वाराणसी: काशी नगरी जहां कण-कण में शिव विराजते हैं. यहां का पत्थर भी शंकर कहलाता है और पौराणिक काल के शिव मंदिर तो इतने मिलेंगे जिनकी कहानी भी शायद बहुत से लोगों को नहीं पता होगी. ऐसे शिव मंदिरों में काशी का प्रमुख शिवालय है 'महामृत्युंजय मंदिर'. भोलेनाथ के इस स्वरूप को महामृत्युंजय इसलिए कहा जाता है क्योंकि शिव का यह स्वरूप मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला है. शिव के इस मंदिर में काल भी आने से घबराता है और मृत्यु शैया पर पड़ा व्यक्ति भी शिव के महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति से नया जीवन पाता है, तो आइए सावन के पहले सोमवार के इस पावन मौके पर हम आपको काशी के उस अद्भुत और अलौकिक मंदिर के बारे में बताते हैं. जहां शिवलिंग स्थापित नहीं किया गया, बल्कि धरती का सीना फाड़ कर स्वयंभू रूप में प्रकट हुआ था.
काशी में भोले हर तरफ विराजते हैं बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में शंकर के अलग-अलग कितने रूप हैं कि यदि आप दर्शन करने की इच्छा जाहिर कर दें तो शायद जीवन ही कम पड़ जाए. ऐसे में महत्वपूर्ण शिवालयों में से एक है 'महामृत्युंजय मंदिर'. काशी के दारानगर इलाके में स्थित महामृत्युंजय का यह मंदिर जीवन के हर कष्ट के साथ ही मृत्यु के भय से भी मुक्ति दिलाता है. ऐसी मान्यता है कि महामृत्युंजय का जाप मृत्यु पर विजय दिलाने के लिए सबसे बड़ा हथियार है. महादेव के इस स्वरूप के दर्शन मात्र से मृत्यु तुल्य कष्ट तो समाप्त हो जाता है, साथ ही भक्तों की हर तकलीफ, दुख, दर्द, पीड़ा भी दूर हो जाती है. इस मंदिर से जुड़ी कई ऐसी कथाएं भी हैं जो मृत्यु के मुंह में गए लोगों को वापस लेकर आई है. अकाल मृत्यु का भय भी इस मंदिर में दर्शन मात्र और भगवान भोलेनाथ के चरणामृत का आचमन करने मात्र से ही खत्म हो जाता है.
अनादि काल से काशी में है ये मंदिर
मंदिर के महंत मोहनलाल दीक्षित का कहना है कि यह मंदिर कब का है और कितना पुराना है. इसका कोई प्रमाण देने वाला नहीं है. क्योंकि जब काशी को भगवान भोलेनाथ ने अपने त्रिशूल की नोक पर स्थापित किया तब काशी के जिस इलाके में यह मंदिर स्थापित है वहां पर दारावन हुआ करता था. इसी वन में धरती की गोद से शिवलिंग प्रकट हुआ और तब से लेकर अब तक भगवान भोलेनाथ के इस भव्य शिवलिंग की आराधना काशी में होती आ रही है. बड़े क्षेत्र में स्थापित इस मंदिर में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अलग-अलग मंदिर स्थापित हैं. पीछे धनवंतरी कूप है. जिसका पानी पीने मात्र से ही सारे कष्टों का नाश हो जाता है और सबसे महत्वपूर्ण इस शिवलिंग का दर्शन करने और इसके जल का आचमन करने मात्र से ही अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है. यही वजह है कि इस मंदिर में 12 महीना 30 दिन महामृत्युंजय का अनुष्ठान जारी रहता है. देश-विदेश में अपनों के जीवन रक्षा के लिए लोग संकल्प लेने के बाद यहां पर पुरोहितों से अनुष्ठान को संपन्न कराते हैं.
महामृत्यंजय का है 8 हाथों का स्वरूप, हर हाथ में है अमृत कलश
महंत बताते हैं कि महामृत्युंजय का एक स्वयंभू शिवलिंग बाहर है और महामृत्युंजय का जो विकराल रूप है. उसमें भोलेनाथ 8 हाथों के साथ भक्तों के कष्टों को हरने के लिए विराजमान हैं. हर हाथ में अलग-अलग अमृत कलश के साथ ही माला और आशीष देते हुए बाबा भोलेनाथ भक्तों के हर कष्ट को हरने के साथ ही उनको मृत्यु से होने वाले कष्ट से मुक्ति दिलाने का काम करते हैं. अमृत कलश से भक्तों के जीवन की रक्षा करते हैं. यही वजह है कि काशी के इस महामृत्युंजय मंदिर में आने से यम भी डरते हैं. मार्कंडेय पुराण से लेकर शिव पुराण तक काशी के इस महामृत्युंजय मंदिर का जिक्र मिलता है.
इस मंत्र के जाप से मृत्यु पर विजय संभव
ऋषि मार्कंडेय के द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र ''ॐ त्र्यंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम, उर्वारुकमिव वंदनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्'' का जाप करने मात्र से ही अकाल मृत्यु का भय तो खत्म होता ही है. साथ ही साथ मृत्यु तुल्य कष्ट से भी निजात मिलती है. ऐसी मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ के इस स्वरूप के दर्शन करने के साथ ही यदि 40 सोमवार नियमित तौर पर यहां कोई हाजिरी लगाएं और भगवान महामृत्युंजय को दूध और जल अर्पित करें तो अकाल मृत्यु के भय के साथ जीवन के समस्त दुखों का नाश हो जाता है.
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