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काशी के इसी मंदिर से गंगा होती हैं उत्तरवाहिनी

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में अपनी प्राचीनता और पौराणिकता का प्रतीक शुलटंकेश्वर मन्दिर शिव भक्तों के आस्था का प्रतीक बना हुआ है. इस शिवालय से जुड़ी कई पौराणिक कहानी जुड़ी हुई है.

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Published : Jul 20, 2020, 10:57 AM IST

शुलटंकेश्वर मन्दिर
शुलटंकेश्वर मन्दिर

वाराणसी: द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा विश्वनाथ की नगरी के कण-कण में उनका वास होता है. यहां वह आदि विशेश्वर के रूप में विराजमान हैं. इसलिए बाबा की नगरी को अविमुक्त, आनंद कानन, तीर्थराज्ञी, वाराणसी, तपस्थली जैसे नामों से जाना जाता है. कहते हैं यहां की महिमा अनंत है. यहां गलियों में सड़क पर कई ऐसे मंदिर मिल जाएंगे, जिनकी पौराणिक और पुराणों में मान्यताएं हैं. सावन माह में शिव भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार के साथ-साथ अन्य कई सारे मंदिर और शिवालयों में भी हाजिरी लगाते हैं.

शुलटंकेश्वर मन्दिर
काशी से 15 किमी दूर बसे हैं शूलटंकेश्वर महादेवइन्हीं शिवालयों में से एक काशी से 15 किलोमीटर दूर स्थित शिवालय है, जिसका नाम शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर है. वाराणसी का यह मंदिर काशी के दक्षिण भाग में अवस्थित है. इन्हीं मंदिर के घाटों से गंगा उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश करती हैं, इसलिए इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है. इस मंदिर और माधव ऋषि के नाम पर ही यहां के गांव का नाम भी पड़ा. इसे माधवपुर कहा जाता है.कई सालों से भक्त लगातार आ रहे भगवान के धाममंदिर में दर्शन करने आई भक्त ने बताया कि वह यहां पिछले 12 सालों से दर्शन पूजन करने आ रही हैं और भगवान उनकी सभी मनोकामना को पूरा करते हैं. उन्होंने बताया कि पहले हम लोग यहां आते थे तो घंटों मंदिर के आंगन में बैठकर बाबा की पूजा-अर्चना करते थे, लेकिन कोरोना के कारण मंदिर बंद किया गया है. इसके कारण हम सब बाहर से ही मत्था टेककर चले जाते हैं. हमें यहां बहुत सुकून मिलता है. बाबा हम सबकी बहुत सुनते हैं.वहीं दूसरी दर्शनार्थी ने बताया कि वह भी यहां पिछले 12 सालों से अपने परिवार के साथ आ रही हैं. उन्होंने बताया कि भगवान को मदार की माला बहुत प्रिय होती है. भगवान को प्रसन्न करने के लिए वे सब यहां दूध, बेलपत्र, मदार की माला चढ़ाती हैं. इसके साथ ही वे घाट से गंगाजल लेकर कमहादेव पर अर्पित करते हैं और महादेव उन सबके सभी दुखों को दूर कर देते हैं.मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएंमंदिर के पुजारी राजेन्द्र दुबे ने बताया कि इस मंदिर का नाम पहले माधव ऋषि के नाम पर महादेव था. महादेव यहां पर स्वयंभू है. यह बात गंगावतरण से पूर्व की है. गंगावतरण के समय भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपने त्रिशूल से गंगा को रोककर दो वचन लिया था, जिसके बाद वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित हुई थी.

उन्होंने बताया कि जब गंगा काशी के दक्षिणी गेट पर पहुंची तो महादेव ने उनको रोककर कहा कि आप काशी में तभी प्रवेश करेंगी, जब आप हमारे दो शर्तों को स्वीकार करेंगी. इसमें से पहली शर्त यह कि काशी में आपका वेग बहुत ही शांत होगा और दूसरा काशी में स्नान करने वाले किसी भी भक्तों को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा.

गंगा ने जब दोनों वचनों को स्वीकार कर लिया तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस खिंचा और गंगा ने उत्तर वाहिनी होते हुए काशी को स्पर्श किया. उन्होंने बताया कि जब शिव ने अपना त्रिशूल खींचकर माधवेश्वर महादेव के स्थान पर पहुंचे, तभी वहां मौजूद ऋषि-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शुलटंकेश्वर महादेव रखा, तभी से इस मंदिर का नाम शुलटंकेश्वर मन्दिर पड़ गया.

बाबा पूरी करते हैं हर भक्त की मनोकामना
मन्दिर के पुजारी ने बताया कि इसके पीछे धारणा यह थी कि जिस प्रकार यहां मां गंगा का कष्ट दूर हुआ, उसी प्रकार अन्य भक्तों का भी कष्ट दूर होगा. यही वजह है कि पूरे वर्ष यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. सभी भक्त अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए यहां आते हैं. सावन के महीने में तो यहां दूरदराज से भी भक्त आते हैं, लेकिन इस वर्ष मंदिर बन्द होने के कारण इक्का-दुक्का ही भक्त आ रहे हैं और दूर से दर्शन करके जा रहे हैं.

