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काशी में पीएम मोदी का ये तोहफा एक साल से वीरान, बंद दुकानों को मालिक का इंतजार - वाराणसी की खबरें

काशी में पीएम मोदी का ये तोहफा एक साल से वीरान पड़ा है. यहां 170 से ज्यादा दुकानें अभी भी वीरान पड़ी हैं. आखिर इसकी वजह क्या है चलिए जानते हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 20, 2023, 9:52 AM IST

काशी के दुकानदारों ने बयां की पीड़ा.

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी बनारस आते हैं तो अपने संसदीय क्षेत्र को लाखों करोड़ों का तोहफा देते हैं. इस बार भी पीएम मोदी ने 19000 करोड़ रुपए से ज्यादा की योजनाओं की सौगात दी. इसके पहले भी प्रधानमंत्री ने 2022 में भी 7 जुलाई को बनारस को हजारों करोड़ों का तोहफा दिया था. इसमें एक तोहफा था दशाश्वमेध भवन जिसे उस वक्त दशाश्वमेध प्लाजा के नाम से 2022 में ही बनकर तैयार हुए इस हाईटेक प्लाजा में लगभग 150 से ज्यादा दुकानों को तैयार करके इस एरिया के पटरी व्यवसाईयों और सब्जी मंडी के दुकानदारों को यहां पर विस्थपित करने की प्लानिंग की गई थी. लंबे चौड़े प्रोजेक्ट के साथ बहुत कुछ इस प्लाजा में जोड़ा गया, लेकिन कुल मिलाकर अब तक इस प्लाजा में बनी सैकड़ो दुकानों में से सिर्फ 20 दुकानों के ही शटर खुला पाए हैं. हालात यह है कि अब भी लगभग 170 से ज्यादा दुकान अपने मालिक का इंतजार कर रही है और इंतजार है इस प्लाजा के गुलजार होने का. जानिए आखिर क्यों हो रहा है ऐसा और क्यों प्रधानमंत्री मोदी के इस बड़े तोहफे को खरीदार ही नहीं मिल रहे हैं?

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मार्केट की ज्यादातर दुकानों के शटर अभी तक उठे ही नहीं है.



दरअसल, वाराणसी के दशाश्वमेध एरिया में बाजार को हाईटेक करने के बाद यहां फेरी पटरी व्यवसाइयों के साथ ही चलने वाली सब्जी मंडी को इस प्लाजा में शिफ्ट करने की कवायत शुरू हुई. 28.50 करोड रुपए की लागत से 3082 वर्ग फीट में तैयार किए गए इस कमर्शियल प्रोजेक्ट को बनारस के एक बड़े प्रोजेक्ट के तौर पर बनाया गया. 196 दुकानों के साथ फूड कोट और दो ओपेन रेस्टोरेंट की सौगात प्रधानमंत्री ने 7 जुलाई 2022 को दी थी. पीएम मोदी के हाथों उद्घाटन के बाद इस प्रोजेक्ट की सफलता की उम्मीद भी जताई जा रही थी यह उम्मीद थी कि दिल्ली के पालिका बाजार की तर्ज पर यह पूरा बाजार अपने आप में एक नया कीर्तिमान रचेगा, लेकिन आज लगभग 1 वर्ष से ज्यादा बीत चुके हैं. इसका उद्घाटन हुए और अब तक इसमें मौजूद दुकानों के शटर ही नहीं खुल पाए हैं. जिसके बाद इस प्रोजेक्ट के फेल होने का खतरा पूरी तरह से मंडराने लगा है.

