वाराणसी: वर्ष 2020 में बनारस की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर लोकगीत शैली बिरहा को दूसरा झटका लगा है. इसी वर्ष जनवरी में प्रख्यात लोकगीत गायक हीरालाल यादव के बाद इसी शैली के दूसरे पुरोधा पारसनाथ यादव का भी निधन हो गया. उन्होंने बीती 3 जुलाई की रात 86 वर्ष की उम्र में चौबेपुर स्थित अपने आवास पर रात 8 बजे अंतिम सांस ली. उनका अंतिम संस्कार इलाके के गौरा घाट पर सम्पन्न हुआ.
लोकगीत शैली बिरहा में थे माहिर
पारसनाथ यादव का जन्म 1934 में इलाके के बड़े किसान वीरे यादव और रूपकली देवी के घर हुआ था. बचपन से ही पढ़ाई और खेती किसानी के अलावा, उनकी रुचि गीत-संगीत में बढ़ती चली गई. इसी के चलते उन्होंने लोकगीत शैली बिरहा में महारथ हासिल की. इलाके में होने वाले बिरहा मुकाबलों में वे बढ़-चढ़कर भाग लेते थे, जिससे उनकी ख्याति लगातार बढ़ती गई.
आकाशवाणी के ए-ग्रेड कलाकारों में थे शामिल
पारसनाथ यादव ने सबसे पहले बिरहा शैली में फिल्मी धुनों का प्रयोग करना शुरू किया था. इससे उनके चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई. उन्होंने अपनी बिरहा गायकी का परचम न केवल बनारस बल्कि, कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई और मध्यप्रदेश में जाकर भी फहराया. वे आकाशवाणी और दूरदर्शन पर 'ए ग्रेड' के कलाकार के रूप में रजिस्टर हुए.
किसान फाउंडेशन ने दी श्रद्धांजलि
पारसनाथ यादव के निधन पर किसान फाउंडेशन ने शोक व्यक्त करते हुए, इसे लोकगीत परम्परा की अपूरणीय क्षति बताया है. किसान फाउंडेशन की श्रद्धांजलि सभा में लोकगीत गायक जवाहरलाल यादव, डॉ. जयशंकर 'जय', शोभनाथ, जगदीश और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सहित कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए.