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...यहां पुराने पीपल के पेड़ में कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच

जब भी आप कभी डरावनी फिल्म देखें या बुजुर्गों से कहानियां सुनें तो उसमें पीपल के पेड़ पर भूत का जिक्र जरुर होता है. आप इस बात को भले ही न मानते हों लेकिन आज हम आपको ऐसी जगह ले चलेंगे जहां वास्तव में पीपल के पेड़ पर भूतों को कैद किया जाता है. पढ़ें ये रिपोर्ट...

कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच
कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच
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Published : Sep 30, 2021, 9:50 PM IST

वाराणसी: भूत-प्रेतों को कैद करना या भटकती आत्माओं को वश में करना फिल्मों में तो आपने जरुर देखा होगा. अपनी दादी-नानी से पीपल के पेड़ पर भूत की कहानियां भी खूब सुनी होंगी, लेकिन अगर हम कहें कि ये कहानी नहीं बल्कि सच है तो क्या आप यकीन करेंगे. नहीं न लेकिन सच में ऐसा होता है. वाराणसी में एक ऐसी जगह है जहां प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद आत्माओं को कील गाड़ के या सिक्का बांध के पीपल के पेड़ में टांग दिया जाता है.

धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी को मोक्ष की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि यहां प्राण त्यागने वाले हर इन्सान को भगवन शंकर खुद कानों में तारक मंत्र देकर मोक्ष प्रदान करते हैं. मगर जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल मृत्यु पाते हैं उनके मोक्ष की कामना काशी के पिशाच मोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करके की जाती है. देश भर में सिर्फ काशी के ही अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर यह त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है. इसीलिये पितृपक्ष में यहां वर्षों पुराने पीपल के पेड़ में लोग सिक्का और कील भी गाड़ते हैं. ऐसा मानना है कि इससे भटकती आत्मा को शांति भी मिलती है और पिशाच योनि से आत्माओं को मुक्ति भी.

पुराने पीपल के पेड़ में कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच

लोकाचार संग आस्था

दअरसल पितृपक्ष में पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध करने के साथ ही यहां लोकाचार संग एक और परम्परा भी जुड़ी है. इसके पास में ही वर्षों पुराने पीपल के वृक्ष में यहां आने वाले कुछ श्रद्धालु सिक्का भी गाड़ते है. पिशाचमोचन तीर्थ पर श्राद्ध कराने वाले पुरोहित प्रदीप कुमार पांडेय बताते हैं कि पीपल के वर्षों पुराने पेड़ में सिक्का गाड़े जाने के पीछे लोगों की आस्था जुड़ी है. कुछ लोग मनोकामना के लिए सिक्का गाड़ते हैं, तो वहीं कुछ लोग बच्चों के लिए या कोई अप्राकृतिक मृत्यु को प्राप्त हो जाए उसके लिए भी इस पेड़ में सिक्का गाड़ा जाता है और मनोकामना पूरी होने पर उसे निकाल लेते हैं. इतना ही नहीं लोगों का यह भी मानना है कि अगर कोई प्रेत घर में है और उससे मुक्ति नहीं मिल रही तो यहां पीपल के पेड़ में सिक्का गाड़ने से उससे मुक्ति भी मिल जाती है.

कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच
कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच
पिशाच मोचन कुंड.
पिशाच मोचन कुंड.

इसे भी पढ़ें- यहां लगती है भूतों की अदालत और दी जाती है फांसी, जानिए क्या है हकीकत

एक दो नहीं हजारों सिक्के, तस्वीरें भी मौजूद

एक अन्य पुरोहित कृष्णकांत मिश्रा बताते हैं कि यह लोगों की आस्था है कि लोग यहां पीपल के पेड़ में सिक्का और कील आदि गाड़ते हैं. हालांकि पितृपक्ष में लोग यहां तर्पण आदि करने आते है क्योंकि यहां तर्पण करने के बाद ही वास्तविक मोक्ष की प्राप्ति होती है. काशी के इस पवित्र स्थान पर मौजूद इस पेड़ को पी साथियों के पेड़ के नाम से भी जाना जाता है. इस पुराने पीपल के पेड़ में एक दो नहीं बल्कि हजारों की संख्या में कील के सहारे सिक्कों को गाड़ा गया है, इतना ही नहीं अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों की तस्वीरें, उनके कपड़ों के साथ उनके पसंदीदा सामानों को भी इस पेड़ से बांधा जाता है. ताकि प्रेत इस पेड़ में ही कैद हो जाए और उसके जरिए मिलने वाली तमाम परेशानियां दूर हो सकें.