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काशी में इसी दशाश्वमेघ मार्केट में बनाई गईं हैं 150 दुकानें.
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है की यहां पर दुकान लेने वाले अधिकांश लोग गरीबी रेखा के नीचे या फिर सब्जी बेचने वालों से लेकर ठेला खोमचा लगाने वाले लोग हैं. कुछ ही दुकानदार ऐसे हैं जो आर्थिक रूप से मजबूत है जो दुकानों की रजिस्ट्री की प्रक्रिया को पूरा करवा रहे हैं. वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग का कहना है कि अब तक 20 दुकानों पर कब्जा देने की कार्रवाई पूरी की जा चुकी है, जबकि 100 दुकानों के आवंटन की प्रक्रिया पूरी हुई है. आवंटन प्रक्रिया में शर्त है कि 1 वर्ष के अंदर दुकान की धनराशि का भुगतान करने के बाद ही उस पर कब्जा दिया जाएगा और रजिस्ट्री पूरी होगी. ऐसा काम जिन लोगों ने किया है उन्हें कब्जा देकर रजिस्ट्री करवा दी गई है, लेकिन अभी भी 100 दुकान ऐसी हैं जिन पर ना कब्जा दिया जा सका है और ना ही उनकी रजिस्ट्री की प्रक्रिया आगे बढ़ी है. इसे लेकर प्रयास किया जा रहा है और जल्द ही इसमें सफलता भी मिलेगी ऐसी उम्मीद खुद विकास प्राधिकरण जाता रहा है.

हालांकि, जब इस बारे में यहां के दुकानदारों से बातचीत की गई तो उन्होंने इस पूरे मामले की सच्चाई बताई दुकानदारों का कहना था कि यहां पर दुकानों का रेट 10 लाख रुपए से लेकर 25 लाख रुपए के बीच रखा गया है. अलग-अलग साइज की दुकानों के अलग-अलग रेट है. यह पहले डिसाइड हुआ था कि 1990 में लेडीज मार्केट को तोड़े जाने के बाद 10 महीने के अंदर ही यहां दूसरा मार्केट बनेगा. उस वक्त मुलायम सिंह का शासन उत्तर प्रदेश में हुआ करता था, लेकिन 10 महीने बीत गए और यहां पर लगभग 200 दुकानदारों को ठिकाना ही नहीं मिला. 2023 होने पर उम्मीद जगी. 2022 में यह बनकर तैयार हुआ तो दुकानदारों को लगा कि अब उनके बेरोजगारी का दौर खत्म होगा और सड़क से हटकर वह बड़े परिसर में शिफ्ट होंगे.

उस वक्त यह डिसाइड हुआ था कि पहले जिन दुकानदारों को उजाड़ा गया है, उन्हें दुकान दी जाएगी. इस शर्त के साथ कि उन्हें कुछ धनराशि आवंटन के टाइम देकर दुकान का कब्जा दे दिया जाएगा और फिर किस्त में धीरे-धीरे पैसे दिए जाएंगे, लेकिन अचानक से प्लान में चेंज करके 1 साल के अंदर पूरी धनराशि देने पर ही कब्जा दिए जाने की बात कही जाने लगी. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर रहने वाले लोग अधिकांश छोटे वर्ग से हैं. उनको इतना बड़ा लोन भी नहीं मिल सकता, क्योंकि उनके पास दस्तावेज है ही नहीं जो बैंक मांग रहे हैं. ऐसी स्थिति में लोन न मिलने के कारण भी दुकान खुल नहीं पा रही है. जिनको दुकानों का आवंटन हुआ है उनके पास पैसे ही नहीं है कि वह दुकान ले पाए, जिसकी वजह से 196 में से 20 दुकानों को ही कब्जा मिला है और यहां दुकान खुल पाई हैं जबकि अभी भी 176 दुकानों के शटर बंद है.

आगे कैसे क्या होगा यह नहीं पता लेकिन ऊपर के फ्लोर में मुंबई के एक बड़े रेस्टोरेंट चैन को ओपन फूड रेस्टोरेंट और एक अन्य रेस्टोरेंट चलाने का काम दे दिया गया है, जबकि फर्स्ट फ्लोर और ग्राउंड फ्लोर पर अभी भी अधिकांश दुकाने खाली पड़ी है. यह दुकान कब खुल पाएंगे या यहां के व्यापारियों को भी नहीं पता, लेकिन यह तय है पीएम मोदी का इतना बड़ा प्रोजेक्ट और उनके द्वारा दिया गया यह बड़ा तोहफा बनारस के सबसे व्यस्त और अच्छे इलाके में होने के बाद भी सफल होता नहीं दिखाई दे रहा है.

