वाराणसीः सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय संरक्षित दुर्लभ 95 हजार पाण्डुलिपियों के संरक्षण एवं संवर्धन की तैयारी कर रहा है. देवनागरी, खरोष्ठी, मैथिली, बंग, ओड़िया, नेवाड़ी सहित कई लिपियों में यहां पाण्डुलिपियां संरक्षित हैं. इसे लेकर विश्वविद्यालय में एक बैठक आयोजित की गई. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरेराम त्रिपाठी की अध्यता में हुई. इस बैठक में पुस्तकालय भवन के विस्तार पर चर्चा हुई और इसके स्थान का निरीक्षण किया गया.
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि 24 अप्रैल प्रधानमंत्री मोदी ने ऐतिहासिक सरस्वती भवन पुस्तकालय का जायजा लिया था. उन्होंने विश्वविद्यालय और यहां पर रखी दुर्लभ पाण्डुलिपियों के संरक्षण का विचार रखा. इसके बाद मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र यहां पर आए. इस दौरान से सरस्वती भवन पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ 95 हजार पाण्डुलिपियों के संरक्षण के लिये विभिन्न तरह के सफल प्रयास किये जा रहे हैं.
नई पीढ़ी को मिल सकेगा इन दुर्लभ पुस्तकों का ज्ञान
उन्होंने बताया कि आज की बैठक में संरक्षण और संवर्धन को लेकर चर्चा हुई. इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसमें लिपिबद्ध दुर्लभ ज्ञान सार का लाभ नई पीढ़ी को मिल सकेगा. पाण्डुलिपियों के संरक्षण का आशय सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण है. इसी संरक्षण के माध्यम से हम अपने ऋषियों-मुनियों से अर्जित अनमोल ज्ञान को नई पीढ़ियों तक ले जाएंगे. कुलपति ने बताया कि एसीएस डॉ. एसएम बोबड़े ने भी इसका निरीक्षण किया है.
विद्यार्थियों के लिए स्वच्छ और सुंदर माहौल बनाया जाएगा
संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान के निदेशक प्रो. चांद किरण सलूजा ने बताया कि पूर्व में 1500 पाण्डुलिपियों का संरक्षण (उपचार) किया जा चुका है. यह पुस्तकालय राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्ञान मंदिर है. पठन-पाठन की दृष्टि से भी अधिक उपयोगी है. नए पुस्तकालय में रखे गए पुस्तकों का संरक्षण भी किया जाएगा. उन्होंने बताया कि विद्यार्थियों के लिये स्वच्छ और सुंदर माहौल बनाया जाएगा. शोध विद्यार्थिों को भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान पर कार्य करने के लिए डिजिटल फॉर्मट का लाभ दिया जाएगा.
1914 में बनकर तैयार हुआ था पुस्तकालय भवन
सरस्वती भवन पुस्तकालय की स्थापना राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, वाराणसी की स्थापना के समय ही (1914 में) हो गयी थी. भवन का शिलान्यास 16 नवंबर 1907 को वेल्स के राजकुमार एवं राजकुमारी के आगमन के समय हुआ था. यह भवन 1914 में बनकर तैयार हुआ और इसका नाम 'प्रिन्स ऑफ वेल्स सरस्वती भवन' रखा गया. शुरुआत में इस पुस्तकालय में वेद, वेदांग, पुराण, ज्योतिष एवं व्याकरण आदि विषयों की 1, 11, 132 पाण्डुलिपियां थी.
900 साल पुरानी हैं पांडुलिपियां
वर्तमान में इस पुस्तकालय में वेद-पुराणों आदि की संख्या लगभग 95 हजार है. देवनागरी, खरोष्ठी, मैथिली, बंग, ओड़िया, नेवाड़ी, शारदा, गुरुमुखी, तेलुगु एवं कन्नड़ की विभिन्न लिपियों और संस्कृत में लिखी गईं ये पाण्डुलिपियां स्वर्ण पत्र, कागज, ताड़पत्र, भोजपत्र एवं काष्ठपत्र पर लिखी गई हैं. इनमें स्वर्णपत्र पर लिखी गई त्रिपिटक, श्रीमद्भागवत गीता समेत कई पांडुलिपियां करीब 900 साल पुरानी हैं.
पढ़ेंः एएमयू के आधार पर होगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पाण्डुलिपियों का संरक्षण