वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय का योगदान देश की आजादी से लेकर अब तक के विकास कार्यों में महत्वपूर्ण रहा है. विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के दूसरे राष्ट्रपति बने थे. यह उपलब्धि विश्वविद्यालय की गरिमा को और भी बढ़ा देती है. बीएचयू की स्थापना और संचालन के दायित्व के साथ पंडित मदन मोहन मालवीय के स्वास्थ्य कारणों के चलते डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बतौर कुलपति का पद 1939 से लेकर 1948 तक संभाला था. इसके बाद उन्होंने अपनी जयंती पर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने को कहा था. तब से आज तक पूर्व राष्ट्रपति के जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
शिक्षक दिवस पर होते हैं आयोजन
आज 5 सितंबर को देश भर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार की आयोजन कराए गए हैं. जिसमें छात्र अपने पूर्व कुलपति को याद कर उनके योगदान के बारे में एक दूसरे को जानकारी देते हैं. इसके साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा छात्र-छात्राओं को उनके योगदान के बारे में बताया जाता है. विश्वविद्यालय के मालवीय भवन, भारत कला भवन में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बहुत सी स्मृतियां रखी हुई हैं.
कुलपति का पदभार ग्रहण करने के समय की फोटो
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय नाथ मिश्रा ने बताया कि आज भी भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बहुत सी स्मृतियां को विश्वविद्यालय में संजोकर रखा गया है. विश्वविद्यालय में उनके द्वारा लिखे हुए बहुत से पत्र हैं. कुलपति का दायित्व ग्रहण करते हुए ली गईं उस समय की फोटो भी संभालकर रखी गई है. इससे आने वाली पीढ़ी विश्वविद्यालय की गरिमा को जान सकेगी. यहां के कुलपति देश के राष्ट्रपति हुए हैं. महामना द्वारा सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 7 सितंबर 1939 को विश्वविद्यालय में अपनी सेवा अर्पित करने को पत्र लिखा गया था. मालवीय भवन एवं भारत कला भवन, ये सब चीजें आज भी विश्वविद्यालय में सुरक्षित हैं. उनके स्मृति में यहां कला संकाय में एक व्याख्यान सभागर है. जिसका नाम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सभागार है. महामना सर्वपल्ली राधाकृष्णन और विश्वविद्यालय इन तीनों का आपस में बहुत ही गहरा संबंध रहा है.
स्वतंत्रता सेनानियों के साथ थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन
प्रोफेसर ने बताया जब वह विश्वविद्यालय के कुलपति थे. उस समय स्वतंत्रता आंदोलन 1942 चल रहा था. ऐसे में उन्हें पता चला कि छात्रों को पकड़ने के लिए ब्रिटिश पुलिस विश्वविद्यालय में प्रवेश करने जा रही है. इस दौरान उन्होंने छात्रों के गार्जियन के रूप में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने छात्रों और कर्मचारियों के साथ ही अंग्रेजों को रोकने के लिए सबसे आगे खड़े हो गए. राष्ट्र के नाम उन्होंने संदेश दिया कि वह देश के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं.
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