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काशी के दुकानदारों ने बयां की पीड़ा.

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी बनारस आते हैं तो अपने संसदीय क्षेत्र को लाखों करोड़ों का तोहफा देते हैं. इस बार भी पीएम मोदी ने 19000 करोड़ रुपए से ज्यादा की योजनाओं की सौगात दी. इसके पहले भी प्रधानमंत्री ने 2022 में भी 7 जुलाई को बनारस को हजारों करोड़ों का तोहफा दिया था. इसमें एक तोहफा था दशाश्वमेध भवन जिसे उस वक्त दशाश्वमेध प्लाजा के नाम से 2022 में ही बनकर तैयार हुए इस हाईटेक प्लाजा में लगभग 150 से ज्यादा दुकानों को तैयार करके इस एरिया के पटरी व्यवसाईयों और सब्जी मंडी के दुकानदारों को यहां पर विस्थपित करने की प्लानिंग की गई थी. लंबे चौड़े प्रोजेक्ट के साथ बहुत कुछ इस प्लाजा में जोड़ा गया, लेकिन कुल मिलाकर अब तक इस प्लाजा में बनी सैकड़ो दुकानों में से सिर्फ 20 दुकानों के ही शटर खुला पाए हैं. हालात यह है कि अब भी लगभग 170 से ज्यादा दुकान अपने मालिक का इंतजार कर रही है और इंतजार है इस प्लाजा के गुलजार होने का. जानिए आखिर क्यों हो रहा है ऐसा और क्यों प्रधानमंत्री मोदी के इस बड़े तोहफे को खरीदार ही नहीं मिल रहे हैं?

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मार्केट की ज्यादातर दुकानों के शटर अभी तक उठे ही नहीं है.



दरअसल, वाराणसी के दशाश्वमेध एरिया में बाजार को हाईटेक करने के बाद यहां फेरी पटरी व्यवसाइयों के साथ ही चलने वाली सब्जी मंडी को इस प्लाजा में शिफ्ट करने की कवायत शुरू हुई. 28.50 करोड रुपए की लागत से 3082 वर्ग फीट में तैयार किए गए इस कमर्शियल प्रोजेक्ट को बनारस के एक बड़े प्रोजेक्ट के तौर पर बनाया गया. 196 दुकानों के साथ फूड कोट और दो ओपेन रेस्टोरेंट की सौगात प्रधानमंत्री ने 7 जुलाई 2022 को दी थी. पीएम मोदी के हाथों उद्घाटन के बाद इस प्रोजेक्ट की सफलता की उम्मीद भी जताई जा रही थी यह उम्मीद थी कि दिल्ली के पालिका बाजार की तर्ज पर यह पूरा बाजार अपने आप में एक नया कीर्तिमान रचेगा, लेकिन आज लगभग 1 वर्ष से ज्यादा बीत चुके हैं. इसका उद्घाटन हुए और अब तक इसमें मौजूद दुकानों के शटर ही नहीं खुल पाए हैं. जिसके बाद इस प्रोजेक्ट के फेल होने का खतरा पूरी तरह से मंडराने लगा है.

