थे कारण...

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Jun 25, 2022, 12:43 PM IST

Updated : Jun 25, 2022, 1:37 PM IST

वाराणसी: भारतीय इतिहास में 25 जून आज भी इमरजेंसी के काले धब्बों की याद ताजा कर देता है. जिसने भी उन हालातों को अपनी आंखों से देखा वह आज भी सिहर उठता है. पूरे देश में इसका विरोध हो रहा था, लेकिन इस विरोध का केंद्र धर्म नगरी काशी था. जी हां जहां एक ओर आपातकाल का सूत्रधार काशी से हुआ था तो वहीं दूसरी ओर बनारस कांग्रेस का एक मजबूत किला माना जाता था, लेकिन उसके बावजूद भी यहां पुरजोर इमरजेंसी का विरोध हुआ.

जानकारी देते प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा और प्रोफेसर रवि प्रकाश पांडे.

पंडित कमलापति त्रिपाठी का था गढ़, फिर भी वाराणसी में हुआ था विरोध
बात 1975 की करें तो इंदिरा गांधी ने 25 जून को आपातकाल की घोषणा की. जिसका विरोध पूरे देश में होने लगा. इस क्रम में अपनी आपबीती सुनाते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने भी पुलिस की लाठियां खाई थी. उन्होंने बताया कि यहां कांग्रेस के गढ़ के बावजूद लोगों ने पंडित कमलापति त्रिपाठी का साथ नहीं दिया, बल्कि खुलकर विरोध किया और उस विरोध की बड़ी तस्वीर विद्यार्थी परिषद और समाजवादी छात्र सभा के बैनर तले दिखाई दे रही थी. जिसमें युवाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने बताया कि वाराणसी में अस्सी तक रैली निकाली जा रही थी, जिसमें वो शामिल हुए थे जहां उन्होंने भी लाठियां खाई थी.

इमरजेंसी का काशी में हुआ था सूत्रधार
वहीं, आपातकाल के सूत्रधार को लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर रवि प्रकाश पांडे बताते है कि इमरजेंसी के दौरान पूरे देश की धुरी काशी बन गई थी. उसकी बड़ी वजह थी. क्योंकि आपातकाल का सूत्रधार यही से था. इंदिरा गांधी जब लोकसभा का चुनाव जीती उनके प्रतिद्वंदी राजनारायण ने हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल किया और जिसके बाद इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी. रिट दाखिल करने वाले राजनारायण काशी के गंगापुर के रहने वाले थे. उन्होंने बताया कि इमरजेंसी का बनारस ने विरोध किया था, जिसमें महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों की बड़ी भूमिका रही. उस समय 3 तरीके की विचारधाराएं चल रही थी. एक समाजवादी छात्र सभा की, दूसरी विद्यार्थी परिषद की और तीसरी बुद्धिजीवियों की. जो अलग-अलग तरीके से अपना विरोध दर्ज कर रहे थे. छात्र जहां उग्र आंदोलन कर रहे थे तो वहीं बुद्धिजीवी पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी बात को रख रहे थे. उन्होंने बताया कि बनारस में विरोध होना अपने आप में आश्चर्य की बात थी कि यहां पंडित कमलापति त्रिपाठी सांसद थे और पंडित त्रिपाठी का कद इतना बड़ा था कि बनारस में किसी भी तरीके का विरोध नहीं होना चाहिए था.

बहरहाल इमरजेंसी का तो पूरे देश में विरोध देखने को मिला था लेकिन का काशी उस समय धूरी मानी गई थी, क्योंकि काशी से इमरजेंसी की ज्वाला निकली थी। कांग्रेस का गढ़ होने के बावजूद भी यहां पर जमकर विरोध हुआ था.

इसे भी पढ़ें- यूपी का एक ऐसा मुख्यमंत्री, जो सरकारी ताम-झाम से अलग अपनी सादगी के लिए थे मशहूर

वाराणसी: भारतीय इतिहास में 25 जून आज भी इमरजेंसी के काले धब्बों की याद ताजा कर देता है. जिसने भी उन हालातों को अपनी आंखों से देखा वह आज भी सिहर उठता है. पूरे देश में इसका विरोध हो रहा था, लेकिन इस विरोध का केंद्र धर्म नगरी काशी था. जी हां जहां एक ओर आपातकाल का सूत्रधार काशी से हुआ था तो वहीं दूसरी ओर बनारस कांग्रेस का एक मजबूत किला माना जाता था, लेकिन उसके बावजूद भी यहां पुरजोर इमरजेंसी का विरोध हुआ.

जानकारी देते प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा और प्रोफेसर रवि प्रकाश पांडे.

पंडित कमलापति त्रिपाठी का था गढ़, फिर भी वाराणसी में हुआ था विरोध
बात 1975 की करें तो इंदिरा गांधी ने 25 जून को आपातकाल की घोषणा की. जिसका विरोध पूरे देश में होने लगा. इस क्रम में अपनी आपबीती सुनाते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने भी पुलिस की लाठियां खाई थी. उन्होंने बताया कि यहां कांग्रेस के गढ़ के बावजूद लोगों ने पंडित कमलापति त्रिपाठी का साथ नहीं दिया, बल्कि खुलकर विरोध किया और उस विरोध की बड़ी तस्वीर विद्यार्थी परिषद और समाजवादी छात्र सभा के बैनर तले दिखाई दे रही थी. जिसमें युवाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने बताया कि वाराणसी में अस्सी तक रैली निकाली जा रही थी, जिसमें वो शामिल हुए थे जहां उन्होंने भी लाठियां खाई थी.

इमरजेंसी का काशी में हुआ था सूत्रधार
वहीं, आपातकाल के सूत्रधार को लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर रवि प्रकाश पांडे बताते है कि इमरजेंसी के दौरान पूरे देश की धुरी काशी बन गई थी. उसकी बड़ी वजह थी. क्योंकि आपातकाल का सूत्रधार यही से था. इंदिरा गांधी जब लोकसभा का चुनाव जीती उनके प्रतिद्वंदी राजनारायण ने हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल किया और जिसके बाद इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी. रिट दाखिल करने वाले राजनारायण काशी के गंगापुर के रहने वाले थे. उन्होंने बताया कि इमरजेंसी का बनारस ने विरोध किया था, जिसमें महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों की बड़ी भूमिका रही. उस समय 3 तरीके की विचारधाराएं चल रही थी. एक समाजवादी छात्र सभा की, दूसरी विद्यार्थी परिषद की और तीसरी बुद्धिजीवियों की. जो अलग-अलग तरीके से अपना विरोध दर्ज कर रहे थे. छात्र जहां उग्र आंदोलन कर रहे थे तो वहीं बुद्धिजीवी पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी बात को रख रहे थे. उन्होंने बताया कि बनारस में विरोध होना अपने आप में आश्चर्य की बात थी कि यहां पंडित कमलापति त्रिपाठी सांसद थे और पंडित त्रिपाठी का कद इतना बड़ा था कि बनारस में किसी भी तरीके का विरोध नहीं होना चाहिए था.

बहरहाल इमरजेंसी का तो पूरे देश में विरोध देखने को मिला था लेकिन का काशी उस समय धूरी मानी गई थी, क्योंकि काशी से इमरजेंसी की ज्वाला निकली थी। कांग्रेस का गढ़ होने के बावजूद भी यहां पर जमकर विरोध हुआ था.

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Last Updated : Jun 25, 2022, 1:37 PM IST
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