वाराणसी: धर्म नगरी काशी में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर भगवान जगन्नाथ के जलाभिषेक की परंपरा है. भक्त अपने आराध्य को श्रद्धा में इतना स्नान करा देते हैं कि वह 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं. इसी कड़ी में रविवार को भी इस परंपरा का निर्वहन किया गया. अब भगवान का आयुर्वेद से उपचार किया जाएगा. इसके बाद वाराणसी में रथयात्रा का मेला शुरू होगा.
17वीं सदी का मंदिरः- वाराणसी के अस्सी क्षेत्र में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर पुरातत्व विभाग के अनुसार 1711 ईसवी का है. जानकारी के अनुसार यहां के ट्रस्टियों और पुजारियों का दावा है कि मंदिर उससे भी अधिक पुराना है. लोगों का कहना है कि जब काशी में भीषण गर्मी पड़ने लगती है. तब परंपरा के अनुसार पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान का जलाभिषेक किया जाता है. ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से अर्ध रात्रि तक उन्हें स्नान कराया जाता है. मान्यता है कि जलाभिषेक के बाद यहां गर्मी थोड़ी कम हो जाती है. भक्तों का सुख-दुख समझाने के उद्देश्य से भगवान जगन्नाथ की यह लीला है. पिछले 300 सालों से वाराणसी के लोग इस परंपरा को बखूबी निभाते चले आ रहे हैं.
भगवान को परवल के काढ़े का भोगः- भगवान जगन्नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित राधेश्याम पांडेय ने बताया कि जेष्ठ पूर्णिमा के दिन प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी भगवान का जलाभिषेक किया गया. यहां भगवान का इतना जलाभिषेक करते हैं कि भगवान लीला करने के लिए अस्वस्थ हो जाते हैं. इसके बाद मंदिर 15 दिनों के लिए बंद हो जाता है. भगवान जगन्नाथ को काढ़े का भोग लगाया जाता है. जिसे प्रसाद के रूप में भक्त प्राप्त करते हैं.
पंडित राधेश्याम पांडेय ने बताया कि आज के 15 दिन बाद अमावस्या को 18 जून को भगवान प्रकट होंगे. इसके साथ ही भगवान बिल्कुल स्वस्थ होंगे. उसके लिए भगवान को पूरे शहर में घुमाया जाएगा. साथ ही उसी दिन रथयात्रा का मेला शुरू होगा. उन्होंने बताया कि पुरातत्व विभाग इस मंदिर को 17वीं सदी का बताता है. जबकि हमारे पास और ट्रस्टी के पास मंदिर के इससे भी पुराने होने के साक्ष्य हैं.