वाराणसी: 26 जुलाई को पूरा देश करगिल दिवस के रुप में खुशियां मनाता है. वहीं कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने घर का एक चिराग बुझता हुआ देखा था. 20 साल बाद भी वह मंजर शहीदों के परिजनों की आंखों के सामने है, जब उनका शरीर तिरंगे में लिपटकर घर लाया गया था. करगिल दिवस के दिन उन सभी शहीदों के परिवार शोक में डूबे हुये हैं, जिन्होंने मातृ-भूमि के लिये खुद को न्योछावर किया था.
20 वर्ष बाद भी दिलों में जिंदा हैं शहीद संजय सिंह यादव-
वाराणसी में रहने वाला शहीद संजय सिंह यादव का परिवार उस दिन को आज भी याद करते हुए सहम जाता है, जब खबर आई थी कि 1999 के करगिल के युद्ध में उन्होंने संजय को खो दिया. संजय को शहादत तो मिल गई पर पीछे छूट गई 19 साल की बीवी, ढाई साल का बेटा, एक भाई और परिवार के अन्य लोग. 20 साल बाद भी परिवार की यादों से संजय दूर नहीं गए. उनकी आंखों में आज भी उस दिन की स्मृतियां शेष हैं. जब उनकी बीवी से ईटीवी भारत ने बात करने की कोशिश की तो संजय की यादों ने उनकी आंखें नम कर दी और वह कुछ भी बोलने में सहज नहीं थीं. घर में आज भी संजय कुमार सिंह यादव की आर्मी यूनिफॉर्म की तस्वीरों को संजो कर रखा गया है और उसके साथ ही 26 जुलाई 1999 की वह यादें भी दिलों में कहीं दबी हुई हैं.
भले ही कई मुश्किलों के दौर से परिवार गुजरा है पर आज अगर कहीं भी हम अपने बड़े भाई का जिक्र करते हैं तो जितनी इज्जत और सम्मान पूरे परिवार को मिलता है उससे आंखें भर आती हैं. देश के बहुत वीर सपूतों ने उस युद्ध में अपनी जान गंवाई थी और उन सभी सपूतों को दिल से प्रणाम करते हैं कि उन्होंने देश को गौरवान्वित होने का मौका दिया है.
-शहीद संजय के भाई