ETV Bharat / state

कबाड़ से जुगाड़ कर बनाई स्क्रैपशाला, लाखों कमा रही है काशी की शिखा - स्क्रैपशाला वाराणसी

उत्तर प्रदेश के वाराणसी की रहने वाली शिखा शाह ने घर में बिखरे कबाड़ से स्क्रैपशाला की शुरुआत की. इसके जरिए शिखा आज लाखों रुपये कमा रही हैं. उनके बनाए सामान की काशी ही नहीं बल्कि अन्य शहरों में भी डिमांड बढ़ने लगी है.

कबाड़ से जुगाड़ करके लाखों कमा रही है काशी की यह बेटी.
author img

By

Published : Aug 10, 2019, 2:50 PM IST

वाराणसी: आपने सुना होगा या देखा होगा कि आज की युवा पीढ़ी लाखों के सैलरी पैकेज को छोड़कर समाज को बदलने में लग गई हो. अगर नहीं तो मिलिए शिखा शाह से, बनारस की रहने वाली शिखा ने घर में बिखरे कबाड़ को इकट्ठा करके उससे घर को सजाने का सामान बनाना शुरू कर दिया. इसके जरिए शिखा आज लाखों रुपए कमा रही हैं.

कबाड़ से जुगाड़ करके लाखों कमा रही है काशी की यह बेटी.

जानिए कैसे हुई स्क्रैपशाला की शुरुआत

बनारस की रहने वाली शिखा ने स्कूलिंग तो वाराणसी से ही की लेकिन हायर एजुकेशन के लिए दिल्ली गई जहां से उन्होंने एनवायरमेंटल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इस कोर्स के बाद उन्हें रिलायंस फाउंडेशन में नौकरी मिली लेकिन शिखा के अंदर हमेशा से ही समाज के लिए कुछ करने की चाहत थी, इसी दौरान उन्हें बनारस आने का मौका मिला. जब वह अपने शहर वापस आयी तो उन्हें लगा कि शहर को स्वच्छ करना भी आम लोगों की ही जिम्मेदारी है लेकिन उसके साथ व्यवसाय या नौकरी करना जरूरी है. तब उन्होंने घर में बिखरे कबाड़ को स्क्रैपशाला की शुरुआत के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. घर में पड़े सामाम को शिखा ने री डिजाइन किया और उसे अपने दोस्तों और परिवार में देना शुरू किया.

जब हुनर को मिली पहचान

शिखा के द्वारा री डिजाइन किए गए सामान की सराहना होने लगी तो उन्होंने लोगों के घर से शीशे के बोतल,खराब लकड़ियां,टूटे चम्मच,केतली और इलेक्ट्रॉनिक सामान जुटाने शुरू कर के इसको भी डिजायन करना शुरू कर दिया. शिखा ने इसके लिए एक टीम बनाकर शुरुआत की जिसमें पेंटर,कारपेंटर और काशी की महिलाओं को भी जोड़ा गया. इन सभी लोगों के साथ मिलकर शुरू हुई स्क्रैपशाला से आज लाखों रुपये कमाए जा रहे हैं. इस स्क्रैपशाला का सामान कई बड़े रेस्टोरेंट और कॉरपोरेट ऑफिस में डेकोरेशन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. सिर्फ काशी ही नहीं बल्कि अन्य शहरों में भी इस तरह के सामानों की डिमांड बढ़ने लगी है.

जिस कबाड़ को हम फेंक देते हैं वह घरों की शोभा बढ़ा सकता है. जब हम प्रकृति से चीजें ले सकते हैं तो उनको वापस से इस्तेमाल करके, प्रकृति को हानि न पहुंचा कर उसे यह तोहफा भी दे सकते हैं और साथ ही उन चीजों का इस्तेमाल करके खूबसूरत नए नायाब तोहफे बनाकर अपने चाहने वालों को भी दिए जा सकते हैं.

- शिखा शाह, ओनर, स्क्रैपशाल

वाराणसी: आपने सुना होगा या देखा होगा कि आज की युवा पीढ़ी लाखों के सैलरी पैकेज को छोड़कर समाज को बदलने में लग गई हो. अगर नहीं तो मिलिए शिखा शाह से, बनारस की रहने वाली शिखा ने घर में बिखरे कबाड़ को इकट्ठा करके उससे घर को सजाने का सामान बनाना शुरू कर दिया. इसके जरिए शिखा आज लाखों रुपए कमा रही हैं.

कबाड़ से जुगाड़ करके लाखों कमा रही है काशी की यह बेटी.

जानिए कैसे हुई स्क्रैपशाला की शुरुआत

बनारस की रहने वाली शिखा ने स्कूलिंग तो वाराणसी से ही की लेकिन हायर एजुकेशन के लिए दिल्ली गई जहां से उन्होंने एनवायरमेंटल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इस कोर्स के बाद उन्हें रिलायंस फाउंडेशन में नौकरी मिली लेकिन शिखा के अंदर हमेशा से ही समाज के लिए कुछ करने की चाहत थी, इसी दौरान उन्हें बनारस आने का मौका मिला. जब वह अपने शहर वापस आयी तो उन्हें लगा कि शहर को स्वच्छ करना भी आम लोगों की ही जिम्मेदारी है लेकिन उसके साथ व्यवसाय या नौकरी करना जरूरी है. तब उन्होंने घर में बिखरे कबाड़ को स्क्रैपशाला की शुरुआत के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. घर में पड़े सामाम को शिखा ने री डिजाइन किया और उसे अपने दोस्तों और परिवार में देना शुरू किया.