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काशी में इसी दशाश्वमेघ मार्केट में बनाई गईं हैं 150 दुकानें.
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है की यहां पर दुकान लेने वाले अधिकांश लोग गरीबी रेखा के नीचे या फिर सब्जी बेचने वालों से लेकर ठेला खोमचा लगाने वाले लोग हैं. कुछ ही दुकानदार ऐसे हैं जो आर्थिक रूप से मजबूत है जो दुकानों की रजिस्ट्री की प्रक्रिया को पूरा करवा रहे हैं. वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग का कहना है कि अब तक 20 दुकानों पर कब्जा देने की कार्रवाई पूरी की जा चुकी है, जबकि 100 दुकानों के आवंटन की प्रक्रिया पूरी हुई है. आवंटन प्रक्रिया में शर्त है कि 1 वर्ष के अंदर दुकान की धनराशि का भुगतान करने के बाद ही उस पर कब्जा दिया जाएगा और रजिस्ट्री पूरी होगी. ऐसा काम जिन लोगों ने किया है उन्हें कब्जा देकर रजिस्ट्री करवा दी गई है, लेकिन अभी भी 100 दुकान ऐसी हैं जिन पर ना कब्जा दिया जा सका है और ना ही उनकी रजिस्ट्री की प्रक्रिया आगे बढ़ी है. इसे लेकर प्रयास किया जा रहा है और जल्द ही इसमें सफलता भी मिलेगी ऐसी उम्मीद खुद विकास प्राधिकरण जाता रहा है.

हालांकि, जब इस बारे में यहां के दुकानदारों से बातचीत की गई तो उन्होंने इस पूरे मामले की सच्चाई बताई दुकानदारों का कहना था कि यहां पर दुकानों का रेट 10 लाख रुपए से लेकर 25 लाख रुपए के बीच रखा गया है. अलग-अलग साइज की दुकानों के अलग-अलग रेट है. यह पहले डिसाइड हुआ था कि 1990 में लेडीज मार्केट को तोड़े जाने के बाद 10 महीने के अंदर ही यहां दूसरा मार्केट बनेगा. उस वक्त मुलायम सिंह का शासन उत्तर प्रदेश में हुआ करता था, लेकिन 10 महीने बीत गए और यहां पर लगभग 200 दुकानदारों को ठिकाना ही नहीं मिला. 2023 होने पर उम्मीद जगी. 2022 में यह बनकर तैयार हुआ तो दुकानदारों को लगा कि अब उनके बेरोजगारी का दौर खत्म होगा और सड़क से हटकर वह बड़े परिसर में शिफ्ट होंगे.

उस वक्त यह डिसाइड हुआ था कि पहले जिन दुकानदारों को उजाड़ा गया है, उन्हें दुकान दी जाएगी. इस शर्त के साथ कि उन्हें कुछ धनराशि आवंटन के टाइम देकर दुकान का कब्जा दे दिया जाएगा और फिर किस्त में धीरे-धीरे पैसे दिए जाएंगे, लेकिन अचानक से प्लान में चेंज करके 1 साल के अंदर पूरी धनराशि देने पर ही कब्जा दिए जाने की बात कही जाने लगी. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर रहने वाले लोग अधिकांश छोटे वर्ग से हैं. उनको इतना बड़ा लोन भी नहीं मिल सकता, क्योंकि उनके पास दस्तावेज है ही नहीं जो बैंक मांग रहे हैं. ऐसी स्थिति में लोन न मिलने के कारण भी दुकान खुल नहीं पा रही है. जिनको दुकानों का आवंटन हुआ है उनके पास पैसे ही नहीं है कि वह दुकान ले पाए, जिसकी वजह से 196 में से 20 दुकानों को ही कब्जा मिला है और यहां दुकान खुल पाई हैं जबकि अभी भी 176 दुकानों के शटर बंद है.

आगे कैसे क्या होगा यह नहीं पता लेकिन ऊपर के फ्लोर में मुंबई के एक बड़े रेस्टोरेंट चैन को ओपन फूड रेस्टोरेंट और एक अन्य रेस्टोरेंट चलाने का काम दे दिया गया है, जबकि फर्स्ट फ्लोर और ग्राउंड फ्लोर पर अभी भी अधिकांश दुकाने खाली पड़ी है. यह दुकान कब खुल पाएंगे या यहां के व्यापारियों को भी नहीं पता, लेकिन यह तय है पीएम मोदी का इतना बड़ा प्रोजेक्ट और उनके द्वारा दिया गया यह बड़ा तोहफा बनारस के सबसे व्यस्त और अच्छे इलाके में होने के बाद भी सफल होता नहीं दिखाई दे रहा है.

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