वाराणसी: द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा विश्वनाथ की नगरी के कण-कण में उनका वास होता है. यहां वह आदि विशेश्वर के रूप में विराजमान हैं. इसलिए बाबा की नगरी को अविमुक्त, आनंद कानन, तीर्थराज्ञी, वाराणसी, तपस्थली जैसे नामों से जाना जाता है. कहते हैं यहां की महिमा अनंत है. यहां गलियों में सड़क पर कई ऐसे मंदिर मिल जाएंगे, जिनकी पौराणिक और पुराणों में मान्यताएं हैं. सावन माह में शिव भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार के साथ-साथ अन्य कई सारे मंदिर और शिवालयों में भी हाजिरी लगाते हैं.

शुलटंकेश्वर मन्दिर
काशी से 15 किमी दूर बसे हैं शूलटंकेश्वर महादेवइन्हीं शिवालयों में से एक काशी से 15 किलोमीटर दूर स्थित शिवालय है, जिसका नाम शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर है. वाराणसी का यह मंदिर काशी के दक्षिण भाग में अवस्थित है. इन्हीं मंदिर के घाटों से गंगा उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश करती हैं, इसलिए इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है. इस मंदिर और माधव ऋषि के नाम पर ही यहां के गांव का नाम भी पड़ा. इसे माधवपुर कहा जाता है.कई सालों से भक्त लगातार आ रहे भगवान के धाममंदिर में दर्शन करने आई भक्त ने बताया कि वह यहां पिछले 12 सालों से दर्शन पूजन करने आ रही हैं और भगवान उनकी सभी मनोकामना को पूरा करते हैं. उन्होंने बताया कि पहले हम लोग यहां आते थे तो घंटों मंदिर के आंगन में बैठकर बाबा की पूजा-अर्चना करते थे, लेकिन कोरोना के कारण मंदिर बंद किया गया है. इसके कारण हम सब बाहर से ही मत्था टेककर चले जाते हैं. हमें यहां बहुत सुकून मिलता है. बाबा हम सबकी बहुत सुनते हैं.वहीं दूसरी दर्शनार्थी ने बताया कि वह भी यहां पिछले 12 सालों से अपने परिवार के साथ आ रही हैं. उन्होंने बताया कि भगवान को मदार की माला बहुत प्रिय होती है. भगवान को प्रसन्न करने के लिए वे सब यहां दूध, बेलपत्र, मदार की माला चढ़ाती हैं. इसके साथ ही वे घाट से गंगाजल लेकर कमहादेव पर अर्पित करते हैं और महादेव उन सबके सभी दुखों को दूर कर देते हैं.मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएंमंदिर के पुजारी राजेन्द्र दुबे ने बताया कि इस मंदिर का नाम पहले माधव ऋषि के नाम पर महादेव था. महादेव यहां पर स्वयंभू है. यह बात गंगावतरण से पूर्व की है. गंगावतरण के समय भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपने त्रिशूल से गंगा को रोककर दो वचन लिया था, जिसके बाद वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित हुई थी.

उन्होंने बताया कि जब गंगा काशी के दक्षिणी गेट पर पहुंची तो महादेव ने उनको रोककर कहा कि आप काशी में तभी प्रवेश करेंगी, जब आप हमारे दो शर्तों को स्वीकार करेंगी. इसमें से पहली शर्त यह कि काशी में आपका वेग बहुत ही शांत होगा और दूसरा काशी में स्नान करने वाले किसी भी भक्तों को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा.

गंगा ने जब दोनों वचनों को स्वीकार कर लिया तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस खिंचा और गंगा ने उत्तर वाहिनी होते हुए काशी को स्पर्श किया. उन्होंने बताया कि जब शिव ने अपना त्रिशूल खींचकर माधवेश्वर महादेव के स्थान पर पहुंचे, तभी वहां मौजूद ऋषि-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शुलटंकेश्वर महादेव रखा, तभी से इस मंदिर का नाम शुलटंकेश्वर मन्दिर पड़ गया.

बाबा पूरी करते हैं हर भक्त की मनोकामना
मन्दिर के पुजारी ने बताया कि इसके पीछे धारणा यह थी कि जिस प्रकार यहां मां गंगा का कष्ट दूर हुआ, उसी प्रकार अन्य भक्तों का भी कष्ट दूर होगा. यही वजह है कि पूरे वर्ष यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. सभी भक्त अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए यहां आते हैं. सावन के महीने में तो यहां दूरदराज से भी भक्त आते हैं, लेकिन इस वर्ष मंदिर बन्द होने के कारण इक्का-दुक्का ही भक्त आ रहे हैं और दूर से दर्शन करके जा रहे हैं.

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