जब हुनर को मिली पहचान

शिखा के द्वारा री डिजाइन किए गए सामान की सराहना होने लगी तो उन्होंने लोगों के घर से शीशे के बोतल,खराब लकड़ियां,टूटे चम्मच,केतली और इलेक्ट्रॉनिक सामान जुटाने शुरू कर के इसको भी डिजायन करना शुरू कर दिया. शिखा ने इसके लिए एक टीम बनाकर शुरुआत की जिसमें पेंटर,कारपेंटर और काशी की महिलाओं को भी जोड़ा गया. इन सभी लोगों के साथ मिलकर शुरू हुई स्क्रैपशाला से आज लाखों रुपये कमाए जा रहे हैं. इस स्क्रैपशाला का सामान कई बड़े रेस्टोरेंट और कॉरपोरेट ऑफिस में डेकोरेशन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. सिर्फ काशी ही नहीं बल्कि अन्य शहरों में भी इस तरह के सामानों की डिमांड बढ़ने लगी है.

जिस कबाड़ को हम फेंक देते हैं वह घरों की शोभा बढ़ा सकता है. जब हम प्रकृति से चीजें ले सकते हैं तो उनको वापस से इस्तेमाल करके, प्रकृति को हानि न पहुंचा कर उसे यह तोहफा भी दे सकते हैं और साथ ही उन चीजों का इस्तेमाल करके खूबसूरत नए नायाब तोहफे बनाकर अपने चाहने वालों को भी दिए जा सकते हैं.

- शिखा शाह, ओनर, स्क्रैपशाल

Intro:वाराणसी। आपने कभी सुना होगा या देखा होगा कि आज की युवा पीढ़ी लाखों की सैलरी पैकेज छोड़ समाज को बदलने में लग गई हो अगर नहीं तो देखिए कि बनारस की बेटी ने गंगा और काशी की सड़कों को कबाड़ मुक्त और स्वच्छ रखने के लिए ऐसा ही एक रिस्क ले लिया है आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस खबर को आप रद्दी समझकर फेंक देते हैं उसी का वार्षिक आशिकी यह बिटिया लाखों रुपए कमा रही है


Body:VO1: मिलिए शिखा शाह से, बनारस की रहने वाली शिखा ने स्कूलिंग तो वाराणसी से ही की लेकिन हायर एजुकेशन के लिए दिल्ली गई जहां से उन्होंने एनवायरमेंटल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इस कोर्स के बाद उन्हें रिलायंस फाउंडेशन में नौकरी मिली लेकिन बनारस की बेटी के अंदर हमेशा से ही समाज के लिए कुछ करने की चाहत थी और इसी दौरान उन्हें बनारस आने का मौका मिला। जब वह अपने शहर वापस आयी तो उन्हें लगा कि शहर को स्वच्छ करना भी आम लोगों की ही जिम्मेदारी है लेकिन उसके साथ व्यवसाय या नौकरी करना जरूरी है। तो उन्होंने घर में बिखरे कबाड़ को स्क्रैपशाला की शुरुआत के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। घर में पड़े इस कबाड़ को री डिजाइन किया और उसे अपने दोस्तों और परिवार में देना शुरू किया। जब उनकी सराहना होने लगी तो उन्होंने लोगों के घर से शीशे के बोतल खराब लकड़ियां टूटे चम्मच केतली और इलेक्ट्रॉनिक सामान जुटाने शुरू कर दिए और इसको भी डिजाइन करना शुरू कर दिया। इस काम को अकेले नहीं बल्कि कुछ लोगों की एक टीम बनाकर भी शुरुआत की गई जिसमें कुछ पेंटर कारपेंटर और काशी की महिलाओं को जोड़ा गया। इन सभी लोगों के साथ मिलकर शुरू हुआ स्क्रैपशाला जो आज लाखों रुपए भी कमा रहा है और इसके साथ ही कई बड़े रेस्टोरेंट और कॉरपोरेट ऑफिस में यहां का सामान डेकोरेशन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। सिर्फ काशी ही नहीं बल्कि अन्य शहरों में भी इस तरह के सामानों की डिमांड बढ़ने लगी है और इसीलिए स्क्रैपशाला का नाम अब बच्चे बच्चे की सुनाई दे रहा है।

बाइट: शिखा शाह, ओनर, स्क्रेपशाला
बाइट: प्रदीप कुमार, कर्मचारी, स्क्रेपशाला


Conclusion:VO2: शिखा का कहना है कि जिसका बाढ़ को हम फेंक देते हैं वह घरों की शोभा बढ़ा सकता है। जब हम प्रकृति से चीजें ले सकते हैं तो उनको वापस से इस्तेमाल करके, प्रकृति को हानि न पहुंचा कर उसे यह तोहफा भी दे सकते हैं और साथ ही उन चीजों का इस्तेमाल करके खूबसूरत नए नायाब तोहफे बनाकर अपने चाहने वालों को भी दिए जा सकते हैं। शिखा का मानना है कि स्वच्छता सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि आम लोगों की भी जिम्मेदारी है और अगर स्वच्छता को आगे बढ़ाने में हमें अपनी कला दिखाने का मौका मिलता है तो उससे ज्यादा अच्छा और बेहतर कुछ नहीं हो सकता।

Regards
Arnima Dwivedi
Varanasi
7523863236
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.