वाराणसी: दुर्गा मंदिर के पास दुर्गा कुंड क्षेत्र में सावन के मेले का आयोजन पूरे एक माह तक रहता है. यहां पर लगे हुए झूले का इंतजार काशी सहित पूर्वांचल वासियों को वर्ष भर रहता है. एक महीना लोग झूले का आनंद लेते हैं.
मेले में झूले बनते हैं आकर्षण का केंद्र
आधुनिकता की युग में झूले का आकार के साथ-साथ उसकी बनावट भी बदलती गई है. ऐसे में अब बिजली से चलने वाले झूले हैं, जो दिन-रात चलते हैं और रात होते ही यही झूले और भी आकर्षक का केंद्र बन जाते हैं. ऐसे में लोग घरों से निकलकर झूले का आनंद लेते हैं और मंदिरों का दर्शन कर सावन मेले का लुत्फ उठाते हैं.
जानें क्या कहते हैं श्रद्धालु
भोले की नगरी में बाबा विश्वनाथ का सबसे प्रिय यह सावन होता है. सावन और झूले का तो सदियों से रिश्ता रहा है, क्योंकि लगातार कई महीनों के गर्मी पड़ने के बाद जब मौसम अच्छा होता है तो पहले लोग पेड़ों में और बगीचों में जाकर झूले पर कजरी गीत गाते थे. आज आधुनिकता के दौर में यह सब तो नहीं मिलता, लेकिन यह सत्य है कि बिना झूले के सावन अधूरा माना जाता है, लेकिन आज के इस युग में यही झूला है और हम बच्चों के साथ आए हैं और सावन का असली आनंद लेते हैं.