वाराणसी/सीतापुर: 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र का पावन पर्व शुरू हो गया है. पहला दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप को समर्पित किया जाता है. महादेव की नगरी काशी में बाबा विश्वनाथ की तरह मां शक्ति की भी पूजा आराधना की जा रही है. ऐसे में शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री के दरबार में भक्तों की भीड़ एकत्र हुई. बता दें कि वाराणसी में मां शैलपुत्री के मंदिर को सबसे प्राचीन माना जाता है.
महादेव की नगरी काशी में शारदीय नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री का दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. यहां मंदिर में सूर्य उदय के पहले ही भक्त लंबी कतारों में नजर आए. पूरे विधि विधान से मां की मंगला आरती की गई. इसके बाद दरबार भक्तों के लिए खोल दिया गया. मंदिर भक्तों के जय जयकारे से गूंज उठा. मान्यता है कि मां वासंतीय और शारदीय नवरात्र के पहले दिन भक्तों को साक्षात दर्शन देती हैं.
तीन बार होती है मां की आरती
दरअसल, हर साल नवरात्रि के पहले दिन इस मंदिर में पैर रखने की भी जगह नहीं होती है. यहां आकर सुहागन महिलाएं अपने पति की उम्र की कामना करती हैं. मान्यता है कि मां शैलपुत्री हर मनोकामना सुनती हैं. श्रद्धालु मां के लिए लाल चुनरी, लाल फूल और नारियल लेकर आते हैं और महिलाएं सुहाग का सामान भी चढ़ाती हैं. नवरात्र के पहले दिन यहां की महाआरती में शामिल होने से दांपत्य जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं. इस दौरान मां शैलपुत्री की कथा भी सुनाई जाती है. जिसे सुनने के लिए लोग यहां दूर-दूर से आते हैं. यहां तीन बार मां की आरती होती है और तीनों बार सुहागन का सामान चढ़ाया जाता है.
मां पार्वती ने यहां किया था निवास
मान्यता है कि माता पार्वती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था इसलिए उनका नाम मां शैलपुत्री हुआ. माता एक बार महादेव की किसी बात से नाराज हो गई और कैलाश छोड़कर काशी आ गई थी लेकिन भोलेनाथ देवी को नाराज कैसे रहने देते? इसलिए खुद उन्हें मनाने के लिए वाराणसी आ गए. उस समय माता ने भगवान शिव को बताया कि उन्हें यह स्थान बहुत भा गया है. अब वह यहीं रहना चाहती हैं. यह कहकर वह इसी मंदिर में विराजमान हो गईं. यही वजह है कि यहां पर यह प्राचीन मंदिर बना और हर नवरात्र यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.
मां शैलपुत्री के हैं कई नाम
हिमालय की गोद में जन्म लेने वाली मां का नाम इसलिए ही शैलपुत्री पड़ा था. बता दें, माता का वाहन वृषभ है. यही वजह है कि उन्हें देवी 'वृषारूढ़ा' भी कहा जाता है. मां के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है. इस रूप को प्रथम दुर्गा भी कहा गया है. साथ ही मां शैलपुत्री को ही सती के नाम से भी जाना जाता है. पार्वती और हेमवती भी मां देवी के रूप के नाम हैं.
हिमालय के राजा ने कराया मंदिर का निर्माण
मंदिर के पुजारी जुद्ध महाराज ने बताया कि माता शैलपुत्री का यह मंदिर है. सच्चे भाव से आज के दिन दर्शन करने से सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है. पुजारी ने बताया कि मां शैलपुत्री राजा हिमालय की पुत्री हैं. इस मंदिर का निर्माण हिमालय के राजा ने कराया था.
सीतापुर में मां ललिता देवी की जय-जयकार
सीतापुर के नैमिषारण्य स्थित मां ललिता देवी मंदिर में धूमधाम से शारदीय नवरात्र के पहले दिन भक्तों ने मां शैलपुत्री का पूजन अर्चन किया. पुजारी लाल बिहारी ने बताया कि माता से संपूर्ण विश्व के लिए प्रार्थना की गई. हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करने पहुंचे थे. पुजारी ने बताया कि पूर्ण सजावट के तहत मंदिर में अधिक सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम किया गया है. सिद्धपीठ के गर्भगृह में मां ललिता देवी का विग्रह आदि काल से विद्यमान है, क्योंकि अठ्ठासी हजार ऋषियों की प्रार्थना पर चक्र की गति को माता ने ही रोका था और पृथ्वी को जलमग्न होने से बचाया था.