वाराणसी: भूत-प्रेतों को कैद करना या भटकती आत्माओं को वश में करना फिल्मों में तो आपने जरुर देखा होगा. अपनी दादी-नानी से पीपल के पेड़ पर भूत की कहानियां भी खूब सुनी होंगी, लेकिन अगर हम कहें कि ये कहानी नहीं बल्कि सच है तो क्या आप यकीन करेंगे. नहीं न लेकिन सच में ऐसा होता है. वाराणसी में एक ऐसी जगह है जहां प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद आत्माओं को कील गाड़ के या सिक्का बांध के पीपल के पेड़ में टांग दिया जाता है.

धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी को मोक्ष की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि यहां प्राण त्यागने वाले हर इन्सान को भगवन शंकर खुद कानों में तारक मंत्र देकर मोक्ष प्रदान करते हैं. मगर जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल मृत्यु पाते हैं उनके मोक्ष की कामना काशी के पिशाच मोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करके की जाती है. देश भर में सिर्फ काशी के ही अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर यह त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है. इसीलिये पितृपक्ष में यहां वर्षों पुराने पीपल के पेड़ में लोग सिक्का और कील भी गाड़ते हैं. ऐसा मानना है कि इससे भटकती आत्मा को शांति भी मिलती है और पिशाच योनि से आत्माओं को मुक्ति भी.

पुराने पीपल के पेड़ में कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच

लोकाचार संग आस्था

दअरसल पितृपक्ष में पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध करने के साथ ही यहां लोकाचार संग एक और परम्परा भी जुड़ी है. इसके पास में ही वर्षों पुराने पीपल के वृक्ष में यहां आने वाले कुछ श्रद्धालु सिक्का भी गाड़ते है. पिशाचमोचन तीर्थ पर श्राद्ध कराने वाले पुरोहित प्रदीप कुमार पांडेय बताते हैं कि पीपल के वर्षों पुराने पेड़ में सिक्का गाड़े जाने के पीछे लोगों की आस्था जुड़ी है. कुछ लोग मनोकामना के लिए सिक्का गाड़ते हैं, तो वहीं कुछ लोग बच्चों के लिए या कोई अप्राकृतिक मृत्यु को प्राप्त हो जाए उसके लिए भी इस पेड़ में सिक्का गाड़ा जाता है और मनोकामना पूरी होने पर उसे निकाल लेते हैं. इतना ही नहीं लोगों का यह भी मानना है कि अगर कोई प्रेत घर में है और उससे मुक्ति नहीं मिल रही तो यहां पीपल के पेड़ में सिक्का गाड़ने से उससे मुक्ति भी मिल जाती है.

कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच
कील ठोक के कैद किए जाते हैं पिशाच
पिशाच मोचन कुंड.
पिशाच मोचन कुंड.

इसे भी पढ़ें- यहां लगती है भूतों की अदालत और दी जाती है फांसी, जानिए क्या है हकीकत

एक दो नहीं हजारों सिक्के, तस्वीरें भी मौजूद

एक अन्य पुरोहित कृष्णकांत मिश्रा बताते हैं कि यह लोगों की आस्था है कि लोग यहां पीपल के पेड़ में सिक्का और कील आदि गाड़ते हैं. हालांकि पितृपक्ष में लोग यहां तर्पण आदि करने आते है क्योंकि यहां तर्पण करने के बाद ही वास्तविक मोक्ष की प्राप्ति होती है. काशी के इस पवित्र स्थान पर मौजूद इस पेड़ को पी साथियों के पेड़ के नाम से भी जाना जाता है. इस पुराने पीपल के पेड़ में एक दो नहीं बल्कि हजारों की संख्या में कील के सहारे सिक्कों को गाड़ा गया है, इतना ही नहीं अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों की तस्वीरें, उनके कपड़ों के साथ उनके पसंदीदा सामानों को भी इस पेड़ से बांधा जाता है. ताकि प्रेत इस पेड़ में ही कैद हो जाए और उसके जरिए मिलने वाली तमाम परेशानियां दूर हो सकें.

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