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वाराणसी: मां लक्ष्मी की आराधना के साथ शुरू हुआ सोरहिया का प्रचीन मेला - महालक्ष्मी की आराधना

उत्तर प्रदेश के धर्म की नगरी काशी में महालक्ष्मी की आराधना के निर्मित भाद्र शुक्ल अष्टमी से अश्विनी कृष्ण अष्टमी तक चलने वाला व्रत सोरहिया मेले का श्री गणेश हो गया. महिलाएं पुरुष लक्ष्मी कुंड स्थित महालक्ष्मी को साक्षी मानकर 16 गांठ का पीला धागा बाह पर बांधकर 16 दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हैं.

सोरहिया का प्रचीन मेला शुरु.
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Published : Sep 6, 2019, 2:57 PM IST

वाराणसी: लक्ष्मी कुंड स्थित मां लक्ष्मी के मंदिर में सुबह से ही महिलाएं आ जाती है. मां के दर्शन पाकर मिट्टी की मां लक्ष्मी की प्रतिमा को मां का दर्शन कराती है. लक्ष्मी कुंड पर कथा सुनती है. पूरी विधि-विधान से पूजन पाठ करती है. उसके बाद मां लक्ष्मी की आरती कर अपने अनुष्ठान की शुरुआत करती है.

सोरहिया का प्रचीन मेला शुरु.
पूजन की विधि-व्रत पर्व के दौरान माता रानी के मंदिर की 16 बार परिक्रमा की जाती है. साथ ही दर्शन पूजन और 16 प्रकार के फल, मिष्ठान, पान, सुपारी, माला, फूल, नारियल, मेवा, श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, आभूषण आदि अपने सामर्थ्य अनुसार विधान करती है. इसमें मां की मिट्टी की मूर्ति की 16 दिनों तक पूजा किया जाता है.क्या है मान्यताएं-वृत्त से जुड़ी कथा पुराणों के अनुसार प्राचीन लक्ष्मी कुंड की स्थापना अगस्त ऋषि ने की थी. व्रत से जुड़ी मान्यता है कि महाराजा जीतू की कोई संतान नहीं थी. महाराजा ने मां लक्ष्मी का ध्यान किया और मां लक्ष्मी ने सपने में दर्शन देकर 16 दिनों के कठिन व्रत का अनुष्ठान करने को कहा. महाराज जी ने ठीक वैसे ही 16 दिनों तक व्रत रखा और महालक्ष्मी की पूजा किया. कुछ दिनों बाद उन्हें संतान के साथ समृद्धि और ईश्वर की भी प्राप्ति हुई. तभी से यह परंपरा का नाम सोरहिया पड़ा.

इसे भी पढ़ें-काशी में उतरा ब्रजधाम, राधा अष्टमी महोत्सव की हुई शुरुआत

हम लोग सुबह मां लक्ष्मी का दर्शन मां छोटी लक्ष्मी का दर्शन मां काली का दर्शन सतनारायण भगवान का दर्शन के बाद मां की मिट्टी की प्रतिमा को लेकर घाट पर कथा सुना जाता है . पूरे विधि विधान से पूजा किया जाता है. उसके बाद मां लक्ष्मी की प्रतिमा को लेकर घर जा जाता है. वहां पर उनकी स्थापना की जाती है या क्रम प्रतिदिन 16 दिनों तक किया जाता है, जिससे मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
-पूजा पांडेय, श्रद्धालु

वाराणसी: लक्ष्मी कुंड स्थित मां लक्ष्मी के मंदिर में सुबह से ही महिलाएं आ जाती है. मां के दर्शन पाकर मिट्टी की मां लक्ष्मी की प्रतिमा को मां का दर्शन कराती है. लक्ष्मी कुंड पर कथा सुनती है. पूरी विधि-विधान से पूजन पाठ करती है. उसके बाद मां लक्ष्मी की आरती कर अपने अनुष्ठान की शुरुआत करती है.

