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वाराणसी: सावन आते ही मेले में सज जाते हैं झूले

सावन के महीने में धर्म की नगरी काशी को दुल्हन की तरह सजा दिया जाता है. काशी के कुछ मंदिरों में सावन में हरियाली सिंगार भी किया जाता है.

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Published : Jul 31, 2019, 6:35 PM IST

मेले में सजे झूले.

वाराणसी: दुर्गा मंदिर के पास दुर्गा कुंड क्षेत्र में सावन के मेले का आयोजन पूरे एक माह तक रहता है. यहां पर लगे हुए झूले का इंतजार काशी सहित पूर्वांचल वासियों को वर्ष भर रहता है. एक महीना लोग झूले का आनंद लेते हैं.

सावन में सज जाते हैं झूले.

मेले में झूले बनते हैं आकर्षण का केंद्र
आधुनिकता की युग में झूले का आकार के साथ-साथ उसकी बनावट भी बदलती गई है. ऐसे में अब बिजली से चलने वाले झूले हैं, जो दिन-रात चलते हैं और रात होते ही यही झूले और भी आकर्षक का केंद्र बन जाते हैं. ऐसे में लोग घरों से निकलकर झूले का आनंद लेते हैं और मंदिरों का दर्शन कर सावन मेले का लुत्फ उठाते हैं.

जानें क्या कहते हैं श्रद्धालु
भोले की नगरी में बाबा विश्वनाथ का सबसे प्रिय यह सावन होता है. सावन और झूले का तो सदियों से रिश्ता रहा है, क्योंकि लगातार कई महीनों के गर्मी पड़ने के बाद जब मौसम अच्छा होता है तो पहले लोग पेड़ों में और बगीचों में जाकर झूले पर कजरी गीत गाते थे. आज आधुनिकता के दौर में यह सब तो नहीं मिलता, लेकिन यह सत्य है कि बिना झूले के सावन अधूरा माना जाता है, लेकिन आज के इस युग में यही झूला है और हम बच्चों के साथ आए हैं और सावन का असली आनंद लेते हैं.

वाराणसी: दुर्गा मंदिर के पास दुर्गा कुंड क्षेत्र में सावन के मेले का आयोजन पूरे एक माह तक रहता है. यहां पर लगे हुए झूले का इंतजार काशी सहित पूर्वांचल वासियों को वर्ष भर रहता है. एक महीना लोग झूले का आनंद लेते हैं.

सावन में सज जाते हैं झूले.

मेले में झूले बनते हैं आकर्षण का केंद्र
आधुनिकता की युग में झूले का आकार के साथ-साथ उसकी बनावट भी बदलती गई है. ऐसे में अब बिजली से चलने वाले झूले हैं, जो दिन-रात चलते हैं और रात होते ही यही झूले और भी आकर्षक का केंद्र बन जाते हैं. ऐसे में लोग घरों से निकलकर झूले का आनंद लेते हैं और मंदिरों का दर्शन कर सावन मेले का लुत्फ उठाते हैं.

जानें क्या कहते हैं श्रद्धालु
भोले की नगरी में बाबा विश्वनाथ का सबसे प्रिय यह सावन होता है. सावन और झूले का तो सदियों से रिश्ता रहा है, क्योंकि लगातार कई महीनों के गर्मी पड़ने के बाद जब मौसम अच्छा होता है तो पहले लोग पेड़ों में और बगीचों में जाकर झूले पर कजरी गीत गाते थे. आज आधुनिकता के दौर में यह सब तो नहीं मिलता, लेकिन यह सत्य है कि बिना झूले के सावन अधूरा माना जाता है, लेकिन आज के इस युग में यही झूला है और हम बच्चों के साथ आए हैं और सावन का असली आनंद लेते हैं.

Intro:धर्म की नगरी काशी सावन आते ही दुल्हन की तरह सजा दिया जाता है काशी का शायद ही कोई ऐसा मंदिर होगा जो सजाया न गया हो कुछ मंदिरों में सावन में हरियाली सिंगार भी किया जाता है।


Body:सावन की महीने की अगर हम बात कर रहे हैं तो झूले की बात ना करें ऐसा कैसे हो सकता है।वाराणसी दुर्गा मंदिर के पास दुर्गा कुंड क्षेत्र में सावन के मेले का आयोजन पूरे एक माह तक रहता। यहां पर लगे हुए झूले का इंतजार बनारस सहित पूर्वांचल वासियों को वर्ष भर रहता है। एक महीना लोग झूले का आनंद लेते हैं। आधुनिकता की युग में।झूले का आकार के साथ साथ उसकी बनावट भी बदलती गई ऐसे में अब बिजली से चलने वाले झूले हैं जो दिन रात चलते हैं।और रात होते ही यही झूले और भी आकर्षक का केंद्र बन जाते हैं।

ऐसे में लोग घरों से निकलकर झूले का आनंद लेते हैं और मंदिरों का दर्शन कर सावन मेले का लुफ्त उठाते हैं।


Conclusion:श्रद्धालु अजय दुबे ने बताया काशी का तो बहुत ही महत्व होता है खासकर बाबा भोले की नगरी में बाबा विश्वनाथ का सबसे प्रिय दिन यह सावन होता है सावन और झूले का तो सदियों से रिश्ता रहा है क्योंकि लगातार पड़े कई महीनों के गर्मी के बाद जब मौसम अच्छा होता है तो पहले लोग पेड़ों में और बगीचों में जाकर झूले पर झूल कर कजरी गीत गाते थे आज आधुनिकता के दौर में यह सब तो नहीं मिलता लेकिन यह सत्य है कि बिना झूले के सावन अधूरा माना जाता है। लेकिन आज के इस युग में यही झूला है और हम बच्चों के साथ आए हैं और सावन का असली एंजॉयमेंट करें है।
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