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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों को किया जाएगा डिजिटलाइज्ड - स्वर्णाक्षरयुक्त रास पंचाध्यायी

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थापित सरस्वती पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों को डिजिटलाइज्ड किया जाएगा. इसके लिए बकायदा विश्वविद्यालय की ओर से शासन को लगभग 43 करोड़ रुपये की परियोजना बना करके भेजी गई है. शासन की स्वीकृति के बाद इस पर कार्य किया जाएगा.

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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय
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Published : May 15, 2022, 10:28 PM IST

वाराणसी : संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थापित सरस्वती पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों को डिजिटलाइज्ड किया जाएगा. इसके लिए बकायदा विश्वविद्यालय की ओर से शासन को लगभग 43 करोड़ रुपये की परियोजना बना करके भेजी गई है. शासन की स्वीकृति के बाद इस पर कार्य किया जाएगा. 1914 में बने सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना 1791 में कड़क घंटा मोहल्ले में हुई थी जहां 1960 में प्रिंस ऑफ वेल्स के निरीक्षण के बाद इसे विश्वविद्यालय के परिसर में स्थापित किया गया. इसके बाद यह विश्वविद्यालय में पूरी तरीके से पुस्तकालय बन गया और यह देश का सबसे प्राचीनतम पुस्तकालय है जहां हस्तलिखित दुर्लभ पांडुलिपियों संरक्षित हैं.

43 करोड़ रुपये से संरक्षित होंगी दुर्लभ पांडुलिपियां : विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरिराम त्रिपाठी ने बताया कि सरस्वती भवन में संरक्षित लगभग एक लाख दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण एवं डिजिटलाइजेशन के लिए 42 करोड़ 74 लाख 98 हजार की परियोजना बना करके केंद्र सरकार एवं प्रदेश सरकार को भेजा गया है. उन्होंने बताया कि बीते माह शासन की ओर आयोजित बैठक में दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए निर्देशित किया गया था. एक परियोजना शासन को भेजने का निर्देश दिया गया था. इसके बाद विवि प्रशासन ने 29 अप्रैल को 5 सदस्यों वाली कमेटी गठित कर इस संबंध में परियोजना बनाने का निर्णय लिया. इस परियोजना को सरकार तक प्रेषित किया गया है.

पढ़ेंः राम जन्मभूमि परिसर में राम के साथ माता सीता का भी मंदिर होगा, इन्हें भी मिलेगा सम्मान

उन्होंने बताया कि इस परियोजना के तहत लगभग एक लाख हस्तलिखित ग्रंथों के 42 लाख प्रवृत्तियों के संरक्षण एवं डिजिटलाइजेशन का कार्य पूरा कर लिया जाएगा. इससे आने वाले समय में भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में संस्कृत एवं प्राच्य विद्या के शोधार्थियों को शोधकार्य हेतु इन साहित्य को उपलब्ध कराया जा सके. इसके साथ ही आने वाले लगभग 100 वर्षों तक समग्र पांडुलिपियों को नष्ट होने से भी संरक्षित किया जा सकेगा. उन्होंने बताया कि इन पांडुलिपियों के संवर्धन के लिए लाल कपड़ों को एक विशेष रसायन के लेप लगाकर के व्यवस्थित किया जाएगा. सरस्वती भवन पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियों में मौजूद हैं. इसमें स्वर्णपत्र आच्छादित, लाक्षपत्र पर कमवाचा, स्वर्णाक्षरयुक्त रास पंचाध्यायी संरक्षित हैं. इसके साथ ही वेद, कर्मकांड, वेदांत, सांख्य योग, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, मीमांसा, न्याय वैशेषिक, साहित्य, व्याकरण और आयुर्वेद की दुर्लभ पांडुलिपियों रखी गई हैं.

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वाराणसी : संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थापित सरस्वती पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों को डिजिटलाइज्ड किया जाएगा. इसके लिए बकायदा विश्वविद्यालय की ओर से शासन को लगभग 43 करोड़ रुपये की परियोजना बना करके भेजी गई है. शासन की स्वीकृति के बाद इस पर कार्य किया जाएगा. 1914 में बने सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना 1791 में कड़क घंटा मोहल्ले में हुई थी जहां 1960 में प्रिंस ऑफ वेल्स के निरीक्षण के बाद इसे विश्वविद्यालय के परिसर में स्थापित किया गया. इसके बाद यह विश्वविद्यालय में पूरी तरीके से पुस्तकालय बन गया और यह देश का सबसे प्राचीनतम पुस्तकालय है जहां हस्तलिखित दुर्लभ पांडुलिपियों संरक्षित हैं.

43 करोड़ रुपये से संरक्षित होंगी दुर्लभ पांडुलिपियां : विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरिराम त्रिपाठी ने बताया कि सरस्वती भवन में संरक्षित लगभग एक लाख दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण एवं डिजिटलाइजेशन के लिए 42 करोड़ 74 लाख 98 हजार की परियोजना बना करके केंद्र सरकार एवं प्रदेश सरकार को भेजा गया है. उन्होंने बताया कि बीते माह शासन की ओर आयोजित बैठक में दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए निर्देशित किया गया था. एक परियोजना शासन को भेजने का निर्देश दिया गया था. इसके बाद विवि प्रशासन ने 29 अप्रैल को 5 सदस्यों वाली कमेटी गठित कर इस संबंध में परियोजना बनाने का निर्णय लिया. इस परियोजना को सरकार तक प्रेषित किया गया है.

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उन्होंने बताया कि इस परियोजना के तहत लगभग एक लाख हस्तलिखित ग्रंथों के 42 लाख प्रवृत्तियों के संरक्षण एवं डिजिटलाइजेशन का कार्य पूरा कर लिया जाएगा. इससे आने वाले समय में भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में संस्कृत एवं प्राच्य विद्या के शोधार्थियों को शोधकार्य हेतु इन साहित्य को उपलब्ध कराया जा सके. इसके साथ ही आने वाले लगभग 100 वर्षों तक समग्र पांडुलिपियों को नष्ट होने से भी संरक्षित किया जा सकेगा. उन्होंने बताया कि इन पांडुलिपियों के संवर्धन के लिए लाल कपड़ों को एक विशेष रसायन के लेप लगाकर के व्यवस्थित किया जाएगा. सरस्वती भवन पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियों में मौजूद हैं. इसमें स्वर्णपत्र आच्छादित, लाक्षपत्र पर कमवाचा, स्वर्णाक्षरयुक्त रास पंचाध्यायी संरक्षित हैं. इसके साथ ही वेद, कर्मकांड, वेदांत, सांख्य योग, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, मीमांसा, न्याय वैशेषिक, साहित्य, व्याकरण और आयुर्वेद की दुर्लभ पांडुलिपियों रखी गई हैं.

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