वाराणसी: काशी का एकमात्र शहीद स्मारक चोलापुर थाने के पास स्थित है, जहां 17 अगस्त 1942 को क्रांति हुई थी. आजादी के दीवानों ने थाना गेट तोड़कर ब्रिटिश झंडा जला दिया था. उस संघर्ष में पांच स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गये थे, जबकि सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था.
बात 17 अगस्त 1942 की है. महात्मा गांधी की अगुआई में 8 अगस्त 1942 से शुरू किया गया 'भारत छोड़ो आंदोलन' परवान चढ़ने लगा था. उस दिन चोलापुर क्षेत्र के आयर गांव में नागपंचमी पर दंगल हो रहा था. क्षेत्र के पहलवान जोर आजमाइश कर रहे थे. इसी बीच स्वतंत्रता सेनानी वीर बहादुर सिंह हाथ में तिरंगा लेकर सीटी बजाते हुए वहां पहुंचे. वीर बहादुर सिंह ने दंगल में मौजूद जनता को ललकारा और कहा कि 'हे शूरवीरों जंजीरों से जकड़ी धरती मां को छुड़ाने का प्रयास करो. जिस मिट्टी में जोर आजमाइश कर रहे हो, वह धरती मां परतंत्रता की जंजीरों से जकड़ी हुई हैं. पहले उन्हें छुड़ाओ बाद में इस मिट्टी का तिलक लगाओ'.
वीर बहादुर सिंह की इस ललकार पर रामनरेश उपाध्याय उर्फ विद्यार्थी, पंचम, श्रीराम उर्फ बच्चू, चौथी एवं निरहू के साथ दर्जनों लोग चोलापुर थाने पर तिरंगा फहराने के लिए चल पड़े. रास्ते में पड़ने वाले भठौली, आयर, शिवरामपुर, सुलेमापुर, गोसाइपुर, राम गांव आदि गांव से हजारों लोग इनके साथ हो लिए. चोलापुर थाने पहुंचकर वीर बहादुर सिंह ने झंडा फहराने का प्रयास किया तो दारोगा रामचंद्र सिंह ने विरोध किया.
अंग्रेजों ने चलवायी थी गोलियां
रामनरेश उर्फ विद्यार्थी की शादी के बाद हाल ही में उनका गवना आया था, लेकिन भारत माता के लिए बलिदान के जुनून में वह दारोगा रामचंद्र सिंह से भिड़ गए. उन्हें उठाकर पटक दिया और छाती पर पैर रखकर खड़े हो गए. यह देख रामचंद्र के भतीजे ने रिवाल्वर से आयर निवासी रामनरेश को कनपटी पर गोली मार दी. वह मौके पर ही शहीद हो गए. फिर उच्चाधिकारियों ने भीड़ पर फायरिंग का आदेश दे दिया. इस फायरिंग में कक्षा सात के विद्यार्थी आयर बेनीपुर के पंचम, शिवरामपुर के श्रीराम उर्फ बच्चू और चौथी एवं सुलेमान पुर के निरहू राजभर भी मौके पर ही शहीद हो गए.
यहां वीर बहादुर सिंह भी घायल हो गये. घायलावस्था में उनके साथ अगुआई कर रहे सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. 1947 में आजादी के बाद सभी को रिहा किया गया. 25 जुलाई सन 1987 में वीर बहादुर सिंह स्वर्गवासी हो गए. घटना के 25 वर्ष बाद 17 अगस्त 1972 को पं. कमलापति त्रिपाठी ने यहां शहीद स्मारक का निर्माण कराया. तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने 12 जनवरी 1975 को इसका उद्घाटन किया.
वीर बहादुर ने ले लिया था संन्यास
वीर बहादुर सिंह ने मृत्यु से 10 वर्ष पूर्व संन्यास ले लिया. दीक्षा स्वरूप उन्हें बाबा बेअंत दर्शनानंद जी महाराज नाम मिला. इनकी मृत्यु के पश्चात संयासी बाबा बेअंत दर्शनानंद जी महाराज भारतीय धर्मशास्त्र के अनुसार आयर बाजार में उनको समाधि दी गई. जबसे उनकी मृत्यु हुई तब से जनपद का एकमात्र शहीद स्थल उपेक्षा का शिकार हो गया.
कांग्रेस जनों ने किया नमन
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 26 जनवरी 2021 को दर्जनों की संख्या में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता व जिला कांग्रेस महासचिव दिलीप चौबे के द्वारा शहीदों को नमन करते हुए माल्यार्पण किया.