वाराणसी: द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा विश्वनाथ की नगरी के कण-कण में उनका वास होता है. यहां वह आदि विशेश्वर के रूप में विराजमान हैं. इसलिए बाबा की नगरी को अविमुक्त, आनंद कानन, तीर्थराज्ञी, वाराणसी, तपस्थली जैसे नामों से जाना जाता है. कहते हैं यहां की महिमा अनंत है. यहां गलियों में सड़क पर कई ऐसे मंदिर मिल जाएंगे, जिनकी पौराणिक और पुराणों में मान्यताएं हैं. सावन माह में शिव भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार के साथ-साथ अन्य कई सारे मंदिर और शिवालयों में भी हाजिरी लगाते हैं.
उन्होंने बताया कि जब गंगा काशी के दक्षिणी गेट पर पहुंची तो महादेव ने उनको रोककर कहा कि आप काशी में तभी प्रवेश करेंगी, जब आप हमारे दो शर्तों को स्वीकार करेंगी. इसमें से पहली शर्त यह कि काशी में आपका वेग बहुत ही शांत होगा और दूसरा काशी में स्नान करने वाले किसी भी भक्तों को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा.
गंगा ने जब दोनों वचनों को स्वीकार कर लिया तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस खिंचा और गंगा ने उत्तर वाहिनी होते हुए काशी को स्पर्श किया. उन्होंने बताया कि जब शिव ने अपना त्रिशूल खींचकर माधवेश्वर महादेव के स्थान पर पहुंचे, तभी वहां मौजूद ऋषि-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शुलटंकेश्वर महादेव रखा, तभी से इस मंदिर का नाम शुलटंकेश्वर मन्दिर पड़ गया.
बाबा पूरी करते हैं हर भक्त की मनोकामना
मन्दिर के पुजारी ने बताया कि इसके पीछे धारणा यह थी कि जिस प्रकार यहां मां गंगा का कष्ट दूर हुआ, उसी प्रकार अन्य भक्तों का भी कष्ट दूर होगा. यही वजह है कि पूरे वर्ष यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. सभी भक्त अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए यहां आते हैं. सावन के महीने में तो यहां दूरदराज से भी भक्त आते हैं, लेकिन इस वर्ष मंदिर बन्द होने के कारण इक्का-दुक्का ही भक्त आ रहे हैं और दूर से दर्शन करके जा रहे हैं.