सोरहिया का प्रचीन मेला शुरु.
पूजन की विधि-व्रत पर्व के दौरान माता रानी के मंदिर की 16 बार परिक्रमा की जाती है. साथ ही दर्शन पूजन और 16 प्रकार के फल, मिष्ठान, पान, सुपारी, माला, फूल, नारियल, मेवा, श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, आभूषण आदि अपने सामर्थ्य अनुसार विधान करती है. इसमें मां की मिट्टी की मूर्ति की 16 दिनों तक पूजा किया जाता है.क्या है मान्यताएं-वृत्त से जुड़ी कथा पुराणों के अनुसार प्राचीन लक्ष्मी कुंड की स्थापना अगस्त ऋषि ने की थी. व्रत से जुड़ी मान्यता है कि महाराजा जीतू की कोई संतान नहीं थी. महाराजा ने मां लक्ष्मी का ध्यान किया और मां लक्ष्मी ने सपने में दर्शन देकर 16 दिनों के कठिन व्रत का अनुष्ठान करने को कहा. महाराज जी ने ठीक वैसे ही 16 दिनों तक व्रत रखा और महालक्ष्मी की पूजा किया. कुछ दिनों बाद उन्हें संतान के साथ समृद्धि और ईश्वर की भी प्राप्ति हुई. तभी से यह परंपरा का नाम सोरहिया पड़ा.

इसे भी पढ़ें-काशी में उतरा ब्रजधाम, राधा अष्टमी महोत्सव की हुई शुरुआत

हम लोग सुबह मां लक्ष्मी का दर्शन मां छोटी लक्ष्मी का दर्शन मां काली का दर्शन सतनारायण भगवान का दर्शन के बाद मां की मिट्टी की प्रतिमा को लेकर घाट पर कथा सुना जाता है . पूरे विधि विधान से पूजा किया जाता है. उसके बाद मां लक्ष्मी की प्रतिमा को लेकर घर जा जाता है. वहां पर उनकी स्थापना की जाती है या क्रम प्रतिदिन 16 दिनों तक किया जाता है, जिससे मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
-पूजा पांडेय, श्रद्धालु

Intro:धर्म की नगरी काशी में महालक्ष्मी की आराधना के निर्मित भाद्र शुक्ल अष्टमी से अश्विनी कृष्ण अष्टमी तक चलने वाला व्रत सोरहिया मेले का श्रीगणेश हो गया। महिलाए पुरुष लक्ष्मी कुंड स्थित महालक्ष्मी को साक्षी मानकर 16 गांठ का पीला धागा बाह पर बांधकर 16 दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हैं।

लक्ष्मी कुंड स्थित मां लक्ष्मी के मंदिर में सुबह से ही महिलाएं मां के दर्शन पाकर मिट्टी की मां लक्ष्मी की प्रतिमा को मां का दर्शन कराने के बाद लक्ष्मी कुंड पर कथा सुना पूरी विधि विधान से पूजन पाठ किया उसके बाद मां लक्ष्मी की आरती कर अपने अनुष्ठान का शुरुआत किया गया यह अनुष्ठान 16 दिनों तक चलता है।


Body:पूजन की विधि

व्रत पर्व के दौरान माता रानी के मंदिर की 16 बार परिक्रमा के साथ दर्शन पूजन और 16 प्रकार के फल, मिष्ठान, पान, सुपारी, माला,फूल,नारियल, मेवा,श्रृंगार सामग्री,वस्त्र ,आभूषण आदि अपने सामर्थ्य अनुसार करने का विधान है इसमें मां की मिट्टी की मूर्ति क्रेकर 16 दिनों तक पूजा किया जाता है।




क्या है मान्यताएं

वृत्त से जुड़ी कथा पुराणों के अनुसार प्राचीन लक्ष्मी कुंड की स्थापना अगस्त ऋषि ने की थी व्रत से जुड़ी मान्यता है कि महाराजा जीतू की कोई संतान नहीं थी महाराजा ने मां लक्ष्मी का ध्यान किया और मां लक्ष्मी ने सपने में दर्शन देकर 16 दिनों के कठिन व्रत का अनुष्ठान करने को कहा महाराज जी तूने ठीक वैसे ही 16 दिनों तक व्रत रखा और महालक्ष्मी की पूजा की कुछ दिनों बाद उन्हें संतान के साथ समृद्धि और ईश्वर की भी प्राप्ति हुई तभी से यह परंपरा का नाम सोरहिया पड़ा।


Conclusion:श्रद्धालु पूजा पांडे ने बताया कि हम लोग सुबह मां लक्ष्मी का दर्शन मां छोटी लक्ष्मी का दर्शन मां काली का दर्शन सतनारायण भगवान का दर्शन के बाद मां की मिट्टी की प्रतिमा को लेकर घाट पर कथा सुना जाता है पूरे विधि विधान से पूजा किया जाता है उसके बाद मां लक्ष्मी की प्रतिमा को लेकर घर जा जाता है वहां पर उनकी स्थापना की जाती है या क्रम प्रतिदिन 16 दिनों तक किया जाता है जिससे मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सुख संपत्ति आती है।

बाईट:-- पूजा पांडेय, श्रद्धालु

अशुतोष उपध्याय
9005099684
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