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वाराणसी: 200 सालों में पहली बार टूटी परम्परा

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Published : Oct 26, 2020, 3:59 PM IST

कोरोना के कारण इस बार त्योहार भी फीके पड़ गए हैं. त्योहारों पर जुटने वाली भीड़ अब नहीं लग पा रही है. इस दौरान त्योहारों से चलने वाली लोगों की रोजी-रोटी भी छिन गई है. कोरोना महामारी के कारण काशी के प्रमुख स्थानों पर आयोजित होने वाले रावण के पुतले के दहन का कार्यक्रम भी नहीं हो पाया. संक्रमण को देखते हुए रामनगरी में 200 सालों से होने वाली रामलीला का भी आयोजन नहीं हुआ.

हर साल हजारों की संख्या में आते लोग.
हर साल हजारों की संख्या में आते लोग.

वाराणसी: कोरोना का असर सिर्फ उद्योग-धंधों पर ही नहीं बल्कि, सामान्य जीवन और परम्पराओं पर भी पड़ा है. इस बार रामनगर की रामलीला भी कोरोना की चपेट में आई है. तकरीबन 200 साल पुराने इतिहास में पहली बार रामनगर की रामलीला को स्थगित किया गया. हर साल दशहरे के मौके पर रामनगर की रामलीला में रावण दहन को देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ती थी, लेकिन इस बार रावण दहन का आयोजन ही नहीं किया गया.

स्पेशल रिपोर्ट.

200 साल में पहली बार नहीं लगी रावण की कचहरी
विजयदशमी के दिन रामनगरी मैदान में लगने वाली रामलीला में सन्नाटा पसरा रहा. बता दें कि पिछले 200 सालों से इस मैदान में रावण की कचहरी लगती थी और रावण युद्ध भी होता था, लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई. बताया जाता है कि सन् 1820 से लेकर 1835 के बीच इस रामलीला की शुरुआत हुई.

रावण का दरबार ही नहीं, बल्कि राजगद्दी का मैदान भी रविवार को विजयादशमी के दिन सूना पड़ा रहा. बाकी सालों में इस मैदान में भगवान राम की राजगद्दी का मनोहर दृश्य देखेने को मिलता था, लेकिन इस साल मैदान में कुछ चंद बच्चे ही खेलते नजर आए. रामनगर की रामलीला अनंत चतुर्दशी से शुरू होकर राजगद्दी तक लगभग एक महीना चलती है. खास बात यह है कि यह रामलीला किसी एक स्थान पर नहीं, बल्कि 13 किलोमीटर के दायरे में घूम-घूम कर होती है. यहां पर अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, पम्पासर नासिक, पंचवटी रामेश्वर ये सभी तीर्थ हैं.

मेला न लगने से बहुतों पर संकट
मान्यता के अनुसार, रामनगर की रामलीला में भगवान राम स्वयं लीला करते हैं. किरदार निभाने वाले पात्रों में इस बार अपने अराध्य की सम्पूर्ण लीला न देख पाने को लेकर निराशा है. वहीं इस रामलीला की वजह से होने वाले भव्य मेले के आयोजन से लोगों को रोजी-रोटी भी मिलती थी, वह भी इस बार नहीं मिली. छोटी-छोटी रेड़ी, खेल और पटरी पर दुकान लगाकर अपना जीवन यापन करने वाले लोग आयोजन नहीं होने से इस बार रामनगर में नहीं दिख रहे हैं.

वाराणसी: कोरोना का असर सिर्फ उद्योग-धंधों पर ही नहीं बल्कि, सामान्य जीवन और परम्पराओं पर भी पड़ा है. इस बार रामनगर की रामलीला भी कोरोना की चपेट में आई है. तकरीबन 200 साल पुराने इतिहास में पहली बार रामनगर की रामलीला को स्थगित किया गया. हर साल दशहरे के मौके पर रामनगर की रामलीला में रावण दहन को देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ती थी, लेकिन इस बार रावण दहन का आयोजन ही नहीं किया गया.

स्पेशल रिपोर्ट.

200 साल में पहली बार नहीं लगी रावण की कचहरी
विजयदशमी के दिन रामनगरी मैदान में लगने वाली रामलीला में सन्नाटा पसरा रहा. बता दें कि पिछले 200 सालों से इस मैदान में रावण की कचहरी लगती थी और रावण युद्ध भी होता था, लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई. बताया जाता है कि सन् 1820 से लेकर 1835 के बीच इस रामलीला की शुरुआत हुई.

रावण का दरबार ही नहीं, बल्कि राजगद्दी का मैदान भी रविवार को विजयादशमी के दिन सूना पड़ा रहा. बाकी सालों में इस मैदान में भगवान राम की राजगद्दी का मनोहर दृश्य देखेने को मिलता था, लेकिन इस साल मैदान में कुछ चंद बच्चे ही खेलते नजर आए. रामनगर की रामलीला अनंत चतुर्दशी से शुरू होकर राजगद्दी तक लगभग एक महीना चलती है. खास बात यह है कि यह रामलीला किसी एक स्थान पर नहीं, बल्कि 13 किलोमीटर के दायरे में घूम-घूम कर होती है. यहां पर अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, पम्पासर नासिक, पंचवटी रामेश्वर ये सभी तीर्थ हैं.

मेला न लगने से बहुतों पर संकट
मान्यता के अनुसार, रामनगर की रामलीला में भगवान राम स्वयं लीला करते हैं. किरदार निभाने वाले पात्रों में इस बार अपने अराध्य की सम्पूर्ण लीला न देख पाने को लेकर निराशा है. वहीं इस रामलीला की वजह से होने वाले भव्य मेले के आयोजन से लोगों को रोजी-रोटी भी मिलती थी, वह भी इस बार नहीं मिली. छोटी-छोटी रेड़ी, खेल और पटरी पर दुकान लगाकर अपना जीवन यापन करने वाले लोग आयोजन नहीं होने से इस बार रामनगर में नहीं दिख रहे हैं.

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